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संभल की जामा मस्जिद विवाद और धर्म आधारित राजनीति के खतरनाक परिणाम



भारत में धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद और राजनीतिक दखलंदाजी लगातार बढ़ रही है। उत्तर प्रदेश के संभल जिले की जामा मस्जिद पर हाल ही में दावा किया गया कि यह "श्रीहरिहर मंदिर" था। इस दावे पर हिंदू पक्ष ने कोर्ट में याचिका दायर की, जिसके बाद अदालत ने मस्जिद का दो घंटे का सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया। 



बाबरी मस्जिद के बाद बढ़ते विवाद


बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद देश में कई मस्जिदों पर मंदिर होने के दावे सामने आए हैं। ऐसे विवाद धार्मिक भावनाओं को आहत करने के साथ-साथ सामाजिक ध्रुवीकरण का भी कारण बन रहे हैं। आलोचकों का कहना है कि इस तरह के दावे न केवल इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने की कोशिश हैं, बल्कि राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है। 

धर्म के नाम पर बढ़ती राजनीति ने देश में एक अस्थिरता का माहौल बना दिया है। धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाले इस तरह के मुद्दे समाज के हर क्षेत्र को प्रभावित कर रहे हैं। उद्योग-धंधे, शिक्षा, और रोजगार पर इसका सीधा प्रभाव दिख रहा है। 

नफरत की राजनीति के परिणाम


ऐसे विवादों के पीछे असली उद्देश्य धार्मिक आस्था से अधिक राजनीतिक लाभ प्रतीत होता है। बाबरी मस्जिद के फैसले के बाद से विभिन्न संगठनों द्वारा ऐतिहासिक स्थलों को लेकर इसी प्रकार के दावे किए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की ईदगाह मस्जिद पर विवाद खड़ा किया गया है। 

नफरत के इस माहौल का प्रभाव समाज पर दीर्घकालिक और गहरा है। इन विवादों से:

1. सामाजिक सौहार्द पर चोट:

 भारत की विविधता और सांप्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुंच रहा है। दो समुदायों के बीच बढ़ती दूरी से नफरत की राजनीति को बढ़ावा मिल रहा है।
   

2. आर्थिक नुकसान:

नफरत और तनाव का माहौल व्यापार, उद्योग, और रोजगार पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। सांप्रदायिक तनाव के चलते बाजार सुस्त पड़ जाते हैं और विदेशी निवेश प्रभावित होता है। 

3. शिक्षा पर असर: 

जब समाज में अशांति होती है, तो इसका सीधा असर बच्चों की पढ़ाई और भविष्य पर पड़ता है। स्कूलों और कॉलेजों का माहौल खराब होता है और छात्रों में असुरक्षा की भावना बढ़ती है।

बौद्ध धर्मावलंबियों के दावे और शांत रुख


ऐसे विवादों को लेकर एक अन्य दृष्टिकोण यह है कि बौद्ध धर्मावलंबी भी देश के कई ऐतिहासिक मंदिरों पर दावा करते रहे हैं। हालांकि, उनके दावों पर न तो कोई याचिका स्वीकार की गई और न ही किसी मंदिर की जांच हुई। बौद्ध साहित्य में प्रमाण होने के बावजूद उन्होंने इन विवादों को मुद्दा बनाने से परहेज किया है। 

ध्यान देने योग्य बात यह है कि इतिहास के गड़े मुर्दे उखाड़ने का यह सिलसिला कहीं खत्म नहीं होता। यह केवल समाज में अशांति और अराजकता का कारण बनता है। 

राजनीतिक लाभ बनाम समाज का नुकसान


इस तरह के विवाद समाज के लिए बेहद खतरनाक हैं। एक ओर जहां नफरत फैलाने वाले लोग अपना राजनीतिक हित साधते हैं, वहीं दूसरी ओर इसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता है। 

धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद न केवल एक समुदाय को आहत करता है, बल्कि देश के समग्र विकास को भी प्रभावित करता है। नेताओं को चाहिए कि वे इस तरह की राजनीति से बचें और समाज में एकता और सौहार्द बनाए रखने के प्रयास करें। 

समाज को क्या सीखने की जरूरत है


ऐसे विवादों को लेकर जनता को सचेत और सतर्क रहने की जरूरत है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि इन मुद्दों को भड़काकर असल समस्याओं से ध्यान हटाया जा रहा है। धार्मिक मुद्दों पर राजनीति करने वालों को पहचानकर उनके उद्देश्यों को विफल करना ही देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए आवश्यक है। 

समाज को ऐसे विषयों पर चर्चा करते समय तथ्यों और प्रमाणों पर आधारित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, न कि किसी विशेष राजनीतिक एजेंडे के प्रभाव में आना चाहिए। इससे न केवल साम्प्रदायिक सौहार्द बना रहेगा, बल्कि देश विकास के पथ पर निरंतर अग्रसर होगा। 

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