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संभल विवाद : सीओ अनुज चौधरी की भूमिका पर फिर उठे सवाल, साम्प्रदायिक छवि और पक्षपात के आरोप

 संवाददाता | संभल

संभल में तैनात क्षेत्राधिकारी (सीओ) अनुज चौधरी को लेकर एक बार फिर विवाद गहराता जा रहा है। उनके बयानों, गतिविधियों और सार्वजनिक छवि को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। पूर्व आईपीएस अधिकारी एवं आज़ाद अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर ने जहां उन्हें सेवा नियमावलियों के उल्लंघन का दोषी ठहराते हुए कार्रवाई की मांग की है, वहीं अब स्थानीय समाज में भी अनुज चौधरी की निष्पक्षता और प्रशासनिक मर्यादा को लेकर गहरी शंका व्यक्त की जा रही है।


साम्प्रदायिक छवि का आरोप

अनुज चौधरी पर लगातार साम्प्रदायिक बयानबाज़ी, धार्मिक टिप्पणियां और पुलिसिंग को सांप्रदायिक रंग देने के गंभीर आरोप लगे हैं। बीते दिनों पीस कमेटी की बैठक में दिया गया उनका बयान — "होली साल में एक बार आती है, लेकिन जुमे की नमाज 52 बार होती है, जिन मुसलमानों को रंग से परहेज़ है, वे घर से न निकलें या फिर दिल बड़ा रखें" — व्यापक रूप से विवादित रहा।
इतना ही नहीं, ईद को लेकर भी उनकी टिप्पणी — "सेवई खिलानी है तो गुजिया भी खानी होगी" — साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के प्रयास के रूप में देखी गई। इन बयानों को लेकर ना केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक स्तर पर भी काफी असंतोष है।

धार्मिक गतिविधियों में भागीदारी पर सवाल

स्थानीय लोगों का आरोप है कि अनुज चौधरी अक्सर वर्दी में रहते हुए विशेष धार्मिक गतिविधियों में खुलेआम भाग लेते देखे जाते रहे हैं। यह आचरण न केवल पुलिस सेवा नियमों का उल्लंघन है, बल्कि पुलिस विभाग की निष्पक्ष छवि को भी आघात पहुंचाता है।
एक जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारी का वर्दी पहनकर धार्मिक आयोजनों में शामिल होना, न केवल असंवैधानिक है, बल्कि इससे उनके निर्णयों की निष्पक्षता और समुदाय विशेष के प्रति पूर्वाग्रह की आशंका भी गहराती है।

वायरल तस्वीर और संघ से जुड़ाव का आरोप

पिछले दिनों अनुज चौधरी के आवास की एक तस्वीर भी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुई थी। इस तस्वीर में उनके घर की दीवारों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और उससे जुड़े प्रमुख व्यक्तित्वों की तस्वीरें देखी गईं।
इस तस्वीर ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि प्रशासन में बैठे ऐसे अधिकारी, जिनकी निजी आस्थाएं और झुकाव सार्वजनिक रूप से स्पष्ट हैं, क्या वास्तव में संवैधानिक दायित्वों का पालन करते हुए निष्पक्ष प्रशासन दे सकते हैं?
संविधान और सेवा नियमावली के तहत प्रशासनिक अधिकारियों को अपने धार्मिक और वैचारिक झुकावों को सार्वजनिक जीवन और निर्णयों से अलग रखना आवश्यक है।

अमिताभ ठाकुर ने उठाए गंभीर सवाल

पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने स्पष्ट कहा है कि उन्हें जांच में अपने पक्ष और साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर नहीं दिया गया। साथ ही, जांच अधिकारी एएसपी श्रीशचंद्र पर शासनादेशों की अवहेलना कर एकतरफा जांच करने का आरोप लगाया है। ठाकुर ने मामले की किसी वरिष्ठ अधिकारी से दोबारा निष्पक्ष जांच कराने और एएसपी श्रीशचंद्र के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की है।

प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल

प्रशासन द्वारा अब तक दी गई क्लीन चिट पर भी सवाल उठ रहे हैं। स्थानीय संगठनों और नागरिकों का कहना है कि जांच की निष्पक्षता संदिग्ध है। केवल पीस कमेटी की बैठक में मौजूद व्यक्तियों के बयान और सीओ के पक्ष में बयान देने वाले कुछ सीमित लोगों की गवाही पर रिपोर्ट तैयार करना, मामले को पूरी तरह अनदेखा करने जैसा है।

निष्कर्ष

संभल में पुलिस प्रशासन की कार्यशैली, विशेष रूप से सीओ अनुज चौधरी की भूमिका और छवि को लेकर जनमानस में भारी असंतोष और आशंका है। जब एक पुलिस अधिकारी की सार्वजनिक छवि ही पक्षपात और साम्प्रदायिकता से जुड़ जाए, तो उसकी निष्पक्षता पर स्वाभाविक रूप से प्रश्नचिह्न खड़ा होता है।
यह ज़रूरी है कि ऐसे मामलों की उच्चस्तरीय, निष्पक्ष और पारदर्शी जांच कराई जाए ताकि पुलिस और प्रशासन की विश्वसनीयता बनी रहे और संवैधानिक मर्यादाओं की रक्षा हो सके।

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