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लाल बहादुर शास्त्री: प्रधानमंत्री के रूप में ऐतिहासिक फैसले,एक विस्तृत जीवनी

 लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। वे एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ और राजनेता थे, जिन्होंने भारत के दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। उनका प्रारंभिक जीवन सादगी और कर्तव्यनिष्ठा से भरा था, जो बाद में उनके राजनीतिक जीवन की पहचान बना। शास्त्री जी के पिता शारदा प्रसाद श्रीवास्तव एक स्कूल शिक्षक थे, और माता रामदुलारी देवी थीं। जब शास्त्री जी केवल 18 महीने के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया, जिसके बाद परिवार आर्थिक संकट में आ गया। हालांकि, उनकी माँ ने यह सुनिश्चित किया कि उन्हें अच्छी शिक्षा मिले।


प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

शास्त्री जी की प्रारंभिक शिक्षा मुगलसराय और वाराणसी में हुई। वे स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी और एनी बेसेंट की शिक्षाओं से गहराई से प्रभावित थे। गांधी जी के असहयोग आंदोलन के आह्वान से प्रेरित होकर, शास्त्री जी ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए। उन्होंने काशी विद्यापीठ में दाखिला लिया, जहाँ से उन्होंने दर्शनशास्त्र और नीतिशास्त्र में प्रथम श्रेणी में डिग्री प्राप्त की। यहीं पर उन्हें "शास्त्री" की उपाधि मिली, जो उनके नाम का स्थायी हिस्सा बन गई।

 राजनीतिक जीवन

शास्त्री जी का राजनीतिक जीवन 1920 के दशक में शुरू हुआ, जब वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) में शामिल हुए और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदार बने। ब्रिटिश शासन के खिलाफ विभिन्न विरोध प्रदर्शनों और आंदोलनों में शामिल होने के कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। स्वतंत्रता के प्रति उनकी निष्ठा और समर्पण ने उन्हें कांग्रेस पार्टी के भीतर एक प्रमुख स्थान दिलाया।

1947 में भारत की आजादी के बाद, शास्त्री जी को उत्तर प्रदेश में संसदीय सचिव नियुक्त किया गया। वे तेजी से उच्च पदों पर पहुँचे और पुलिस एवं परिवहन मंत्री सहित विभिन्न मंत्रालयों का कार्यभार संभाला। रेल मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल (1952-1956) सुरक्षा और दक्षता पर उनके जोर के लिए जाना जाता है। 1956 में एक भीषण रेल दुर्घटना के बाद, शास्त्री जी ने इस घटना के लिए नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया—यह कदम उन्हें व्यापक सम्मान दिलाया।

 प्रधानमंत्री का कार्यकाल

शास्त्री जी 9 जून, 1964 को जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद भारत के प्रधानमंत्री बने। उनका कार्यकाल, हालांकि संक्षिप्त था, लेकिन उनकी नीतियों और घटनाओं ने राष्ट्र पर स्थायी प्रभाव छोड़ा।

घरेलू नीतियाँ:

शास्त्री जी ने नेहरू की समाजवादी नीतियों को जारी रखा, लेकिन साथ ही आत्मनिर्भरता और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए कई पहल भी शुरू कीं। उन्होंने श्वेत क्रांति को प्रोत्साहित किया, जो दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए एक राष्ट्रीय अभियान था, और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की स्थापना का समर्थन किया। शास्त्री जी ने हरित क्रांति को भी बढ़ावा दिया, जिसका उद्देश्य खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाना और राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना था।

शास्त्री जी की सबसे स्थायी विरासतों में से एक उनका नारा "जय जवान, जय किसान" है, जो उन्होंने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान दिया था। यह नारा राष्ट्र की सुरक्षा और समृद्धि सुनिश्चित करने में सशस्त्र बलों और कृषि क्षेत्र दोनों के महत्व को रेखांकित करता है।

विदेश नीति:

शास्त्री जी की विदेश नीति गुटनिरपेक्षता और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के प्रति प्रतिबद्धता से परिभाषित थी। हालांकि, 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध ने उनके नेतृत्व की परीक्षा ली। शास्त्री जी ने संघर्ष का निर्णायक रूप से सामना किया, जिसमें भारतीय क्षेत्र की सफलतापूर्वक रक्षा और अंततः युद्धविराम शामिल था, जिसने उनकी प्रतिष्ठा को एक मजबूत और सक्षम नेता के रूप में स्थापित किया।

युद्ध औपचारिक रूप से 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद घोषणा के साथ समाप्त हुआ, जो शास्त्री जी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच हस्ताक्षरित हुई। इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांति बहाल करना और संबंधों को सामान्य बनाना था। हालांकि, ताशकंद में अगले दिन शास्त्री जी की अचानक मृत्यु ने व्यापक अटकलों और षड्यंत्र के सिद्धांतों को जन्म दिया।

 व्यक्तिगत जीवन और विरासत

शास्त्री जी अपनी सादगी, ईमानदारी और विनम्रता के लिए जाने जाते थे। वे कम बोलने वाले, लेकिन गहरी मान्यताओं वाले व्यक्ति थे, और उनके नेतृत्व शैली में एक शांत दृढ़ता और आम आदमी के कल्याण पर ध्यान केंद्रित था। शास्त्री जी का व्यक्तिगत जीवन भी उतना ही सादगीपूर्ण था; उनका विवाह ललिता देवी से हुआ था, और दंपति के छह बच्चे थे।

11 जनवरी, 1966 को शास्त्री जी की मृत्यु राष्ट्र के लिए एक गहरी क्षति थी। उन्हें एक राष्ट्रीय नायक के रूप में स्मरण किया गया, और दिल्ली में विजय घाट स्मारक उनकी स्मृति में स्थापित किया गया। हालांकि उनका कार्यकाल संक्षिप्त था, लेकिन राष्ट्र के विकास में उनके योगदान और राष्ट्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण समय में उनके नेतृत्व ने उन्हें भारत के सबसे सम्मानित नेताओं में से एक के रूप में स्थापित किया।

 निष्कर्ष:-

लाल बहादुर शास्त्री का जीवन और करियर सादगी, ईमानदारी और लोक सेवा के प्रति समर्पण के मूल्यों का उदाहरण है। राष्ट्रीय संकट के समय उनके नेतृत्व, आर्थिक आत्मनिर्भरता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, और आम आदमी के कल्याण पर उनका जोर भारत के इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ गया है। शास्त्री जी की विरासत आज भी भारतीयों की पीढ़ियों को प्रेरित करती है, और राष्ट्र के विकास में उनके योगदान उनकी दूरदर्शिता और नेतृत्व का प्रमाण हैं।

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