4 दिसंबर 2025 |✍🏻 Z S Razzaqi |वरिष्ठ पत्रकार
भारत में दिसंबर 2025 की शुरुआत ऐसे समय में हुई जब भारतीय रुपया लगातार नए निचले स्तर पर फिसलता गया। डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में आई गिरावट केवल एक करेंसी का उतार नहीं, बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था की स्थिति का सटीक प्रतिबिंब है। यह गिरावट देश के वित्तीय प्रबंधन, व्यापार नीतियों, निवेश वातावरण और सरकारी आर्थिक दृष्टिकोण पर गंभीर सवाल खड़ा करती है।
इस व्यापक रिपोर्ट में हम समझेंगे कि रुपया क्यों गिर रहा है, इसके प्रभाव क्या हैं, और भारत की आर्थिक दिशा इससे किस ओर मुड़ रही है।
रुपया क्यों गिरा: गहराई में छिपी असली वजहें
विदेशी निवेश का पलायन
2025 में भारत से विदेशी पूंजी का बड़े पैमाने पर बाहर जाना रुपये की कमजोरी का मुख्य कारण बना। विदेशी निवेशकों को वित्तीय अस्थिरता के संकेत दिखे और उन्होंने अपनी पूंजी सुरक्षित बाजारों में निकालना शुरू कर दिया। विदेशी निवेश के निकलते ही डॉलर की मांग बढ़ती है और रुपया गिरता है। यह निवेशकों के भरोसे में आई कमी का सीधा संकेत है।
बढ़ता व्यापार घाटा
भारत हर वर्ष बड़ी मात्रा में कच्चा तेल, इलेक्ट्रॉनिक सामान, मशीनें और औद्योगिक कच्चा माल आयात करता है। आयात की लागत बढ़ने का मतलब है कि डॉलर की मांग लगातार ऊंची बनी रहती है। दूसरी तरफ निर्यात की गति अपेक्षित स्तर तक नहीं बढ़ पाई, जिससे व्यापार घाटा और चौड़ा हो गया। यह घाटा रुपये पर निरंतर दबाव बनाता है।
वैश्विक आर्थिक उठापटक
विश्व बाजार में अमेरिकी डॉलर की मजबूती, अंतरराष्ट्रीय ब्याज दरों की बढ़ोतरी और यूरोप तथा एशिया के कई देशों में आर्थिक मंदी ने भारतीय रुपये को और कमजोर बना दिया। जब दुनिया अनिश्चितता से जूझ रही होती है, तो निवेशक सुरक्षित संपत्तियों की ओर भागते हैं, और सबसे पहले उभरती अर्थव्यवस्थाएं दबाव में आती हैं।
रुपये की गिरावट का सीधा असर: आम नागरिक की जेब पर डाका
रुपये की गिरावट का सबसे बड़ा असर सीधा जनता की जिंदगी पर पड़ता है। यह महंगाई को और तेज कर देता है, क्योंकि देश जिन वस्तुओं का आयात करता है, उनकी कीमत बढ़ जाती है।
रोजमर्रा की वस्तुएं महंगी
पेट्रोल, डीजल, खाद्य तेल, दवाइयां, गैजेट्स, मोबाइल फोन, लैपटॉप, घरेलू उपकरण—इन सभी की कीमतें बढ़ जाती हैं। क्योंकि इनका उत्पादन या तो डॉलर आधारित कच्चे माल पर निर्भर है या सीधे आयात पर।
विदेश में पढ़ाई और यात्रा और महंगी
जो छात्र विदेश में पढ़ाई की योजना बना रहे हैं, उनके लिए खर्च बहुत बढ़ गया है, क्योंकि ट्यूशन फीस डॉलर में चुकाई जाती है। विदेश यात्रा, होटल, टिकट और स्थानीय खर्च सब महंगे हो जाते हैं।
कंपनियों का कर्ज महंगा
कई भारतीय कंपनियां विदेशी मुद्रा में कर्ज लेती हैं। रुपये के कमजोर होने का सीधा मतलब यह कर्ज महंगा होना है। कंपनियों को ज्यादा भुगतान करना पड़ता है, जिससे उनका मुनाफा घटता है और वे लागत उपभोक्ता पर डालती हैं। यह महंगाई को और बढ़ाता है।
क्या रुपया गिरना केवल आर्थिक मुद्दा है या नीतिगत नाकामी?
रुपये का लगातार कमजोर होना इस बात का संकेत है कि देश की आर्थिक नीतियां वास्तविक जरूरतों के अनुरूप नहीं चल रहीं। सरकार की प्राथमिकताएं बड़े कार्यक्रम, घोषणाओं, विज्ञापनों और आंकड़ों की चमक में उलझी रहीं, जबकि जमीन की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे अपनी पकड़ खोती गई।
आर्थिक सुधारों की कमी
देश में रोजगार सृजन, घरेलू विनिर्माण, बुनियादी ढांचे और निवेश आकर्षण जैसी बुनियादी आर्थिक जरुरतों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। इससे अर्थव्यवस्था मजबूत आधार नहीं बना पाई।
आयात पर निर्भरता कम करने में विफलता
वर्षों से आयात पर निर्भरता कम करने की नीतियों की बातें होती रही हैं, लेकिन तेल, गैस, और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से लेकर उद्योगों के कच्चे माल तक—भारत अभी भी बाहरी बाजारों पर भारी निर्भर है। यह निर्भरता रुपये को कमजोर बनाती है।
नीतिगत अनिश्चितता
कई महत्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्रों में नीति बदलने की गति, निर्णयों की अस्पष्टता और निवेशकों की सुरक्षा को लेकर अस्पष्ट माहौल भी विदेशी निवेशक भरोसे में कमी लाता रहा है।
क्या भारत इससे निकल सकता है: समाधान क्या हैं
रुपये को मजबूत करना केवल एक दिन का काम नहीं है। इसके लिए दीर्घकालिक, गंभीर और साहसिक कदमों की आवश्यकता है।
आयात निर्भरता घटाना
घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा, तकनीकी उद्योगों में बड़ा निवेश और ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता—ये तीन कदम भारत को मजबूत आधार दे सकते हैं।
विदेशी निवेश को सुरक्षित माहौल
स्थिर नीतियां, पारदर्शी प्रणाली, निवेश सुरक्षा और कर ढांचे को सरल बनाना विदेशी निवेश को मजबूत रख सकता है।
निर्यात सुधार और विविधता
सिर्फ पारंपरिक उत्पादों पर निर्भरता छोड़कर उच्च तकनीक, मशीनरी, फार्मा और सेवा निर्यात के नए क्षेत्रों में विस्तार जरूरी है।
महंगाई पर सख्त नियंत्रण
रिजर्व बैंक और सरकार दोनों को मिलकर मुद्रास्फीति नियंत्रित करनी होगी, ताकि उपभोक्ताओं पर बोझ कम हो और बाजार स्थिरता बनी रहे।
निष्कर्ष:-
गिरता रुपया सिर्फ मुद्रा की समस्या नहीं, भविष्य की चेतावनी है
रुपये का आज कमजोर होना कल की आर्थिक कठिनाइयों की नींव बन सकता है। यह सिर्फ एक मुद्रा का मामला नहीं, बल्कि राष्ट्र की आर्थिक सेहत की चेतावनी है। अगर आज मजबूत नीतियां, ठोस कदम और कठोर सुधार लागू नहीं किए गए, तो आने वाले वर्षों में आर्थिक दबाव बढ़ता जाएगा।
रुपये की गिरावट हमें यह संदेश देती है कि देश को अब प्रचार नहीं, प्रबंधन चाहिए। नारे नहीं, नीति चाहिए। चमक नहीं, स्थिरता चाहिए। और एक ऐसी आर्थिक दृष्टि चाहिए जो भविष्य को संरक्षित करे, न कि वर्तमान को संभालने का दिखावा।
