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Rahul Gandhi exposes “Operation Sarkar Chori: ” जब लोकतंत्र को मशीनों, डेटा और सत्ता ने बंधक बना लिया — एक दस्तावेज़ी और ऐतिहासिक पड़ताल

  नई दिल्ली | 5 नवम्बर 2025 | रिपोर्ट: Z S Razzaqi |वरिष्ठ पत्रकार

भूमिका: जब भारत का मत — एक “डेटा” बन गया

भारत, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है, जहाँ एक वोट की क़ीमत संविधान की आत्मा है — आज वहीं वोट एक “सर्वर” में फँसी संख्या बनकर रह गया है।
राहुल गांधी के हालिया खुलासे ने केवल हरियाणा की राजनीति नहीं, बल्कि पूरे देश के लोकतांत्रिक ढाँचे की जड़ों को हिला दिया है।
उन्होंने वह कहा, जो दशकों से जनता महसूस कर रही थी लेकिन बोल नहीं पा रही थी —

“भारत में चुनाव नहीं हो रहे, सत्ता की संगठित चोरी हो रही है।”

Symbolic Image 

यह वाक्य इतिहास के उस पन्ने पर लिखा गया है जहाँ लोकतंत्र के स्तंभों की विश्वसनीयता को पहली बार इतनी खुली चुनौती दी गई है।


 पहला अध्याय: “ऑपरेशन सरकार चोरी” — एक संगठित साजिश की पड़ताल

राहुल गांधी ने हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 को भारत के राजनीतिक इतिहास की “सबसे संगठित वोट चोरी” बताया।
उन्होंने कहा कि यह कोई स्थानीय धांधली नहीं, बल्कि केंद्र स्तर पर नियंत्रित ऑपरेशन था, जिसे सत्ता के शीर्ष से संचालित किया गया।

आरोपों के मुख्य बिंदु:

  1. 25 लाख फर्जी वोटर बनाए गए — जिनमें से कई एक साथ दो राज्यों की वोटर लिस्ट में थे।

  2. 5,21,619 डुप्लीकेट वोटर पहचाने गए जिनके नाम और फोटो अलग-अलग पहचान के साथ बार-बार प्रयुक्त हुए।

  3. 1,24,177 वोटरों की एक जैसी तस्वीरें — जिनमें एक ही व्यक्ति 223 बार अलग नाम से वोट डालते दिखाया गया।

  4. एक ब्राज़ीलियन मॉडल की तस्वीर तक वोटर लिस्ट में शामिल पाई गई, जिसने कथित रूप से 10 बूथों पर वोट डाले।

  5. CCTV फुटेज गायब किए गए, और मतदाता सूचियाँ मतदान से ठीक पहले बदली गईं ताकि विरोधी दल कुछ कर न सके।

राहुल गांधी ने इसे नाम दिया —

“ऑपरेशन सरकार चोरी” — यानी लोकतंत्र के घर में सेंध लगाने का अभियान।


 दूसरा अध्याय: चुनाव आयोग की भूमिका — प्रहरी से सहभागी तक?

संविधान का अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को “लोकतंत्र का संरक्षक” बनाता है। लेकिन राहुल गांधी के अनुसार वही संस्था अब सत्ता के निर्देशों पर काम कर रही है।
उन्होंने कहा कि CEC ग्यानेश कुमार न केवल निष्पक्षता छोड़ चुके हैं, बल्कि अब “लोकतंत्र के अपराधियों की रक्षा” कर रहे हैं।

उन्होंने बताया कि जब कांग्रेस ने महादेवपुरा (कर्नाटक) में वोटर डिलीशन की तकनीकी जानकारी मांगी, तो आयोग ने यह कहते हुए मना कर दिया कि “यह गोपनीय डेटा” है।

“गोपनीयता लोकतंत्र के खिलाफ़ हो गई है,” — राहुल गांधी का तर्क।

यह वही संस्था है जिसने कभी स्वतंत्र भारत के पहले चुनाव (1951-52) को निष्पक्षता की मिसाल बनाया था। लेकिन अब वही संस्था, आरोपों के अनुसार, “ईवीएम से लेकर डेटा सर्वर तक” सत्ता के नियंत्रण में है।


 तीसरा अध्याय: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य — जब भारत का मत जनमत से मशीनमत में बदला

भारत में मतदाता सूची और चुनाव प्रणाली को लेकर विवाद नया नहीं है।
1982 में मेघालय चुनाव में वोटर लिस्ट की गड़बड़ियों पर पहली बार सार्वजनिक आपत्ति हुई थी।
2009 के बाद ईवीएम और डिजिटल डेटा एंट्री के साथ “तकनीकी पारदर्शिता” का युग आया — लेकिन उसके साथ “तकनीकी हेराफेरी” के अवसर भी बढ़े।

आज जो राहुल गांधी कह रहे हैं —

“चुनाव नहीं, डेटा प्रोसेसिंग हो रही है।”
वह दरअसल इसी बदलाव का नतीजा है — जहाँ सत्ता ने तकनीक का इस्तेमाल जनता की जगह लेने के लिए किया।


चौथा अध्याय: जनता का सवाल — अगर वोट चोरी हो गया तो लोकतंत्र किसका?

हरियाणा से उठी यह गूंज अब देशभर में फैल चुकी है।
सोशल मीडिया से लेकर गाँवों की चौपालों तक लोग पूछ रहे हैं —

“अगर हमारा वोट गिना ही नहीं गया, तो सरकार हमारी कैसे?”

यह सवाल अब केवल कांग्रेस या भाजपा का नहीं, बल्कि भारत के हर नागरिक का संवैधानिक प्रश्न बन गया है।
दिल्ली, लखनऊ, पटना, जयपुर और नागपुर में नागरिक समूहों ने पारदर्शी मतदाता सूची और चुनावी सर्वर की स्वतंत्र जांच की माँग शुरू कर दी है।

यहाँ तक कि भाजपा के भीतर भी असंतोष पनपने लगा है।
एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने गुमनाम रूप से कहा —

“अगर जीत ईमानदारी से हुई है, तो जांच से डर क्यों?”


 पांचवां अध्याय: विपक्ष का समर्थन — जब लोकतंत्र बनाम सत्ता की लड़ाई शुरू हुई

शिवसेना (UBT) के नेता आदित्य ठाकरे ने राहुल गांधी के समर्थन में कहा:

“यह राजनीति नहीं, लोकतंत्र की रक्षा की लड़ाई है। वोट की कीमत संविधान से भी बड़ी है, क्योंकि वही संविधान की नींव रखती है।”

लेफ्ट पार्टियों, समाजवादी नेताओं और नागरिक संगठनों ने भी इस पर एकजुटता दिखाई।
उन्होंने कहा कि यह “आख़िरी मौका” है जब भारत अपने लोकतांत्रिक चरित्र को बचा सकता है।


 छठा अध्याय: जनता का अविश्वास — जब आयोग का मौन सबसे बड़ा बयान बन गया

जहाँ एक ओर राहुल गांधी ने दस्तावेज़ों, वीडियो और वोटर डेटा के उदाहरणों के साथ अपनी बात रखी, वहीं दूसरी ओर चुनाव आयोग ने केवल एक पंक्ति का बयान जारी किया —

“राहुल गांधी के आरोप निराधार हैं।”

लेकिन यह “मौन” ही अब जनचेतना का विषय बन गया है।
क्योंकि जब एक संस्था आरोपों के बाद भी जांच से कतराती है, तो संदेह अपने आप जन्म लेता है।


निष्कर्ष:-

 यह लड़ाई किसी पार्टी की नहीं — भारत की आत्मा की है

राहुल गांधी के बयान के राजनीतिक निहितार्थ चाहे जो हों, लेकिन उन्होंने उस दरवाज़े को खोल दिया है जिसके पीछे भारतीय लोकतंत्र की असली बीमारी छिपी है —
जनता की सत्ता से तंत्र की सत्ता का संक्रमण।

भारत के लोगों के लिए यह क्षण केवल एक राजनीतिक प्रकरण नहीं, बल्कि चेतना का आह्वान है।

“लोकतंत्र सिर्फ़ वोट डालने का अधिकार नहीं, बल्कि उस वोट की सुरक्षा का विश्वास भी है।”

आज सवाल यह नहीं कि राहुल गांधी सही हैं या गलत —
सवाल यह है कि क्या भारत अपने लोकतंत्र को फिर से “जनता के हाथों” में वापस ला सकेगा?

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