7 दिसंबर 2025 |✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
गाज़ा पर लगातार हमलों और संघर्षविराम के सैकड़ों उल्लंघनों के बीच सीमा-नीति पर भारी कूटनीतिक टकरावमध्य पूर्व में तनाव अपनी चरम सीमा पर है। इज़राइल द्वारा गाज़ा और मिस्र की सीमा पर स्थित रणनीतिक और बेहद संवेदनशील रफ़ाह बॉर्डर क्रॉसिंग को केवल एकतरफ़ा ‘एग्ज़िट-ओनली’ मार्ग में तब्दील करने की घोषणा ने अरब और मुस्लिम देशों में गहरी चिंता पैदा कर दी है। इस नए प्रस्तावित नियम के अनुसार:
संघर्षविराम कमज़ोर, हमले जारी—600 से अधिक उल्लंघनों का रिकॉर्ड
हालांकि अमेरिका-समर्थित संघर्षविराम अक्टूबर से लागू है, लेकिन पिछले सात हफ्तों में:
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600 से अधिक बार संघर्षविराम का उल्लंघन
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लगातार बमबारी और ड्रोन हमले
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उत्तरी शहर बैत लाहिया में तीन लोगों की नई मौत
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गाज़ा के विभिन्न जिलों में 20 से अधिक हवाई हमले
यह साफ़ संकेत देते हैं कि ज़मीनी स्थिति बेहद अस्थिर है और किसी भी प्रकार का वास्तविक युद्ध-विराम अस्तित्व में नहीं है।
आठ देशों का संयुक्त मोर्चा: गाज़ा की सीमा पर ‘एकतरफ़ा नीति’ का तीखा विरोध
शुक्रवार को मिस्र, क़तर, सऊदी अरब, यूएई, पाकिस्तान, तुर्किये, इंडोनेशिया और जॉर्डन के विदेश मंत्रियों ने एक ऐतिहासिक संयुक्त बयान जारी किया। इसमें कहा गया कि:
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रफ़ाह क्रॉसिंग को एकतरफा खोलने की इज़राइली योजना अंतरराष्ट्रीय कानून की धज्जियाँ उड़ाती है।
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यह प्रस्ताव “फिलिस्तीनियों को उनकी भूमि से हटाने की सीधी और स्पष्ट कोशिश” है।
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यह अमेरिका की शांति योजना (20-पॉइंट फ्रेमवर्क) के पहले चरण का घोर उल्लंघन है।
COGAT (इज़राइल की सैन्य प्रशासन इकाई) ने घोषणा की थी कि रफ़ाह केवल बाहर निकलने के लिए खोला जाएगा—और वह भी इज़राइली सुरक्षा अनुमति के बाद। इस पर मिस्र और अन्य देशों का कहना है कि सीमा पर इज़राइल की ‘कार्यक्षमता’ मानवीय कानून के बिल्कुल विपरीत है।
रफ़ाह क्रॉसिंग: इज़राइल की नई नीति के व्यापक खतरे
1. मानवीय संकट और तीव्र होगा
रफ़ाह वह एकमात्र मार्ग है जिससे:
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दवाइयाँ, भोजन, ईंधन गाज़ा पहुँचते हैं
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घायल, बुज़ुर्ग और बीमार लोगों को बाहर निकालकर उपचार दिया जाता है
इज़राइल के नए प्रस्ताव से यह सब रुक जाएगा।
2. वापसी का अधिकार खत्म—स्थायी विस्थापन का रास्ता
अगर लोग बाहर गए और वापस आने की अनुमति ना हुई, तो:
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पूरा दक्षिण गाज़ा स्थायी निर्वासित क्षेत्रों में बदल सकता है
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यह “डेमोग्राफिक रीइंजीनियरिंग” जैसा भयावह मॉडल बन सकता है
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फिलिस्तीनियों का भू-राजनीतिक अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है
3. भविष्य के दो-राष्ट्र समाधान पर घात
भूमि से विस्थापन, जनसंख्या का बिखराव और प्रशासनिक अधिकारों का खत्म होना—ये सभी कदम दो-राष्ट्र समाधान को असंभव बना सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय शांति प्रयासों का जिक्र—पर जमीन पर सन्नाटा
संयुक्त बयान में विदेश मंत्रियों ने अमेरिकी योजना का समर्थन करते हुए कहा:
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गाज़ा के लिए एक टेक्नोक्रेटिक फिलिस्तीनी सरकार
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एक बहुराष्ट्रीय स्थिरीकरण बल (ISF)
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और एक अंतरराष्ट्रीय निगरानी बोर्ड
की स्थापना आगे बढ़नी चाहिए, ताकि क्रमबद्ध रूप से शांति बहाल हो सके।
देशों ने स्पष्ट कहा कि इज़राइल इस योजना में बाधा डाल रहा है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता ख़तरे में है।
दोहा फोरम: वैश्विक कूटनीति का केंद्र बना गाज़ा
क़तर में आयोजित प्रतिष्ठित Doha Forum में गाज़ा को लेकर अभूतपूर्व चर्चा हुई।
क़तर के प्रधानमंत्री ने दो टूक कहा:
“जब तक इज़राइली सेना गाज़ा से पूरी तरह नहीं हटती, तब तक किसी भी चीज़ को Ceasefire नहीं कहा जा सकता।”
तुर्किये के विदेश मंत्री हाकान फिदान ने कहा:
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ISF की मैंडेट,
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तैनाती,
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और नियमों
पर अभी भी बातचीत जारी है, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य “इज़राइली और फिलिस्तीनी इलाकों को विभाजित कर तनाव कम करना” होना चाहिए।
इससे साफ़ होता है कि क्षेत्रीय शक्तियां गाज़ा को स्थिर करने के लिए गंभीर हैं, लेकिन इज़राइली प्रतिरोध एक बड़ा अवरोध है।
इज़राइल के हमले जारी—नए दिन की शुरुआत और अधिक मौतें
बैत लाहिया पर ड्रोन हमला
तीन नागरिक मारे गए—वे अपने खेत की तबाह हुई जमीन देखने गए थे।
20 से अधिक हवाई हमले
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पूर्वी गाज़ा शहर
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मग़ाज़ी शरणार्थी शिविर
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रफ़ाह शहर
भूमि और समुद्री हमले
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खान यूनुस के पूर्वी क्षेत्रों में टैंकों और तोपों से भारी फायरिंग
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गाज़ा तट पर मछुआरों की नावों पर गोलाबारी
इज़राइल का 50% से अधिक क्षेत्र पर नियंत्रण
इज़राइल अब गाज़ा के दक्षिण, पूर्व और उत्तरी हिस्सों पर व्यापक सैन्य नियंत्रण रखता है—यह मानचित्र पर एक भयावह वास्तविकता है।
मानवीय त्रासदी: आधुनिक इतिहास के सबसे अंधेरे अध्यायों में से एक
अक्टूबर 2023 से अब तक:
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70,125 से अधिक फ़िलिस्तीनी मारे जा चुके
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1,71,000 से अधिक घायल
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लाखों घर नष्ट
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अस्पताल, स्कूल, सड़कें, बिजली व्यवस्था—सब ध्वस्त
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गाज़ा की आधी से अधिक आबादी विस्थापित
मानवाधिकार संगठनों के अनुसार यह स्थिति 21वीं सदी की सबसे बड़ी मानवीय आपदाओं में गिनी जा सकती है।
