14 अक्टूबर 2025 ✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
मध्य पूर्व में वर्षों से जारी खूनी संघर्ष के बाद आखिरकार गाज़ा में शांति की उम्मीद जग उठी है। सोमवार को मिस्र के समुद्री तटवर्ती शहर शर्म अल-शेख में आयोजित एक ऐतिहासिक समारोह में विश्व नेताओं ने गाज़ा युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते का नेतृत्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने किया, जबकि मिस्र, क़तर और तुर्की इस शांति प्रक्रिया के प्रमुख मध्यस्थ रहे।
ट्रंप का वादा: “अब गाज़ा का पुनर्निर्माण शुरू होगा”
समारोह में बोलते हुए राष्ट्रपति ट्रंप ने गाज़ा के भविष्य को एक “नए और खूबसूरत दिन” की शुरुआत बताया। उन्होंने कहा —
“अब पुनर्निर्माण शुरू होता है। और शायद यह सबसे आसान हिस्सा होगा, क्योंकि हम दुनिया में किसी से बेहतर निर्माण करना जानते हैं।”
ट्रंप ने मध्यस्थ देशों के नेताओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि “यह समझौता न केवल युद्ध के अंत का प्रतीक है, बल्कि एक नई शुरुआत का संकेत भी है।”
हालांकि, गाज़ा की स्थिति अभी भी भयावह है। दो साल तक चले इज़रायली हमलों में 67,000 से अधिक लोग मारे गए, जबकि हजारों लोग अब भी मलबे में दफन बताए जा रहे हैं।
मलबे में तब्दील गाज़ा और पुनर्निर्माण की चुनौती
एक स्थानीय नागरिक महमूद ने मीडिया से कहा —
“हमने वे इलाके देखे जहाँ कभी ज़िंदगी थी। अब सिर्फ़ मलबा है, कुछ पहचानने लायक नहीं बचा।”
इज़रायली सेना के हमलों ने गाज़ा पट्टी के अधिकांश हिस्से को रहने लायक नहीं छोड़ा है। कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों और विद्वानों ने इसे “जनसंहार (Genocide)” की संज्ञा दी है।
फिर भी, ट्रंप प्रशासन का फोकस इज़राइल की सुरक्षा चिंताओं पर अधिक दिखाई देता है। ट्रंप ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि “गाज़ा के पुनर्निर्माण के लिए उसका निरस्त्रीकरण (Demilitarisation) आवश्यक है।”
समानता और सम्मान का संयुक्त बयान
सोमवार शाम को अमेरिका, मिस्र, क़तर और तुर्की ने एक संयुक्त घोषणा पत्र जारी किया जिसमें कहा गया —
“हम इस क्षेत्र में हर व्यक्ति को समान अवसर, गरिमा और सुरक्षा के साथ जीने का अधिकार दिलाना चाहते हैं, चाहे उसका धर्म, जाति या नस्ल कुछ भी हो।”
यह बयान शांति के साथ-साथ मानवाधिकारों और आर्थिक समृद्धि के नए युग की ओर संकेत देता है।
मिस्र के राष्ट्रपति ने दी चेतावनी: “स्थायी शांति तभी संभव जब बने फ़िलिस्तीनी राज्य”
मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फ़तह अल-सीसी ने सम्मेलन में ट्रंप की सराहना तो की, लेकिन स्पष्ट चेतावनी भी दी। उन्होंने कहा —
“शांति हमारी रणनीतिक प्राथमिकता है, लेकिन इसका स्थायी समाधान केवल न्याय और समान अधिकारों पर आधारित स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य से ही संभव है।”
हालांकि, इज़राइल अभी भी स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना के सख़्त खिलाफ़ है। वहीं अमेरिका, जिसने युद्ध के दौरान भी इज़राइल को हथियार और कूटनीतिक सहयोग दिया, अभी तक गाज़ा के भविष्य पर कोई स्पष्ट रूपरेखा नहीं दे पाया है।
‘पोस्ट-वार गवर्नेंस’ को लेकर बढ़ी आशंकाएँ
खबर है कि युद्ध के बाद गाज़ा के प्रशासन में पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर और ट्रंप के दामाद जारेड कुश्नर जैसी हस्तियाँ शामिल हो सकती हैं। इस प्रस्ताव को लेकर कई विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं।
जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी (क़तर) के प्राध्यापक ज़ैदोन अलकिनानी ने अल जज़ीरा से कहा —
“सवाल यह है कि क्या यह शांति स्थायी रह पाएगी? क्या इस समझौते ने उन सभी कारणों को दूर किया है जिनसे 7 अक्टूबर जैसी घटनाएँ हुईं? हमें इसी पर ध्यान देना होगा।”
उन्होंने ट्रंप के “Board of Peace” प्रस्ताव पर भी प्रश्न उठाया, जिसके तहत गाज़ा की स्थानीय नीति विशेषज्ञों की देखरेख में चलेगी, लेकिन अंतिम नियंत्रण ट्रंप और ब्लेयर के हाथों में रहेगा।
“यह जानना ज़रूरी है कि इस समिति की वैधता क्या होगी, और इसमें लोगों का प्रतिनिधित्व कौन करेगा,” उन्होंने कहा।
भविष्य की राह: उम्मीद और अनिश्चितता साथ-साथ
गाज़ा में इस समझौते का स्वागत राहत और संशय दोनों भावनाओं के साथ किया जा रहा है। एक ओर युद्ध के अंत से राहत की सांस है, तो दूसरी ओर यह डर भी है कि कहीं यह शांति अस्थायी राजनीतिक सौदे में न बदल जाए।
अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह समझौता मध्य पूर्व की राजनीति में एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हो सकता है, बशर्ते इसे न्याय, समानता और आत्मनिर्णय के सिद्धांतों पर आगे बढ़ाया जाए।
