Type Here to Get Search Results !

ADS5

ADS2

H-1B Visa संकट 2025: ट्रंप सरकार की नई घोषणा और भारत-अमेरिका पर असर

 20 सितंबर :✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार  

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 19 सितंबर को एक बड़ा कदम उठाते हुए एच-1बी वीज़ा की वार्षिक फीस को 100,000 अमेरिकी डॉलर (लगभग 83 लाख रुपये) करने का ऐलान किया। यह निर्णय ‘Restriction on Entry of Certain Non-Immigrant Workers’ नामक राष्ट्रपति आदेश के तहत लागू किया गया है और 21 सितंबर 2025 से प्रभावी होगा।

यह शुल्क अब तक केवल 2,000–5,000 डॉलर हुआ करता था, लेकिन नई व्यवस्था के बाद एक तीन वर्षीय वीज़ा के लिए कुल खर्च 3 लाख डॉलर तक जा सकता है। इस कदम ने न केवल भारतीय पेशेवरों बल्कि अमेरिकी उद्योग जगत में भी चिंता की लहर पैदा कर दी है।


Symbolic Image 

📌 एच-1बी वीज़ा क्यों है महत्वपूर्ण?

एच-1बी वीज़ा एक गैर-आप्रवासी कार्य वीज़ा है, जिसके तहत अमेरिकी कंपनियाँ तकनीक, इंजीनियरिंग, चिकित्सा और अन्य विशिष्ट क्षेत्रों में विदेशी पेशेवरों को नियुक्त कर सकती हैं।

  • वित्त वर्ष 2024 में एच-1बी वीज़ा धारकों में 71% भारतीय थे।

  • शीर्ष लाभार्थियों में अमेज़न (10,044 कर्मचारी), टीसीएस (5,505), माइक्रोसॉफ्ट (5,189), मेटा (5,123), एप्पल (4,202), गूगल (4,181), डेलॉइट, इन्फोसिस और विप्रो शामिल हैं।


📌 भारत पर असर: आईटी उद्योग और पेशेवरों की चुनौती

  1. वेतन पर सीधा बोझ – $100,000 फीस भारतीय कर्मचारियों की औसत सैलरी का लगभग 60% है, जिससे यह आर्थिक रूप से असंभव हो सकता है।

  2. नौकरी के अवसरों में गिरावट – कंपनियाँ भारतीय पेशेवरों को नियुक्त करने से बचेंगी और कार्य को ऑफशोर भारत में आउटसोर्स करेंगी।

  3. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश पर विशेष प्रभाव – इन राज्यों से सबसे अधिक आईटी प्रोफेशनल्स अमेरिका जाते हैं। राज्य सरकारों ने इसे “आर्थिक झटका” बताया।

  4. पारिवारिक संकट – बाहर घूमने गए कई भारतीय पेशेवरों और उनके परिवारों को तुरंत अमेरिका लौटने की सलाह दी गई है, वरना प्रवेश से वंचित होना पड़ सकता है।


📌 अमेरिकी उद्योग और विशेषज्ञों की चिंता

  • Global Trade Research Initiative (GTRI) का कहना है कि यह फैसला भारत से ज्यादा अमेरिका को नुकसान पहुँचाएगा, क्योंकि कंपनियाँ अब बड़े पैमाने पर प्रोजेक्ट्स को ऑफशोर शिफ्ट करेंगी।

  • Nasscom ने एक दिन की समयसीमा को “अत्यंत अव्यावहारिक” बताते हुए कहा कि इससे व्यवसाय, पेशेवर और छात्र सभी प्रभावित होंगे।

  • अमेरिकी टेक्नोलॉजी सेक्टर, जो वैश्विक नवाचार का इंजन माना जाता है, इससे धीमा हो सकता है।


📌 भारत सरकार और कूटनीतिक दृष्टिकोण

विदेश मंत्रालय (MEA) ने कहा है कि:

  • यह कदम “मानवीय संकट” खड़ा कर सकता है क्योंकि हजारों परिवार प्रभावित होंगे।

  • भारत और अमेरिका दोनों के उद्योग नवाचार और कौशल आधारित प्रतिभा पर निर्भर हैं, इसलिए परस्पर हितों को देखते हुए नीति निर्माताओं को संतुलित समाधान निकालना चाहिए।

  • भारत अब लौट रहे पेशेवरों की विशेषज्ञता का इस्तेमाल डिजिटल स्वराज मिशन और घरेलू साइबरसुरक्षा, क्लाउड व सॉफ़्टवेयर क्षमता बढ़ाने में कर सकता है।


📌 राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ

  • असदुद्दीन ओवैसी ने चेतावनी दी कि इस कदम के दूरगामी परिणाम होंगे, विशेषकर दक्षिण भारत के राज्यों पर।

  • अखिलेश यादव ने केंद्र सरकार की विदेश नीति को “कमज़ोर” बताते हुए कहा कि समय रहते अमेरिका से ठोस बातचीत क्यों नहीं की गई।

  • तेलंगाना सरकार ने इसे आईटी क्षेत्र के लिए विनाशकारी बताया।


📌 आगे की राह

  1. भारत-अमेरिका वार्ता – उद्योग संघ, Nasscom और सरकार मिलकर अमेरिकी प्रशासन से राहत की कोशिश करेंगे।

  2. रिटर्निंग टैलेंट का उपयोग – भारत के पास अवसर है कि वह लौटे हुए पेशेवरों को घरेलू उद्योग में लगाए और आत्मनिर्भरता को बढ़ाए।

  3. अमेरिकी कंपनियों की रणनीति – अधिकतर कंपनियाँ भारत जैसे देशों में ऑफशोरिंग बढ़ाएँगी ताकि लागत संतुलित हो सके।


निष्कर्ष:-

एच-1बी वीज़ा शुल्क वृद्धि एक ऐसा कदम है, जो अमेरिकी राजनीति में “राष्ट्रहित” के नाम पर उठाया गया है, लेकिन इसके वास्तविक आर्थिक और नवाचार संबंधी प्रभाव अमेरिका के लिए ही अधिक हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं। भारत के लिए यह एक चुनौती भी है और अवसर भी—जहाँ लौटते हुए पेशेवर नई ऊर्जा और विशेषज्ञता के साथ देश के डिजिटल भविष्य को सशक्त कर सकते हैं।

ये भी पढ़े 

1 -हिंदी उर्दू शायरी 

2 -प्रीमियम डोमेन सेल -लिस्टिंग 



Tags

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

ADS3

ADS4