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संसद में राहुल गांधी के तीखे सवाल और चार बड़े प्रस्ताव: चुनाव आयोग की स्वायत्तता, CCTV फुटेज और EVM पारदर्शिता पर विपक्ष का हमला

 12 दिसम्बर 2025 |✍🏻 Z S Razzaqi |वरिष्ठ पत्रकार   

लोकसभा में मंगलवार को चुनाव आयोग की स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न (SIR) पर चल रही बहस उस समय तीखी हो गई जब विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने केंद्र सरकार से तीन बेहद संवेदनशील सवाल पूछे और उसके बाद चार अहम मांगें रखीं। बहस के दौरान उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव सुधारों के नाम पर ऐसे बदलाव किए जा रहे हैं जो लोकतंत्र की विश्वसनीयता और चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को गहरा नुकसान पहुँचा सकते हैं।

राहुल गांधी ने कहा कि चुनावों के दौरान रिकॉर्ड किए गए CCTV फुटेज को 45 दिनों में नष्ट करने का निर्देश “डेटा का मामला नहीं, बल्कि चुनाव चोरी का मामला” है। उन्होंने इसे चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सीधा हमला बताया।


राहुल गांधी के तीन प्रमुख सवाल

राहुल गांधी ने कहा कि ये तीन सवाल “स्पष्ट कर देंगे कि किस प्रकार सरकार चुनाव आयोग का इस्तेमाल करके भारत के लोकतंत्र को कमजोर कर रही है।”

1. मुख्य न्यायाधीश को चयन समिति से हटाने पर सवाल

राहुल गांधी का पहला प्रश्न था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करने वाली समिति से CJI को क्यों हटाया गया?

उन्होंने पूछा कि जब CJI जैसे निष्पक्ष संवैधानिक पद को इस प्रक्रिया से हटाया गया तो इसका उद्देश्य क्या था? उनके अनुसार, “प्रधानमंत्री और गृहमंत्री चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर इतना नियंत्रण क्यों चाहते हैं? इसकी क्या आवश्यकता है?”

उन्होंने यह भी कहा कि वह LoP के रूप में उस समिति का हिस्सा तो हैं, लेकिन प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के सामने उनकी आवाज़ दब जाती है और तथ्यात्मक रूप से निर्णय उन्हीं के हाथ में रहता है।


2. चुनाव आयुक्तों को ‘पूर्ण प्रतिरक्षा’ (Immunity) देने का विवाद

दूसरा सवाल उन्होंने 2023 में किए गए उस कानूनी संशोधन पर उठाया जिसके तहत चुनाव आयुक्तों को उनके किसी भी निर्णय के लिए जवाबदेही से लगभग मुक्त कर दिया गया।

उन्होंने पूछा:
“प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने चुनाव आयुक्तों को यह अभूतपूर्व संरक्षण क्यों दिया? भारत के इतिहास में कभी किसी प्रधानमंत्री ने ऐसा कदम नहीं उठाया। इसकी जरूरत आखिर क्या थी?”

इस संशोधन के बाद चुनाव आयुक्तों को किसी भी कानूनी कार्यवाही से प्रतिरक्षित कर दिया गया—यह विपक्ष के अनुसार चुनाव आयोग की जवाबदेही समाप्त करने की दिशा में बड़ा कदम है।


3. चुनाव के CCTV फुटेज को 45 दिनों में मिटाने का निर्णय

राहुल गांधी का तीसरा सवाल सबसे विवादास्पद था। उन्होंने कहा कि कानून में ऐसा प्रावधान क्यों जोड़ा गया कि चुनावों के 45 दिनों बाद CCTV फुटेज को नष्ट किया जा सके?

उन्होंने सरकार के तर्क—“डेटा संरक्षण”—को खारिज करते हुए कहा कि यह डेटा का मामला नहीं बल्कि पारदर्शिता ख़त्म करके चुनावी प्रक्रिया को अपारदर्शी बनाने की कोशिश है।

उनके शब्दों में:
“यह डेटा की बात नहीं है, यह चुनाव चोरी की बात है।”


राहुल गांधी की चार बड़ी मांगें

तीन सवाल पूछने के बाद राहुल गांधी ने चार प्रमुख मांगें रखीं, जिन्हें उन्होंने “लोकतांत्रिक चुनाव सुधार” बताया।

1. चुनाव से एक माह पहले मशीन-रीडेबल मतदाता सूची

सभी राजनीतिक दलों को चुनाव से एक महीने पहले मशीन-रीडेबल, संरचित और सत्यापित मतदाता सूची उपलब्ध कराई जाए, जिससे सटीकता सुनिश्चित हो सके और गड़बड़ी रोकी जा सके।

2. CCTV फुटेज नष्ट करने वाला कानून वापस लिया जाए

उन्होंने कहा कि चुनाव से जुड़ा वीडियो फुटेज चुनाव प्रक्रिया की सबसे महत्वपूर्ण सुरक्षा परत है, और इसे नष्ट करना किसी भी परिस्थिति में स्वीकार्य नहीं होना चाहिए।

3. EVM की पूरी ‘आर्किटेक्चर’ सार्वजनिक की जाए

राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि आज तक विपक्ष या विशेषज्ञों को EVM की आंतरिक संरचना, कोड, हार्डवेयर और सुरक्षा प्रोटोकॉल देखने की अनुमति नहीं दी गई।

उन्होंने मांग की कि:
“EVM खोलकर विशेषज्ञों को दिखाया जाए कि उसके अंदर क्या है। पारदर्शिता के बिना विश्वास संभव नहीं।”

4. चुनाव आयुक्तों को मिली ‘इम्यूनिटी’ संशोधित की जाए

उनका कहना था कि EC को कानून से मिले पूर्ण संरक्षण से जवाबदेही खत्म हो जाती है। उन्होंने वादा किया कि विपक्ष इस कानून को बदलने की दिशा में काम करेगा। उनके शब्दों ने सदन में हलचल पैदा कर दी:
“हम यह कानून बदलकर आएँगे—और फिर हम आपको खोजेंगे।”


चुनाव आयोग की सफाई: क्यों सीमित की गई CCTV फुटेज की पहुंच?

जून 2025 में चुनाव आयोग ने कहा था कि CCTV, वेबकास्ट या वीडियोग्राफी से रिकॉर्ड हुआ फुटेज सिर्फ हाई कोर्ट में चुनाव याचिका की सुनवाई के दौरान ही देखा जा सकता है।

EC का कहना था कि:

  • फुटेज सार्वजनिक होने पर मतदाताओं की पहचान उजागर हो सकती है,

  • इससे मतदाता दबाव, धमकी, भेदभाव और सुरक्षा जोखिमों का सामना कर सकते हैं,

  • इसलिए यह फुटेज केवल न्यायिक प्रक्रिया के लिए सीमित किया गया है।


चुनाव आयुक्तों को प्रतिरक्षा देने वाले कानून का विवरण

CEC और ECs की नियुक्ति और सेवा शर्तों संबंधी अधिनियम, 2023 की धारा 16 कहती है:

कोई भी अदालत CEC या EC के उस किसी भी कार्य, निर्णय या बयान पर कोई भी सिविल या क्रिमिनल कार्यवाही शुरू नहीं कर सकती, जो उन्होंने अपने आधिकारिक दायित्व निभाते हुए किया हो।

धारा 11(2) के अनुसार,
CEC को केवल उसी प्रक्रिया से हटाया जा सकता है जैसे सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाया जाता है—अर्थात् बेहद कठोर और जटिल प्रक्रिया।

अन्य चुनाव आयुक्तों को हटाने का अधिकार केवल CEC की अनुशंसा पर निर्भर है।


मुद्दे की जड़: चुनाव आयोग की स्वतंत्रता पर बहस

यह संपूर्ण बहस केवल तकनीकी पहलुओं तक सीमित नहीं थी। यह लोकतंत्र की आत्मा—चुनाव आयोग की स्वायत्तता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता—से जुड़ी है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार संवैधानिक संस्थाओं को नियंत्रित कर रही है, जबकि सरकार का दावा है कि ये कदम “प्रशासनिक सुधार” और “डेटा सुरक्षा” के लिए आवश्यक हैं।

बहस के बाद भी सवालों की गर्मी कम नहीं हुई, बल्कि अब यह मुद्दा व्यापक राजनीतिक विमर्श का केंद्र बन चुका है।






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