अमेरिका से अवैध प्रवासियों को वापस भेजने के लिए सैन्य विमानों का उपयोग एक असामान्य प्रक्रिया है और यह अत्यधिक महंगी भी है। हाल ही में, कोलंबिया के राष्ट्रपति ने यह स्पष्ट किया था कि वे केवल नागरिक विमानों से भेजे गए प्रवासियों को स्वीकार करेंगे। इसके बावजूद, ट्रंप प्रशासन सी-17 जैसे सैन्य विमानों का उपयोग क्यों कर रहा है? यह रिपोर्ट इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करती है।
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भारतीय अवैध प्रवासी और सैन्य विमानों से प्रत्यर्पण
संयुक्त राज्य अमेरिका से प्रत्यर्पित भारतीय प्रवासियों को लेकर एक सैन्य विमान भारत के लिए रवाना हुआ। यह सी-17 विमान, जिसमें 205 भारतीय नागरिक सवार थे, 4 फरवरी को सैन एंटोनियो, टेक्सास से प्रस्थान किया। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद, डोनाल्ड ट्रंप ने अवैध प्रवासियों पर सख्ती बरतने के अपने वादे को तेजी से लागू किया है।
सैन्य बनाम नागरिक विमान से प्रत्यर्पण की लागत
अमेरिका में आमतौर पर अवैध प्रवासियों को वापस भेजने के लिए यूएस कस्टम्स और इमिग्रेशन एनफोर्समेंट (ICE) द्वारा संचालित वाणिज्यिक चार्टर विमानों का उपयोग किया जाता है। हालाँकि, हाल के दिनों में ट्रंप प्रशासन द्वारा सैन्य विमानों का उपयोग अधिक किया जा रहा है।
लागत तुलना:
- ग्वाटेमाला के लिए हाल ही में की गई एक सैन्य प्रत्यर्पण उड़ान की लागत प्रति प्रवासी $4,675 थी।
- जबकि एक समान मार्ग पर अमेरिकी एयरलाइंस की प्रथम श्रेणी की एकतरफा टिकट की कीमत मात्र $853 थी।
- ICE के चार्टर विमानों की लागत लगभग $17,000 प्रति घंटे होती है, जो लगभग 5 घंटे की उड़ान के लिए प्रति व्यक्ति $630 होती है।
- वहीं, C-17 सैन्य परिवहन विमान को संचालित करने की लागत प्रति घंटे $28,500 होती है।
यह स्पष्ट है कि सैन्य विमान का उपयोग एक अत्यधिक महंगा विकल्प है, फिर भी इसे अपनाने के पीछे प्रशासन की अपनी रणनीति है।
ट्रंप प्रशासन द्वारा सैन्य विमानों का उपयोग क्यों?
ट्रंप प्रशासन के इस फैसले के पीछे मुख्य कारण प्रतीकात्मकता (Symbolism) है। ट्रंप अवैध प्रवासियों को "अपराधी" और "अमेरिका पर हमला करने वाले" के रूप में चित्रित करते रहे हैं। सैन्य विमानों के उपयोग से यह संदेश दिया जा रहा है कि अमेरिका इन "अपराधियों" के प्रति कठोर रुख अपनाए हुए है।
ट्रंप ने रिपब्लिकन सांसदों से कहा था:
"इतिहास में पहली बार, हम अवैध प्रवासियों को सैन्य विमानों में लोड कर रहे हैं और उन्हें वापस भेज रहे हैं... दुनिया अब हमें फिर से सम्मान देने लगी है, क्योंकि पहले वे हमें मूर्ख समझते थे।"
अमेरिकी दूतावास की प्रतिक्रिया
भारत में अमेरिकी दूतावास के प्रवक्ता ने इस मुद्दे पर सख्त प्रतिक्रिया दी है। प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका अपनी सीमाओं की सुरक्षा को लेकर बेहद गंभीर है और आव्रजन कानूनों को सख्ती से लागू कर रहा है। उन्होंने कहा:
"अवैध प्रवास जोखिम के लायक नहीं है। हम अपनी सीमा की कड़ी निगरानी कर रहे हैं और अवैध प्रवासियों को हटा रहे हैं।"
मोदी सरकार की नाकामी: प्रवासियों पर कोई हस्तक्षेप नहीं
भारत सरकार ने अमेरिका समेत विदेशों में अवैध रूप से रह रहे भारतीय नागरिकों की वैध वापसी के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्पष्ट किया कि सरकार अवैध आव्रजन का समर्थन नहीं करती और आवश्यक दस्तावेज़ों की पुष्टि के बाद भारतीय नागरिकों की वापसी की प्रक्रिया को सुगम बनाएगी।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने कहा:
"अगर कोई भारतीय नागरिक उचित दस्तावेजों के बिना विदेश में रह रहा है, तो हम उसकी वापसी की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाएंगे, बशर्ते उनकी राष्ट्रीयता की पुष्टि हो सके।"
लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के बीच, भारतीय सरकार और विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। जिस मोदी सरकार को भारतीय मीडिया ने "विश्वगुरु", "मोदी है तो मुमकिन है", "मोदी ने कर दिखाया", और "मोदी जी का डंका बज रहा है" जैसे महिमामंडनकारी नारों से सुसज्जित किया, वही सरकार अपने अवैध प्रवासी नागरिकों की रक्षा के लिए अमेरिका से एक शब्द भी नहीं बोल पाई।
ग़ौरतलब है कि चुनावों के दौरान भारतीय मीडिया ने मोदी जी को एक "अजेय नेता" और "विश्वविजेता" की छवि दी थी। लेकिन अमेरिका और ट्रंप के सामने भारत सरकार की यह चुप्पी दर्शाती है कि वास्तविकता में मोदी सरकार की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई खास प्रभावशीलता नहीं है। अमेरिकी प्रशासन ने बिना किसी विरोध के 205 भारतीयों को निर्वासित कर दिया, और भारत सरकार ने इसे लेकर कोई विशेष हस्तक्षेप नहीं किया।
निष्कर्ष:-
ट्रंप प्रशासन का सैन्य विमानों से प्रत्यर्पण का निर्णय मुख्यतः राजनीतिक और प्रतीकात्मक महत्व रखता है। यह कदम अमेरिकी जनता को यह दिखाने के लिए उठाया गया है कि प्रशासन अवैध प्रवासियों के प्रति सख्त रुख अपनाए हुए है। हालाँकि, यह रणनीति महंगी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवादास्पद साबित हो रही है।
इस घटना ने न केवल अमेरिका में अवैध प्रवासियों की स्थिति को उजागर किया है, बल्कि भारत में फैलाई गई "विश्वगुरु" की मिथ्या छवि को भी उजागर कर दिया है। प्रवासियों को निकालने के मुद्दे पर मोदी सरकार की निष्क्रियता से यह स्पष्ट हो गया है कि मोदी जी की विश्वस्तरीय मान्यता और प्रभाव उतना मजबूत नहीं है, जितना भारतीय मीडिया ने प्रचारित किया था।
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