अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 20 जनवरी 2025 को वॉशिंगटन डीसी स्थित यूएस कैपिटल में राष्ट्रपति पद की शपथ ली। इस ऐतिहासिक अवसर पर हजारों लोग शामिल हुए, लेकिन भारत के लिए एक चौंकाने वाली बात यह रही कि इस शपथ ग्रहण समारोह में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित नहीं किया गया।
यह घटनाक्रम इसलिए भी चौंकाने वाला है, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने हमेशा डोनाल्ड ट्रंप को अपना "सच्चा मित्र" बताया है। ट्रंप के पिछले कार्यकाल में मोदी और ट्रंप के बीच मित्रवत संबंध वैश्विक स्तर पर चर्चा का विषय बने थे। "हाउडी मोदी" और "नमस्ते ट्रंप" जैसे कार्यक्रमों ने दोनों नेताओं की दोस्ती को नया आयाम दिया था।
मोदी को न बुलाने पर भारत में चर्चा
डोनाल्ड ट्रंप के इस कदम ने भारत में राजनयिक और राजनीतिक हलकों में कई सवाल खड़े कर दिए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह ट्रंप की विदेश नीति और भारत-अमेरिका संबंधों के बदलते समीकरणों का संकेत हो सकता है। प्रधानमंत्री मोदी को आमंत्रित न करना इस बात का संकेत हो सकता है कि ट्रंप की अगली पारी में भारत-अमेरिका के रिश्तों में कुछ अनिश्चितता हो सकती है।
मोदी-ट्रंप की दोस्ती: अतीत का सफर
डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी की दोस्ती ने दोनों देशों के संबंधों को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई थी। ट्रंप ने कई मौकों पर प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ की थी, और मोदी ने भी ट्रंप को एक "सच्चा मित्र" और "महान नेता" कहा था। हालांकि, इस बार के शपथ ग्रहण में मोदी की अनुपस्थिति ने इस संबंध पर नए सवाल खड़े कर दिए हैं।
विशेषज्ञों की राय
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की प्राथमिकताएं बदल सकती हैं। उनके पिछले कार्यकाल में अमेरिका की "अमेरिका फर्स्ट" नीति ने कई अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित किया था। यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप की नई सरकार भारत के साथ कैसे संबंध स्थापित करती है।
भारत-अमेरिका संबंधों पर संभावित असर
यह घटनाक्रम भारत-अमेरिका संबंधों पर कितना प्रभाव डालेगा, यह समय बताएगा। हालांकि, यह स्पष्ट है कि ट्रंप ने इस बार की अपनी प्राथमिकताओं में एक अलग दृष्टिकोण अपनाया है। शपथ ग्रहण में नरेंद्र मोदी को न बुलाना न केवल भारत के लिए, बल्कि वैश्विक राजनीति के लिए भी एक संदेश हो सकता है।
निष्कर्ष
डोनाल्ड ट्रंप की वापसी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न बुलाए जाने की घटना ने भारत-अमेरिका संबंधों के समीकरणों को फिर से जांचने का मौका दिया है। आने वाले समय में दोनों देशों के बीच कूटनीतिक बातचीत और रिश्ते किस दिशा में जाएंगे, यह देखने लायक होगा।
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