मौलाना अबुल कलाम आज़ाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता, विचारक, और शिक्षा के महान संरक्षक थे। उन्होंने न केवल भारत की आज़ादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि स्वतंत्र भारत के निर्माण और विकास के लिए भी अपने जीवन को समर्पित किया। उनकी जीवनी भारतीय इतिहास का एक अमूल्य अध्याय है। आइए, उनके जीवन और योगदान को विस्तार से समझें।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को मक्का, सऊदी अरब में हुआ। उनके पिता, मौलाना खैरुद्दीन, एक प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान थे, और उनकी माता अरब मूल की थीं। उनका वास्तविक नाम अबुल कलाम गुलाम मोहियुद्दीन था। उनका परिवार 1890 में भारत आ गया और कोलकाता में बस गया।
मौलाना आज़ाद की प्रारंभिक शिक्षा इस्लामी धर्मग्रंथों, अरबी, फारसी और दर्शनशास्त्र में हुई। बचपन से ही वे असाधारण प्रतिभा के धनी थे और किशोरावस्था में ही उन्होंने साहित्य, इतिहास और धर्मशास्त्र में गहरी रुचि विकसित की। उन्हें बहुभाषाविद् माना जाता था; वे अरबी, फारसी, उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी में समान रूप से प्रवीण थे।
पत्रकारिता और सामाजिक सुधार
मौलाना आज़ाद ने अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए पत्रकारिता को एक माध्यम बनाया। उन्होंने 1912 में "अल-हिलाल" नामक साप्ताहिक पत्रिका की स्थापना की, जो स्वतंत्रता आंदोलन और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने में सहायक बनी। अल-हिलाल के माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नीतियों की आलोचना की और हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश दिया। यह पत्रिका जल्द ही ब्रिटिश सरकार के निशाने पर आ गई और 1914 में इसे बंद कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने "अल-बलाघ" नामक एक और पत्रिका शुरू की।
उनकी लेखनी में सामाजिक और धार्मिक सुधारों के साथ-साथ भारत की आज़ादी के प्रति अटूट संकल्प झलकता था। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि धर्म के आधार पर विभाजन भारत के लिए हानिकारक होगा।
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान
1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद, मौलाना आज़ाद ने सक्रिय रूप से भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया। वे महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रेरित हुए और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। वे 1923 में कांग्रेस के सबसे युवा अध्यक्ष बने। उनका नेतृत्व स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक के रूप में उभरा।
मौलाना आज़ाद ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया, जो मुसलमानों को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ने का एक बड़ा माध्यम बना। उन्होंने गांधीजी के साथ मिलकर सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन को पूरे देश में फैलाया। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें कई बार गिरफ्तार किया, लेकिन उनकी देशभक्ति और संकल्प को कमजोर नहीं कर पाई।
भारत छोड़ो आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम
1942 में, जब गांधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया, मौलाना आज़ाद ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें अन्य नेताओं के साथ गिरफ्तार कर लिया गया और लगभग तीन साल तक जेल में रखा गया। जेल में रहते हुए भी उन्होंने देश की आज़ादी और एकता के लिए अपने विचारों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया।
भारत का विभाजन और मौलाना आज़ाद का दृष्टिकोण
भारत का विभाजन मौलाना आज़ाद के जीवन का एक दर्दनाक अध्याय था। उन्होंने विभाजन का विरोध किया और इसे भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी बताया। वे यह मानते थे कि धर्म के आधार पर देश का बंटवारा भारतीय संस्कृति और सभ्यता के खिलाफ है।
मौलाना आज़ाद ने मोहम्मद अली जिन्ना के पाकिस्तान की मांग का कड़ा विरोध किया और मुस्लिम लीग के सिद्धांतों को खारिज कर दिया। उन्होंने लगातार हिंदू-मुस्लिम एकता की वकालत की। विभाजन के बाद, उन्होंने मुसलमानों से भारत में रहने और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए काम करने का आग्रह किया।
स्वतंत्र भारत में योगदान
स्वतंत्रता के बाद, मौलाना आज़ाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने। उन्होंने शिक्षा को समाज के विकास और समृद्धि का आधार माना। उनके नेतृत्व में भारत में शिक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए।
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शिक्षा प्रणाली का विकास: मौलाना आज़ाद ने प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य और नि:शुल्क बनाने पर जोर दिया। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा दिया और ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों की स्थापना के लिए प्रयास किए। उन्होंने भारतीय शिक्षा प्रणाली में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की शिक्षा को शामिल किया।
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संस्थानों की स्थापना: उनके कार्यकाल के दौरान, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) की स्थापना हुई। उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की स्थापना की, जो उच्च शिक्षा के नियमन और सुधार के लिए काम करता है। उन्होंने साहित्य, कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए साहित्य अकादमी, संगीत नाटक अकादमी और ललित कला अकादमी की स्थापना की।
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यूनिवर्सिटी शिक्षा का विस्तार: मौलाना आज़ाद ने दिल्ली विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जैसे प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
लेखन और साहित्यिक योगदान
मौलाना आज़ाद न केवल एक राजनीतिज्ञ थे, बल्कि एक महान लेखक और विद्वान भी थे। उनकी कृतियाँ आज भी प्रासंगिक हैं।
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"इंडिया विंस फ्रीडम" यह पुस्तक भारत की आज़ादी और विभाजन की घटनाओं पर आधारित है। इसमें मौलाना आज़ाद ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों और दृष्टिकोण को साझा किया है।
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"ग़ुबार-ए-ख़ातिर" यह पुस्तक उनके जेल प्रवास के दौरान लिखे गए पत्रों का संग्रह है। इसमें दर्शन, धर्म और समाज से जुड़े उनके विचार शामिल हैं।
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"तर्जुमान-उल-क़ुरान" यह कुरान का उर्दू अनुवाद और व्याख्या है, जो उनकी धार्मिक विद्वता को दर्शाता है।
पुरस्कार और सम्मान
भारत सरकार ने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को उनकी सेवाओं के लिए 1992 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया। उनकी जयंती, 11 नवंबर, को हर साल राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनके नाम पर कई शैक्षणिक संस्थानों और स्मारकों का निर्माण किया गया है, जैसे कि मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज, नई दिल्ली, और मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद।
व्यक्तिगत जीवन और विचारधारा
मौलाना आज़ाद का जीवन सादगी और तपस्या का प्रतीक था। वे धर्म, संस्कृति और शिक्षा के माध्यम से समाज में सुधार लाने के लिए प्रतिबद्ध थे। उन्होंने हमेशा सत्य, अहिंसा और मानवता के सिद्धांतों का पालन किया।
उनका मानना था कि शिक्षा केवल ज्ञान अर्जित करने का माध्यम नहीं, बल्कि समाज को जागरूक और सशक्त बनाने का साधन है। उन्होंने धार्मिक और सांस्कृतिक सहिष्णुता को भारत की एकता और अखंडता का आधार बताया।
मृत्यु और विरासत
22 फरवरी 1958 को मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का निधन हो गया। उनका अंतिम विश्राम दिल्ली के जामा मस्जिद के पास है। उनकी विरासत आज भी जीवित है और भारतीय समाज और राजनीति पर उनका प्रभाव अमिट है।
निष्कर्ष
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद एक ऐसे महान नेता थे, जिन्होंने अपने पूरे जीवन को भारत की स्वतंत्रता, शिक्षा और सामाजिक सुधार के लिए समर्पित कर दिया। उनका जीवन एक प्रेरणा है, जो हमें बताता है कि एकता, समर्पण और निष्ठा के साथ असंभव को संभव बनाया जा सकता है। वे न केवल एक नेता थे, बल्कि भारतीय संस्कृति और मानवता के सच्चे प्रतीक थे। उनके विचार और योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा मार्गदर्शन करते रहेंगे।
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