अदाणी विवाद के बीच सवालों के घेरे में मोदी सरकार की वैश्विक साख
अमेरिकी अभियोजकों द्वारा भारतीय उद्योगपति गौतम अदाणी पर लगाए गए रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी के आरोपों ने भारत की वैश्विक छवि पर सवाल खड़े कर दिए हैं। वहीं, वैश्विक सूचकांकों और आर्थिक आंकड़ों की गिरावट ने देश के नेतृत्व की साख पर भी गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं।
भारत के गिरते अंतरराष्ट्रीय सूचकांक: आंकड़े जो परेशान करते हैं
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हंगर इंडेक्स (Global Hunger Index):
भारत 125 देशों में 111वें स्थान पर खिसक गया है, जो देश की खाद्य सुरक्षा नीति पर गंभीर सवाल खड़े करता है। -
प्रेस फ्रीडम इंडेक्स:
स्वतंत्र मीडिया के मामले में भारत का स्थान लगातार गिरता जा रहा है। वर्तमान में भारत 180 देशों में 161वें स्थान पर है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए चिंता का विषय है। -
पासपोर्ट इंडेक्स:
भारतीय पासपोर्ट की रैंकिंग 11 वर्षों में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं दिखा पाई है। वीज़ा-मुक्त यात्रा के मामले में भारत कई छोटे देशों से भी पीछे है।
भारतीय रुपया और कर्ज की मार
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रुपये की गिरावट:
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 86 के करीब पहुंच गया है, जो इतिहास के निचले स्तरों में से एक है। यह भारत की अर्थव्यवस्था पर बढ़ते बाहरी दबावों और कमजोर वित्तीय नीतियों को उजागर करता है। -
बढ़ता वैश्विक कर्ज:
भारत पर वैश्विक कर्ज तेजी से बढ़ रहा है। 2014 में भारत पर कुल बाहरी कर्ज 475 बिलियन डॉलर था, जो अब बढ़कर 640 बिलियन डॉलर के पार पहुंच गया है।
अदाणी विवाद से क्या बिगड़ेंगे संबंध?
अमेरिकी अभियोजकों के आरोप:
अदाणी समूह पर 2,100 करोड़ रुपये की रिश्वत देने का आरोप न केवल उद्योग जगत में भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है, बल्कि यह वैश्विक मंच पर भारत की पारदर्शिता और शासन पर भी सवाल खड़े करता है।
सरकार की चुप्पी:
विपक्ष ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी को लेकर सरकार पर निशाना साधा है। साथ ही, यह आरोप लगाया है कि अदाणी और अन्य बड़े उद्योगपतियों के साथ सरकार की नजदीकियां देश की छवि को नुकसान पहुंचा रही हैं।
क्या पीएम मोदी की वैश्विक साख कमजोर हो रही है?
वैश्विक नेतृत्व की कसौटी पर भारत:
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी विदेश यात्राओं और वैश्विक मंच पर उपस्थिति से "विकासशील भारत" की छवि प्रस्तुत करने की कोशिश की। लेकिन वैश्विक सूचकांकों, अर्थव्यवस्था और मानवाधिकारों के सवालों ने उनकी साख को कमजोर किया है।
विश्लेषकों का मानना है:
- अंतरराष्ट्रीय नीति: भारत की "वसुधैव कुटुंबकम" नीति के बावजूद, यूक्रेन-रूस युद्ध और चीन से बढ़ते तनाव ने भारत की स्थिति को कठिन बना दिया है।
- आर्थिक आंकड़े: रुपये की गिरावट और बढ़ते कर्ज से "मजबूत भारत" की छवि धूमिल हो रही है।
क्या भारत का वैश्विक नेतृत्व संकट में है?
- अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने भारत को "दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण देश" बताया, लेकिन क्या यह बयान भारत की वास्तविक स्थिति को प्रतिबिंबित करता है?
- प्रधानमंत्री मोदी और डोनाल्ड ट्रंप की नजदीकियों के बावजूद, यह देखना बाकी है कि ट्रंप के आगामी शपथग्रहण समारोह में मोदी को आमंत्रित किया जाएगा या नहीं।
क्या भारत इस संकट से उबर पाएगा?
भारत और अमेरिका के बीच मजबूत कूटनीतिक और व्यापारिक साझेदारी के बावजूद, देश के भीतर गिरते सूचकांक और विवादों ने नेतृत्व की चुनौती को और बढ़ा दिया है।