भारत एक ऐसी धरती है जहां अनेकता में एकता की मिसाल दी जाती थी। लेकिन आज का सच कुछ और ही बयान करता है। नफरत और धर्म के नाम पर जो राजनैतिक शड्यंत्र रचे जा रहे हैं, उन्होंने देश के सामाजिक और सांस्कृतिक तत्वों को गहरी चोट पहुंचाई है। यह लेख इसी तत्व पर रोशनी डालेगा और यह समझेगा कि कैसे नई पीढ़ी को इन जालों से बाहर निकलकर एक नया भारत रचना होगा।
धर्म और राजनीति का मिलना: एक विषाक्त मिश्रण
आज की राजनीति में धर्म का इस्तेमाल एक शक्तिशाली हथियार बन चुका है। राजनैतिक दल अपने स्वार्थ के लिए धार्मिक भावनाएं भड़का कर मतदान लेने की रणनीति अपना चुके हैं। धर्म, जो कि व्यक्ति का व्यक्तिगत विश्वास होता है, उसका इस्तेमाल करके समाज को तोड़ने का कार्यक्रम चलाया जा रहा है। यह एक चिंता का विषय है क्योंकि इससे देश की एकता और समृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
विकास और तकनीक: किसी देश की असली पहचान
किसी भी देश की पहचान उसके विकास और तकनीकी प्रगति से होती है, न कि धर्म से। जिन देशों में प्रतिभा को बिना धर्म देखे अपनाया जाता है, वहां वास्तविक विकास होता है। विज्ञान, नवाचार और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करके ही कोई भी राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत बन सकता है। भारत को भी इस दिशा में आगे बढ़ना होगा, जहां हर व्यक्ति की योग्यता को सम्मान मिले और धर्म के नाम पर भेदभाव न हो।
जाति आधारित भेदभाव और उसका असर
पृथ्वी के अन्य देश प्रतिभा को अपनाकर, हर योग्य व्यक्ति को ऊंचे पदों पर रखकर अपनी प्रगति कर रहे हैं। लेकिन भारत में स्थिति उलट है। यहां 99% उच्च पदों पर ब्राह्मणों का कब्जा होता है, उसके बाद ठाकुर और बनिया समाज के लोग आते हैं। इस क्रम में कई जातियों और धर्मों के लोगों को उच्च पदों से दूर रखा जाता है। यह भेदभाव न केवल देश की प्रगति में बाधा डालता है, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता के आदर्शों को भी कमजोर करता है। यदि भारत को सच्चे अर्थों में वैश्विक मंच पर अग्रणी बनना है, तो इसे अपनी प्रतिभाओं को जाति और धर्म से परे देखकर अवसर देने होंगे।
नफरत का भ्रमजाल: वास्तविक मुद्दों से भटकाव
आज का भारत एक खतरनाक मोड़ पर खड़ा है, जहां नफरत को इस कदर प्रोजेक्ट किया जा चुका है कि नौजवानों को इसमें ही संतोष मिलता है। स्वास्थ्य, शिक्षा, महंगाई और रोजगार जैसे असली मुद्दे कहीं गुम हो गए हैं। इसके बजाय, एक ऐसी मानसिकता विकसित की जा रही है जहां मुगलों को कोसना, मस्जिदों की खुदाई करना और मुस्लिम व्यापारियों की दुकानों के टूटने से खुशी मनाई जाती है। यह एक दुखद सच्चाई है कि देश के लोग अपनी ऊर्जा और समय, विकास और प्रगति के बजाय 'अब्दुल' को तंग करने में खर्च कर रहे हैं।
यह स्थिति न केवल देश के भविष्य के लिए खतरनाक है, बल्कि एक पूरी पीढ़ी को नफरत के अंधकार में धकेल कर उसे बर्बाद करने जैसा है। हमें यह समझना होगा कि नफरत में शांति नहीं होती — शांति केवल समावेशिता, समानता और सामाजिक न्याय से आती है। नई पीढ़ी को इस नफरत के भ्रमजाल से बाहर निकलना होगा और देश को एकजुट करके असली मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। यही भारत की सच्ची विजय होगी।
समाज में सांस्कृतिक विविधता का सम्मान
भारत एक विविधता से भरा देश है, जहां हर राज्य, हर भाषा और हर संस्कृति का अपना अनूठा महत्व है। हमारी संस्कृति में विविधता और समावेशिता का सम्मान करना न केवल सामाजिक सामंजस्य को बढ़ाता है बल्कि आर्थिक विकास को भी गति देता है। सांस्कृतिक महोत्सवों और पारंपरिक आयोजनों के माध्यम से हम इस विविधता का जश्न मना सकते हैं और एकता की भावना को मजबूत कर सकते हैं।
शिक्षा और सामाजिक सुधार
आज की युवा पीढ़ी को सिर्फ डिग्रियां ही नहीं, बल्कि एक जागरूक और जिम्मेदार नागरिक बनने की शिक्षा भी मिलनी चाहिए। स्कूलों और विश्वविद्यालयों में नैतिक शिक्षा और सामाजिक विज्ञान को प्रमुख स्थान दिया जाना चाहिए। युवाओं को यह सिखाना आवश्यक है कि समाज में प्रेम, करुणा और भाईचारे का स्थान नफरत से कहीं ऊपर है।
मीडिया की भूमिका
मीडिया आज के समाज में एक अत्यंत शक्तिशाली माध्यम बन चुका है। दुर्भाग्यवश, आज का मीडिया भी TRP के खेल में उलझ कर समाज को नफरत और विभाजन की ओर धकेल रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि मीडिया अपनी जिम्मेदारी को समझे और सकारात्मक खबरों, सामाजिक सुधार और राष्ट्र निर्माण से जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता दे।
निष्कर्ष: एकता में शक्ति
भारत की शक्ति उसकी विविधता और एकता में निहित है। हमें यह समझना होगा कि नफरत और विभाजन से कोई देश आगे नहीं बढ़ सकता। अगर भारत को एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र बनाना है, तो हमें अपनी युवा पीढ़ी को प्रेम, सद्भाव और सामाजिक न्याय के मार्ग पर ले जाना होगा। केवल तभी हम एक ऐसा भारत बना पाएंगे, जहां हर व्यक्ति का सम्मान होगा, हर धर्म की रक्षा होगी, और हर नागरिक गर्व से कह सकेगा — हम भारतीय हैं, और हमारी सबसे बड़ी ताकत हमारी एकता है।
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