नई दिल्ली/गुवाहाटी | 10 फरवरी 2025
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने रविवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद राज्य में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ गई है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के केंद्रीय नेतृत्व के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती उनके उत्तराधिकारी को तय करना है। सूत्रों के अनुसार, पार्टी इस निर्णय में कुछ समय लेना चाहती है ताकि आम सहमति बनाई जा सके।
राजभवन की ओर से जारी एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि राज्यपाल अजय कुमार भल्ला ने एन बीरेन सिंह को तब तक कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में बने रहने को कहा है जब तक कि वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की जाती। दिल्ली में शीर्ष स्तर पर बैठकें जारी हैं और देर रात तक इस संबंध में राज्यपाल को अगले कदम की सूचना दिए जाने की संभावना है।
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राष्ट्रपति शासन की संभावना क्यों?
सूत्रों के अनुसार, इस्तीफे के दौरान बीरेन सिंह ने विधानसभा को "निलंबित एनीमेशन" में रखने की सिफारिश की थी, जिससे विधायक उनके उत्तराधिकारी पर सहमति बना सकें। हालांकि, मौजूदा स्थिति में कोई भी नेता बहुमत वाले विधायकों का समर्थन प्राप्त नहीं कर सका है, जिससे केंद्र सरकार को राष्ट्रपति शासन लागू करने की आवश्यकता पड़ सकती है।
बीरेन सिंह के इस्तीफे के कुछ घंटों बाद ही राज्यपाल भल्ला ने विधानसभा सत्र को निरस्त करने की अधिसूचना जारी कर दी। यह सत्र सोमवार को शुरू होने वाला था, लेकिन इसे “शून्य और अमान्य” घोषित कर दिया गया।
संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार, राष्ट्रपति शासन की घोषणा को संसद के दोनों सदनों के समक्ष दो महीने के भीतर प्रस्तुत करना आवश्यक होता है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो यह स्वतः समाप्त हो जाएगा।
सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार संसद के मौजूदा बजट सत्र के चलते इस निर्णय को कुछ समय के लिए टाल सकती है। बजट सत्र का पहला भाग 13 फरवरी तक निर्धारित है, लेकिन रविदास जयंती के कारण 12 फरवरी को ही इसे स्थगित किए जाने की संभावना है। यदि राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है, तो इसकी समीक्षा संसद के अगले सत्र में ही संभव होगी, जो 10 मार्च से 4 अप्रैल तक चलेगा।
मणिपुर में पिछले दो वर्षों से जारी हिंसा पर सवाल
राज्य में पिछले दो वर्षों से जारी जातीय हिंसा को लेकर कई सामाजिक संगठनों और विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। इन संगठनों का कहना है कि मणिपुर में हिंसा को एक 'प्रायोजित रणनीति' के तहत अंजाम दिया जा रहा है, जिसमें केंद्र सरकार और राज्य सरकार की निष्क्रियता सवालों के घेरे में है।
कई संगठनों का आरोप है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के शीर्ष नेता न तो मणिपुर का दौरा कर रहे हैं और न ही इस मुद्दे पर स्पष्ट बयान दे रहे हैं। इसके अलावा, जांच एजेंसियों की निष्क्रियता को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। सिविल सोसाइटी ऑर्गनाइजेशन फोर जस्टिस (CSOJ) के प्रवक्ता ने कहा, “हमने बार-बार केंद्र से स्वतंत्र जांच की मांग की है, लेकिन अभी तक न तो कोई उच्चस्तरीय जांच शुरू की गई है और न ही किसी निष्पक्ष एजेंसी को हस्तक्षेप करने दिया गया है।"
विपक्षी दलों ने इस हिंसा को केंद्र सरकार की 'राजनीतिक रणनीति' करार दिया है। मणिपुर कांग्रेस के अध्यक्ष टी मेघाचंद्र सिंह ने कहा, “अगर राज्य सरकार की नीयत साफ होती, तो अब तक गृह मंत्री अमित शाह या खुद प्रधानमंत्री मोदी मणिपुर आते और हालात का जायजा लेते। लेकिन ऐसा न होना यह साबित करता है कि बीजेपी इस हिंसा को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रही है।”
अगले मुख्यमंत्री के नामों पर चर्चा
मणिपुर विधानसभा अध्यक्ष थोखचोम सत्यब्रत सिंह और शहरी विकास मंत्री युमनाम खेमचंद के नाम संभावित मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवारों के रूप में सामने आ रहे हैं। हालांकि, बीजेपी के सूत्रों का कहना है कि अंतिम निर्णय व्यापक चर्चा के बाद ही लिया जाएगा।
सूत्रों के मुताबिक, प्रारंभ में चार से पांच महीने के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है और जब तक आम सहमति से नया मुख्यमंत्री नहीं चुना जाता, इसे बढ़ाया भी जा सकता है। राष्ट्रपति शासन को प्रत्येक बार अधिकतम छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है।
बीजेपी नेताओं में मतभेद
बीजेपी के एक वरिष्ठ विधायक ने कहा, “हम सभी पार्टी के अनुशासित कार्यकर्ता हैं। हमने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है जिससे पार्टी या नेतृत्व को शर्मिंदगी हो। मुझे यकीन है कि नेतृत्व इस पर चर्चा करेगा और बीरेन सिंह का उत्तराधिकारी खोजेगा।”
हालांकि, एक अन्य विधायक ने कहा कि लंबे समय तक राष्ट्रपति शासन लागू करने से बीजेपी की छवि प्रभावित हो सकती है। उन्होंने कहा, “हमारे पास 60 में से 37 विधायक हैं। हमारे सहयोगी एनपीएफ और एनपीपी के पास कुल 11 विधायक हैं। हमारी पूर्ण बहुमत वाली सरकार है। ऐसे में, राज्य की सरकार को बीजेपी ही चलाएगी। न ही कोई राजनीतिक संकट है और न ही कानून-व्यवस्था की स्थिति पहले से बदतर हुई है।”
सामुदायिक संगठनों की अलग-अलग राय
राज्य के जातीय विभाजन के दोनों पक्षों में राष्ट्रपति शासन पर अलग-अलग राय है। कुकी-जो समुदाय के संगठनों का मानना है कि केंद्र सरकार को राज्य का पूर्ण नियंत्रण अपने हाथ में ले लेना चाहिए। कुकी-जो काउंसिल के अध्यक्ष हेनलियंथांग थांगलियेत ने कहा, “बीरेन सिंह का इस्तीफा बहुत देर से आया, लेकिन अगर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है, तो यह हमारे लिए अच्छा रहेगा। अगर कोई नया नेता चुना जाता है, तो यह पुरानी शराब को नई बोतल में डालने जैसा होगा। अगर केंद्र सरकार सीधे शासन करेगी, तो हम राज्यपाल से सीधे बातचीत कर सकते हैं, जिससे ज्यादा उम्मीदें होंगी।”
वहीं, मीतेई समुदाय के नेता जीतेन्द्र निंगोम्बा, जो पहले प्रमुख मीतेई नागरिक संगठन COCOMI के समन्वयक रह चुके हैं, राष्ट्रपति शासन के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा, “मणिपुर के लोगों ने राष्ट्रपति शासन के तहत बहुत कष्ट झेले हैं और इसके खिलाफ संघर्ष किया है। यह नागरिकों के लिए स्वीकार्य नहीं है। अगर कोई नया मुख्यमंत्री बनता है, तो हमारे समाज में और अधिक विभाजन होंगे, जो दुर्भाग्यपूर्ण होगा। हमें एकता और अखंडता की आवश्यकता है।”
आगे की राह
अब सबकी नजरें बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व पर हैं कि वह इस संकट का समाधान कैसे निकालता है। क्या कोई नया मुख्यमंत्री जल्द ही नियुक्त किया जाएगा, या फिर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होगा, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट हो जाएगा।
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