उत्तर प्रदेश के संभल जिले में बीते कुछ दिनों में दो घटनाओं ने सुर्खियां बटोरीं। पहला मामला एक पुराने मंदिर का है, जिसे हाल ही में खोलने और संरक्षित करने का दावा किया गया। दूसरा मामला संभल के चंदौसी इलाके में एक ऐतिहासिक बावली की खुदाई से जुड़ा है। इन दोनों घटनाओं को लेकर प्रशासन, स्थानीय लोग, और मीडिया के अलग-अलग रुख ने माहौल को और जटिल बना दिया है। सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ ऐतिहासिक खोज का मामला है, या इन घटनाओं के पीछे कोई राजनीतिक और सांप्रदायिक एजेंडा काम कर रहा है?
पहला मामला: बंद मंदिर और सांप्रदायिक विवाद
संभल के एक इलाके में वर्षों से बंद पड़े एक मंदिर को हाल ही में प्रशासन द्वारा फिर से खोलने का निर्णय लिया गया। मंदिर के बारे में दावा किया गया कि यह हिंदू धर्म की एक प्राचीन धरोहर है, जिसे पुनर्जीवित करना आवश्यक है।
मंदिर से जुड़े तथ्य:
- मंदिर के ताले एक हिंदू परिवार द्वारा खोले गए, जिनके पास इसकी चाबियां थीं।
- मंदिर के अंदर की सभी मूर्तियाँ सुरक्षित मिलीं, और अंतिम बार इसे 2016 में खोला गया था।
- स्थानीय निवासियों ने स्पष्ट किया कि इस मंदिर पर किसी भी समुदाय द्वारा अतिक्रमण नहीं किया गया था।
मीडिया और प्रशासन का रुख:
- प्रशासन और मुख्यधारा मीडिया ने इस घटना को ऐसे प्रस्तुत किया, मानो यह मंदिर "हिंदू धर्म के गौरव" की पुनर्स्थापना का प्रतीक हो।
- कई रिपोर्ट्स में इसे सांप्रदायिक रंग देते हुए मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने की कोशिश की गई।
- जब प्रशासन को सांप्रदायिक जुड़ाव का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला, तो बिजली चेकिंग और अतिक्रमण के नाम पर मुस्लिम घरों की नालियों की पेरियों को तोड़ने की कार्रवाई शुरू कर दी गई।
यह मामला एक उदाहरण है कि कैसे एक साधारण संरचनात्मक घटना को सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
दूसरा मामला: चंदौसी में बावली की खुदाई
चंदौसी इलाके में एक प्राचीन बावली की खुदाई ने इतिहासकारों और स्थानीय प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया। 12 फीट तक खुदाई के बाद इस बावली की पहली मंजिल का तल मिलने का दावा किया गया।
खुदाई से जुड़े तथ्य:
- यह बावली उस जमीन पर पाई गई जिसे मुस्लिम समुदाय ने खरीदा था।
- पुरातत्व विभाग (ASI) ने अब तक यह स्पष्ट किया है कि इस बावली का हिंदू धर्म से कोई संबंध साबित नहीं हुआ है।
- स्थानीय लोग इसे ऐतिहासिक संरचना मानते हैं, लेकिन धार्मिक जुड़ाव पर किसी ठोस सबूत का अभाव है।
मीडिया की भूमिका:
- मीडिया ने बावली की खुदाई को "रहस्यमय हिंदू धरोहर की खोज" के रूप में प्रचारित किया।
- कई रिपोर्ट्स में इसे एक ऐतिहासिक खोज से अधिक, सांप्रदायिक दावे के रूप में प्रस्तुत किया गया।
स्थानीय विवाद:
जब बावली के हिंदू धर्म से संबंध का कोई प्रमाण नहीं मिला, तो प्रशासन ने अपनी कार्रवाई को अन्य तरीकों से जारी रखा। बिजली कनेक्शन और अन्य छोटे मुद्दों को बहाना बनाकर मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया गया।
दोनों घटनाओं का विश्लेषण
सांप्रदायिकता बनाम इतिहास:
- दोनों घटनाओं में इतिहास और धरोहर की खोज एक सकारात्मक पहल हो सकती थी।
- लेकिन प्रशासन और मीडिया के कुछ हिस्सों ने इन्हें सांप्रदायिक रंग देकर समाज में तनाव पैदा किया।
प्रशासनिक उद्देश्य:
- आलोचकों का मानना है कि यह सब उत्तर प्रदेश सरकार के राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा हो सकता है।
- अधिकारियों की ओर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को खुश करने के प्रयास में निष्पक्षता और नैतिकता की अनदेखी की जा रही है।
मीडिया की जिम्मेदारी:
- मुख्यधारा मीडिया ने इन घटनाओं को संतुलित और तथ्यात्मक रूप से रिपोर्ट करने के बजाय, सनसनीखेज हेडलाइंस और सांप्रदायिक नैरेटिव को प्राथमिकता दी।
- यह समाज में पहले से मौजूद अविश्वास और नफरत को और गहरा करता है।
निष्कर्ष और सवाल
-
क्या यह घटनाएँ सिर्फ इतिहास की खोज हैं?
अगर ऐसा है, तो इन्हें पारदर्शिता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अंजाम देना चाहिए। -
क्या यह राजनीति और सांप्रदायिकता का खेल है?
यदि प्रशासन और मीडिया इसे किसी समुदाय को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, तो यह लोकतंत्र और सामाजिक एकता के लिए खतरा है। -
मीडिया की भूमिका पर पुनर्विचार:
मीडिया को चाहिए कि वह अपनी जिम्मेदारी समझे और समाज में शांति बनाए रखने के लिए निष्पक्षता और सच्चाई को प्राथमिकता दे
आखिरी सवाल:
क्या हम इतिहास को केवल इतिहास के रूप में देख पाएंगे, या इसे राजनीति और सांप्रदायिकता का साधन बनाया जाएगा? यह केवल प्रशासन और मीडिया पर नहीं, बल्कि समाज के प्रत्येक नागरिक पर भी निर्भर करता है।