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डोनाल्ड ट्रंप का एच-1बी वीज़ा पर बयान: 'हमें काबिल लोगों की ज़रूरत है

 मंगलवार को व्हाइट हाउस में आयोजित एक महत्वपूर्ण प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीज़ा कार्यक्रम को लेकर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि वे अमेरिका में काबिल लोगों को लाने के पक्षधर हैं, चाहे वे तकनीकी क्षेत्र से हों या अन्य पेशों से। उन्होंने जोर देकर कहा कि एच-1बी वीज़ा का उद्देश्य केवल तकनीकी उद्योग तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसका दायरा व्यापक होना चाहिए।


ट्रंप ने कहा, “मुझे बहस के दोनों पक्ष पसंद हैं, लेकिन मैं चाहता हूं कि हमारे देश में बेहद काबिल लोग आएं। ये वे लोग हैं, जो दूसरों को प्रशिक्षित कर सकते हैं और जिनके पास ऐसी योग्यताएं हैं, जो हमारे देश में दुर्लभ हैं। मैं इस कार्यक्रम को रोकना नहीं चाहता।”

इस कार्यक्रम में ट्रंप के साथ कई उद्योग जगत के दिग्गज भी मौजूद थे, जिनमें Oracle के सीटीओ लैरी एलिसन, Softbank के सीईओ मासायोशी सोन और Open AI के सीईओ सैम ऑल्टमैन शामिल थे। यह सभा अमेरिका के तकनीकी और व्यावसायिक जगत के लिए नीतिगत दिशा तय करने के उद्देश्य से आयोजित की गई थी।

एच-1बी वीज़ा: केवल तकनीकी क्षेत्र तक सीमित नहीं

डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीज़ा को केवल तकनीकी उद्योग तक सीमित रखने की सोच पर सवाल उठाया और इसे अन्य पेशों तक विस्तारित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अमेरिका को “काबिल और बेहतरीन” लोगों की ज़रूरत है, चाहे वे वेटर हों, वाइन विशेषज्ञ हों, या इंजीनियर। उन्होंने कहा, “हमें हर क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ लोगों की आवश्यकता है। लैरी जैसे लोगों को इंजीनियर चाहिए, NASA को भी इंजीनियर चाहिए — और ये मांग पहले से कहीं अधिक है।”

ट्रंप ने यह भी कहा कि इस वीज़ा कार्यक्रम से देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और अमेरिकी व्यवसायों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे रखने में मदद मिलेगी।

एच-1बी वीज़ा पर राजनीतिक विवाद

एच-1बी वीज़ा का मुद्दा अमेरिकी राजनीति में लंबे समय से विवादास्पद रहा है। ट्रंप के समर्थकों का एक वर्ग इसे अमेरिकी नागरिकों की नौकरियां छीनने वाला मानता है। वहीं, टेस्ला के सीईओ एलन मस्क जैसे समर्थकों का मानना है कि यह कार्यक्रम देश में वैश्विक स्तर के पेशेवरों को लाने का एक ज़रिया है।

अमेरिका में भारतीय प्रवासियों और तकनीकी पेशेवरों के लिए एच-1बी वीज़ा एक प्रमुख माध्यम है, जिसके जरिए वे अमेरिकी कंपनियों में काम करते हैं। भारत हर साल सबसे अधिक एच-1बी वीज़ा प्राप्त करने वाले देशों में शामिल होता है।

जन्मसिद्ध नागरिकता पर नई नीति

एच-1बी वीज़ा पर ट्रंप का रुख उदार दिखा, लेकिन उनके प्रशासन ने नागरिकता के संबंध में एक बड़ा बदलाव करते हुए एक नया कार्यकारी आदेश जारी किया। इस आदेश का शीर्षक है, “अमेरिकी नागरिकता के अर्थ और मूल्य की रक्षा”।

इस आदेश के तहत, अमेरिका में जन्म लेने वाले बच्चों को अब स्वचालित रूप से नागरिकता नहीं मिलेगी, जब तक कि उनके माता-पिता में से कम से कम एक अमेरिकी नागरिक या ग्रीन कार्ड धारक न हो। यह नीति 20 फरवरी से लागू होगी और इसका प्रभाव एच-1बी वीज़ा धारकों सहित सभी अस्थायी वीज़ा धारकों पर पड़ेगा।

ट्रंप ने इस फैसले को न्यायसंगत ठहराते हुए कहा, “हम अपने देश की नागरिकता के मूल्य को संरक्षित करना चाहते हैं। इस नीति का उद्देश्य केवल योग्य और दीर्घकालिक रूप से देश के प्रति प्रतिबद्ध लोगों को नागरिकता देना है।”

ट्रंप का विज़न: 'काबिलियत ही प्राथमिकता'

ट्रंप ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान यह भी कहा कि योग्य पेशेवरों को अमेरिका में लाने से अर्थव्यवस्था को फायदा होगा। उन्होंने कहा, “हम काबिल लोगों को लाना चाहते हैं। इससे न केवल व्यवसायों का विस्तार होगा, बल्कि देश की समग्र प्रगति भी होगी।”

आगे की राह

डोनाल्ड ट्रंप के इन बयानों और नई नीतियों ने अमेरिकी आव्रजन नीति पर बहस को तेज़ कर दिया है। भारतीय प्रवासियों और तकनीकी पेशेवरों पर इन नीतियों का क्या प्रभाव पड़ेगा, यह आने वाले महीनों में स्पष्ट होगा।

यह देखना दिलचस्प होगा कि कैसे ट्रंप प्रशासन इन नीतियों को लागू करता है और इसके सामाजिक एवं आर्थिक परिणाम क्या होते हैं।

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