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महाराष्ट्र में बीजेपी के चुनावी वादे हुए झूठे: लाड़ली बहना और पीएम किसान लाभार्थियों को बताया अपात्र

बीजेपी के लिए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में लाड़ली बहना योजना और पीएम किसान सम्मान निधि जैसी योजनाएं प्रमुख चुनावी मुद्दे बनीं। इन योजनाओं के दम पर महायुति ने सत्ता में आने का दावा किया था, लेकिन अब इन योजनाओं के लाखों लाभार्थियों को अयोग्य घोषित किया जा रहा है और उनसे वसूली की योजना बनाई जा रही है। यह स्थिति महज महाराष्ट्र तक सीमित नहीं रही, बल्कि अन्य राज्यों में किए गए चुनावी वादे भी झूठे साबित हो रहे हैं।

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लाड़ली बहना योजना की समीक्षा में घोटाले का संदेह
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 30 लाख महिलाओं को चुनाव बाद लाड़ली बहना योजना के लाभ से वंचित कर दिया गया है। चुनाव से पहले इन महिलाओं को हर महीने ₹1,500 की छह किस्तें मिल रही थीं। अब, सरकार का कहना है कि ये महिलाएं योजना के लिए अपात्र हैं। वहीं, पीएम किसान योजना के तहत राज्य के 12 लाख किसानों को भी अयोग्य घोषित किया गया है, जिनसे अब ₹4,000 करोड़ से अधिक की वसूली की जाएगी। यह रकम राज्य के वित्तीय संकट को और भी गंभीर बना रही है, क्योंकि जून में पेश बजट में महाराष्ट्र का राजकोषीय घाटा ₹110,355 करोड़ और 2024 तक राजस्व घाटा ₹20,151 करोड़ रहने का अनुमान था।

राजस्थान और यूपी में चुनावी वादे भी निकले झूठे
महाराष्ट्र में जहां बीजेपी ने महिला वोटों को आकर्षित करने के लिए लाड़ली बहना योजना का प्रचार किया, वहीं राजस्थान में बीजेपी ने ₹450 में गैस सिलेंडर देने का वादा किया था, जो अब तक पूरा नहीं हुआ। चुनावों के बाद भी यह वादा हवा हवाई ही साबित हुआ है। उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने जो चुनावी वादे किए थे, वे भी किसी काम के नहीं निकले। बेरोजगारी, किसानों की समस्याएं और महंगाई जैसे मुद्दों पर किए गए वादे हवा में उड़ते नजर आए हैं।

प्रधानमंत्री मोदी के बड़े वादों का क्या हुआ?
प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान यह वादा किया था कि हर नागरिक के खाते में ₹15 लाख आएंगे, लेकिन यह वादा भी अब तक सिर्फ चुनावी प्रचार तक सीमित दिखता है। सरकार के पक्ष में किए गए वादों को लेकर आम जनता की निराशा बढ़ती जा रही है। अब जनता इस तरह के वादों को मजाक की तरह लेती है, और बीजेपी को "बड़ी झूठी पार्टी" के तौर पर देखती है।

सवाल उठता है: क्या चुनावी वादे सिर्फ वोट बैंक के लिए थे?
यह सवाल उठता है कि क्या बीजेपी ने सिर्फ वोटों के लिए इन योजनाओं का सहारा लिया था? क्या चुनावी वादे बिना किसी ठोस योजना के केवल पब्लिसिटी स्टंट थे? क्या महिलाओं और किसानों के भरोसे का मजाक उड़ाया गया?

यह स्थिति एक गंभीर राजनीतिक और प्रशासनिक संकट का रूप ले चुकी है, और आम जनता का विश्वास सरकार से उठता जा रहा है। जबकि सरकार वसूली की प्रक्रिया में जुटी है, वहीं विपक्ष इसे "धोखाधड़ी" करार दे रहा है और जनता से किए गए वादों का विरोध कर रहा है।

निष्कर्ष:
इन परिस्थितियों में, बीजेपी की चुनावी रणनीति पर सवाल उठने लगे हैं। जनता का ध्यान अब इस बात पर केंद्रित हो चुका है कि क्या वाकई बीजेपी अपने वादों को पूरा करने में सक्षम है, या फिर ये सब केवल चुनावी धाँधली और झूठे वादों का हिस्सा थे।

यह रिपोर्ट विश्वसनीय स्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर तैयार की गई है, जिसमें निष्पक्षता और सटीकता की कोशिश की गई है।

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