नई दिल्ली, 6 मार्च 2025: भारतीय क्रिकेट टीम के तेज़ गेंदबाज़ मोहम्मद शमी इन दिनों न केवल अपने बेहतरीन प्रदर्शन बल्कि एक विवाद को लेकर भी सुर्खियों में हैं। रमज़ान के दौरान ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेले गए सेमीफाइनल मैच में उन्हें एनर्जी ड्रिंक पीते हुए देखा गया, जिसके बाद कुछ धार्मिक नेताओं ने उनकी आलोचना की। हालांकि, उनके परिवार और कई मुस्लिम धर्मगुरुओं ने इस विवाद को बेबुनियाद बताते हुए शमी का समर्थन किया है।
परिवार का करारा जवाब: "देश के लिए खेलना सबसे बड़ा फर्ज़"
मोहम्मद शमी के चचेरे भाई मुमताज़ ने इस विवाद पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा,
"शमी देश के लिए खेल रहे हैं। कई पाकिस्तानी खिलाड़ी भी रोज़ा नहीं रखते और मैच खेलते हैं, तो इसमें कुछ नया नहीं है। यह शर्मनाक है कि उनके खिलाफ इस तरह की बातें की जा रही हैं। हम शमी से कहेंगे कि इन सब चीज़ों पर ध्यान न दें और आगामी मैच पर फोकस करें।"
गौरतलब है कि शमी ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ शानदार प्रदर्शन करते हुए 10 ओवरों में 48 रन देकर 3 विकेट लिए थे। इस प्रदर्शन के साथ ही उन्होंने टूर्नामेंट में अब तक चार मैचों में 8 विकेट हासिल किए हैं और टॉप विकेट-टेकर्स की लिस्ट में दूसरे स्थान पर पहुंच गए हैं।
धार्मिक विवाद: मौलाना शाहाबुद्दीन रज़वी बरेलवी का बयान
इस पूरे विवाद की शुरुआत तब हुई जब ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष, मौलाना शाहाबुद्दीन रज़वी बरेलवी ने एक बयान जारी कर कहा,
"रमज़ान के महीने में रोज़ा रखना अनिवार्य है। अगर कोई स्वस्थ व्यक्ति रोज़ा नहीं रखता, तो वह इस्लामी शरीयत के अनुसार अपराधी है। शमी ने मैच के दौरान पानी पिया, जो गलत संदेश देता है। अल्लाह के सामने उन्हें इसका जवाब देना होगा।"
उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई और कई लोगों ने इसका कड़ा विरोध किया।
शमी के समर्थन में आए अन्य मुस्लिम धर्मगुरु
मौलाना शाहाबुद्दीन के इस बयान की आलोचना करते हुए शिया धर्मगुरु मौलाना यासूब अब्बास ने इसे "सस्ती लोकप्रियता पाने का प्रयास" बताया। उन्होंने कहा,
"बरेली के मौलाना का यह बयान केवल लोकप्रियता हासिल करने के लिए दिया गया है। जहां मजबूरी होती है, वहां धर्म में सख्ती नहीं होती। इस्लाम में किसी भी चीज़ को लेकर ज़बरदस्ती नहीं है। रोज़ा रखना हर मुस्लिम की व्यक्तिगत आस्था का विषय है और इसे विवादित नहीं बनाया जाना चाहिए।"
इसके अलावा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने भी शमी का समर्थन किया। उन्होंने स्पष्ट किया,
"कुरान में साफ लिखा है कि अगर कोई व्यक्ति यात्रा पर हो या बीमार हो, तो उसे रोज़ा न रखने की छूट है। चूंकि शमी एक टूर्नामेंट के लिए दौरे पर हैं, इसलिए उन पर रोज़ा न रखने को लेकर सवाल उठाना गलत है।"
क्रिकेट और आस्था: क्या यह बहस ज़रूरी है?
रमज़ान इस्लामी कैलेंडर का सबसे पवित्र महीना है, जिसमें मुसलमान सूर्योदय से सूर्यास्त तक उपवास (रोज़ा) रखते हैं। रोज़ा इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है और इसे आत्मसंयम, भक्ति और आध्यात्मिक चिंतन का प्रतीक माना जाता है। हालांकि, इस्लाम में यात्रा, बीमारी या असाधारण परिस्थितियों में रोज़ा न रखने की अनुमति दी गई है।
क्रिकेट जगत में भी कई मुस्लिम खिलाड़ी खेल के दौरान रोज़ा नहीं रखते। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के कई क्रिकेटरों ने अतीत में बताया है कि अत्यधिक शारीरिक श्रम के कारण वे मैच के दौरान रोज़ा नहीं रख पाते। ऐसे में केवल मोहम्मद शमी को निशाना बनाए जाने को लेकर कई लोगों ने सवाल उठाए हैं।
निष्कर्ष:
मोहम्मद शमी पर लगे आरोपों के बावजूद, क्रिकेट प्रेमियों और उनके परिवार ने इस विवाद को अनावश्यक बताया है। विशेषज्ञों का मानना है कि एक खिलाड़ी का कर्तव्य अपनी टीम और देश के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देना है। धार्मिक अनुष्ठानों का सम्मान करते हुए, यह भी महत्वपूर्ण है कि किसी की व्यक्तिगत आस्था या निर्णय को अनावश्यक विवाद का मुद्दा न बनाया जाए।
अब सभी की निगाहें 9 मार्च को होने वाले अगले मैच पर हैं, जहां शमी एक बार फिर से अपने प्रदर्शन से आलोचकों को करारा जवाब दे सकते हैं।
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