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मणिपुर हिंसा पर गहराई से विश्लेषण: लोकतंत्र की परीक्षा, मोदी सरकार की असफलता और सच्चाई की पुकार

 14 सितंबर 2025:✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार  

इम्फाल, भारत | 14 सितंबर 2025 – भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में 2023 से शुरू हुई जातीय हिंसा का संकट लगभग 27 महीने तक चला। यह संघर्ष न केवल लाखों लोगों की जान और जीने की आज़ादी पर भारी पड़ा, बल्कि भारतीय लोकतंत्र, संवैधानिक जिम्मेदारियों और मानवाधिकारों पर एक गंभीर प्रश्नचिन्ह भी बन गया। मणिपुर का यह काला अध्याय राजनीतिक सत्ता की तुष्टिकरण नीति, प्रशासनिक उदासीनता और संवेदनहीनता की मिसाल बन चुका है।



प्रारंभिक कारण: अनुच्छेद 342 की सिफारिश और विस्फोटक प्रतिक्रिया

मणिपुर की हिंसा की शुरुआत तब हुई, जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया। इस फैसले ने क्षेत्र में वर्षों से चले आ रहे जातीय तनाव को भड़काया। कुख्यात समूहों के बीच हिंसक संघर्ष में 300 से अधिक नागरिकों की हत्या, लगभग 67,000 लोग विस्थापित और हजारों घर जलकर राख हो गए।

विशेष रूप से, कुख समुदाय पर अत्याचार का जो सिलसिला चला, वह मानवता के खिलाफ एक काला धब्बा साबित हुआ। महिलाओं को नंगा सड़क पर घुमाया गया और पुरुषों के सिर सार्वजनिक स्थलों पर लटका दिए गए। यह घटनाएं अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों के ध्यान में भी आईं और भारी आलोचना का पात्र बनीं।


मोदी सरकार की चुप्पी: संवेदनशीलता की सबसे बड़ी विफलता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगते रहे कि उन्होंने मणिपुर का दौरा करने में सालों तक अनावश्यक विलंब किया। केवल जब अंतरराष्ट्रीय मीडिया में मणिपुर की भयावह त्रासदी प्रमुखता से प्रकाशित होने लगी, तभी मोदी सरकार ने 2025 में दौरा तय किया। यह दौरा मात्र 3 घंटे लंबा था, और उसमें संवेदनशील पहलुओं पर गंभीर रूप से विचार नहीं किया गया।

मोदी जी ने 36 सेकंड का बयान जारी किया, जिसमें उन्होंने हिंसा पर संवेदना जाहिर की, लेकिन दोषियों को सजा दिलाने, पीड़ितों को न्याय दिलाने या पुनर्वास की ठोस योजना की कोई बात नहीं कही गई। साथ ही, आगमन से पूर्व पूरे मणिपुर में विरोधी सामाजिक संगठनों को हाउस अरेस्ट में रखा गया ताकि कोई विरोध प्रदर्शन न हो।

मुख्य मार्ग खाली थे, केवल कुछ तिरंगा हाथ में थामे स्कूल के बच्चे दिखाई दिए। इस तरह का स्वागत न केवल दिखावे जैसा था, बल्कि पूरी तरह से पीड़ित जनता के प्रति संवेदनहीनता का परिचायक बना।


भाजपा के आंतरिक संकट का खुलासा: विधायकों का इस्तीफा

प्रधानमंत्री मोदी के मणिपुर दौरे से ठीक पहले 43 BJP विधायक इस्तीफा दे चुके थे। यह केवल व्यक्तिगत असहमति नहीं थी, बल्कि पूरे पार्टी नेतृत्व की राजनीतिक विफलता का प्रतीक बन गई। इस्तीफे के पीछे स्पष्ट रूप से यह संदेश था कि भाजपा का नेतृत्व असंवेदनशील, असंगठित और जनहित से परे चल रहा था।

यह कदम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार की छवि को धूमिल कर गया। लोकतंत्र की सबसे बड़ी अपेक्षा यह है कि नागरिकों की सुरक्षा और विश्वास को प्राथमिकता दी जाए, न कि राजनीतिक स्वार्थ और कल्याण प्रदर्शन।


विकास योजनाएं और जमीनी हकीकत: विरोधाभास की मिसाल

मोदी सरकार ने मणिपुर में विकास कार्यों का उद्घाटन और शिलान्यास जरूर किया:

  • ₹1,203 करोड़ की परियोजनाओं का उद्घाटन

  • ₹7,344 करोड़ की परियोजनाओं का शिलान्यास

  • 7,000 नए मकानों का निर्माण

  • आयुष्मान भारत योजना के तहत 2.5 लाख से अधिक मणिपुरी नागरिकों को मुफ्त चिकित्सा सुविधा प्रदान की गई

लेकिन जब तक विस्थापित लोग अपने घर सुरक्षित रूप से नहीं लौटते, उनके बच्चों को शिक्षा मिलती है, और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होती, विकास कार्य केवल प्रशासनिक प्रदर्शन बनकर रह जाएंगे। गहराई से विश्लेषण करने पर यह साफ होता है कि सरकार की प्राथमिकता विकास कार्य नहीं, बल्कि सत्ता संरक्षित करना रही।


अंतरराष्ट्रीय आलोचना: लोकतंत्र की परीक्षा

अंतरराष्ट्रीय मीडिया और मानवाधिकार संगठनों ने मोदी सरकार की चुप्पी, हाउस अरेस्ट, संवेदनहीनता और नाकाफी प्रयासों की कड़ी आलोचना की। The Guardian, BBC और Al Jazeera जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों ने इस घटना को गहराई से रिपोर्ट किया और मोदी सरकार पर जनता के अधिकारों की अनदेखी का आरोप लगाया। Amnesty International ने भी इसे मानवाधिकारों के प्रति गंभीर उल्लंघन करार दिया।

एक विश्लेषण में यह बात प्रमुख हुई कि लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत जनता की आवाज़ होती है, और जब सरकार इसी आवाज़ को दबाने लगती है, तो वह लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों से ही दूर हो जाती है।


भविष्य के लिए चेतावनी

मणिपुर की त्रासदी भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी विफलताओं में दर्ज होगी। आने वाले समय में इसे एक कड़ा उदाहरण माना जाएगा कि कैसे संवेदनहीन नेतृत्व, राजनीतिक स्वार्थ, और जनहित की उपेक्षा ने हजारों लोगों की जान और सम्मान को दांव पर लगा दिया।

आज हर नागरिक, पत्रकार, समाजसेवी और लोकतंत्र का संरक्षक – सभी को मिलकर सच्चाई की आवाज़ उठानी होगी। बिना डर, बिना समझौता, केवल निष्पक्ष तथ्यों के आधार पर। यही एकमात्र रास्ता है जिससे भारत की लोकतांत्रिक जड़ें मजबूत होंगी और हर पीड़ित को न्याय मिलेगा।

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