03 अक्टूबर 2025:✍🏻 Z S Razzaqi | वरिष्ठ पत्रकार
परिचय:
सोनम वांगचुक, वह नाम जो लद्दाख के बर्फीले पहाड़ों से निकलकर वैश्विक पटल पर नवाचार, शिक्षा सुधार और पर्यावरण संरक्षण का पर्याय बन गया। उन्हें अक्सर बॉलीवुड ब्लॉकबस्टर '3 इडियट्स' के प्रेरणास्रोत फुनसुख वांगडू के रूप में याद किया जाता है, लेकिन उनकी वास्तविक कहानी इससे कहीं अधिक गहरी और प्रभावशाली है। इंजीनियर से शिक्षाविद, और अब एक प्रमुख जलवायु कार्यकर्ता के रूप में, वांगचुक ने हमेशा स्थापित प्रणालियों को चुनौती दी है। हालांकि, हाल के दिनों में, उनका यह चुनौतीपूर्ण स्वभाव उन्हें सीधे राज्य के साथ टकराव में ले आया है, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) जैसे कठोर कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया गया है।
यह लेख सोनम वांगचुक के अभूतपूर्व योगदानों, उन्हें प्राप्त अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों, लद्दाख के संवैधानिक अधिकारों के लिए उनके विरोध प्रदर्शनों की गहन पड़ताल करता है। साथ ही, उनकी गिरफ्तारी के पीछे के कारणों, सरकारी निष्क्रियता और साजिशों के आरोपों, और "गोदी मीडिया" द्वारा उनकी छवि को कथित तौर पर धूमिल करने के प्रयासों का विस्तृत और विश्लेषणात्मक मूल्यांकन प्रस्तुत करता है। अंत में, उनकी पत्नी द्वारा सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की नवीनतम रिपोर्ट को जोड़ा गया है, जो इस जटिल गाथा में एक नया अध्याय जोड़ती है।
1. सोनम वांगचुक: नवाचार और शिक्षा क्रांति के अग्रदूत
सोनम वांगचुक का जीवन और कार्य जमीनी स्तर पर बदलाव लाने के प्रति उनके अटूट समर्पण का प्रमाण है।
1.1 SECMOL और ’ऑपरेशन न्यू होप’: शिक्षा का पुनर्गठन
प्रेरणा और स्थापना (1988): भारतीय शिक्षा प्रणाली को अक्सर 'रटंत विद्या' पर आधारित होने के लिए आलोचना की जाती है। वांगचुक ने इस समस्या को लद्दाख में गहरे से अनुभव किया। 1988 में, उन्होंने छात्रों के एक समूह के साथ मिलकर स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (SECMOL) की स्थापना की। उनका उद्देश्य केवल साक्षरता बढ़ाना नहीं था, बल्कि ऐसी शिक्षा देना था जो छात्रों को अपने पर्यावरण और संस्कृति से जोड़ते हुए व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करे।
दार्शनिक आधार: SECMOL ने एक ऐसी शिक्षा प्रणाली की वकालत की जो बच्चों को अपनी मातृभाषा, स्थानीय ज्ञान और कौशल का सम्मान करते हुए रचनात्मक रूप से सोचने के लिए प्रेरित करे। यह एक गैर-लाभकारी संगठन था जिसने "स्कूल ऑफ लाइफ" की अवधारणा को बढ़ावा दिया, जहाँ बच्चे सौर ऊर्जा से चलने वाले इको-फ्रेंडली भवनों में रहते और सीखते थे।
ऑपरेशन न्यू होप (1994): वांगचुक की दूरदर्शिता यहीं नहीं रुकी। उन्होंने सरकार, ग्रामीण समुदायों और नागरिक समाज को एक साथ लाकर "ऑपरेशन न्यू होप" लॉन्च किया। इस सहयोगात्मक प्रयास ने लद्दाख की सरकारी स्कूल प्रणाली में क्रांतिकारी सुधार किए, जिससे ड्रॉपआउट दर में कमी आई और स्थानीय बच्चों के सीखने के परिणामों में उल्लेखनीय सुधार हुआ। यह एक ऐसा मॉडल था जिसने दिखाया कि जमीनी स्तर पर समुदाय की भागीदारी से शिक्षा में कितना बड़ा बदलाव लाया जा सकता है।
1.2 आइस स्तूप: लद्दाख के जल संकट का एक अभिनव समाधान
समस्या की पहचान: लद्दाख का रेगिस्तानी इलाका अपनी कठोर जलवायु और पानी की गंभीर कमी के लिए जाना जाता है, खासकर वसंत ऋतु में जब फसलों को पानी की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है। पारंपरिक ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे थे।
अभिनव समाधान: वांगचुक ने 2014 में 'आइस स्तूप' (Ice Stupa) की अवधारणा विकसित की। यह सर्दियों के दौरान बहने वाले पानी को एकत्रित और जमा करने के लिए एक कृत्रिम शंकु के आकार का ग्लेशियर है, जो बिना किसी पंप या शक्ति के गुरुत्वाकर्षण का उपयोग करके काम करता है। यह पानी वसंत ऋतु में धीरे-धीरे पिघलता है, जिससे किसानों को सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण समय पर पानी मिल पाता है।
प्रभाव और वैश्विक पहचान: आइस स्तूप तकनीक ने लद्दाख के कई गांवों में सिंचाई के पैटर्न को बदल दिया है, जिससे कृषि उपज में वृद्धि हुई है। इस नवाचार को वैश्विक स्तर पर सराहा गया है और इसे स्विस आल्प्स जैसे अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में भी लागू करने की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। यह उनके पर्यावरण-चेतना और वैज्ञानिक सोच का प्रतीक है।
अन्य तकनीकी योगदान: वांगचुक ने भारतीय सेना के लिए सौर-ऊर्जा चालित पोर्टेबल टेंट भी विकसित किए हैं, जो अत्यधिक ऊँचाई वाले स्थानों पर सैनिकों के लिए गर्म और आरामदायक आश्रय प्रदान करते हैं। यह उनकी बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाता है।
1.3 प्रतिष्ठित पुरस्कार और वैश्विक पहचान
उनके असाधारण योगदानों के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जो उनकी दूरदर्शिता और प्रभाव को प्रमाणित करते हैं:
रेमन मैगसेसे पुरस्कार (2018): "एशिया का नोबेल पुरस्कार" माने जाने वाले इस सम्मान ने उन्हें शिक्षा और सामुदायिक विकास के क्षेत्र में उनके अग्रणी कार्य के लिए मान्यता दी।
रोलेक्स अवार्ड फॉर एंटरप्राइज (2016): आइस स्तूप परियोजना के लिए यह पुरस्कार उन्हें मिला, जिसने उनके पर्यावरण-अनुकूल नवाचार को वैश्विक मंच पर लाया।
ग्लोबल अवार्ड फॉर सस्टेनेबल आर्कीटेक्चर (2017), अशोक फेलोशिप (2002) जैसे अन्य कई सम्मानों ने उनके काम की गहराई और व्यापकता को दर्शाया है।
2. एक आविष्कारक से कार्यकर्ता तक: लद्दाख के अधिकारों की लड़ाई
370 के हटने और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश (UT) का दर्जा मिलने के बाद, सोनम वांगचुक ने लद्दाख के भविष्य को लेकर चिंताएं व्यक्त करना शुरू कर दिया।
2.1 छठी अनुसूची की मांग: लद्दाख की पहचान की लड़ाई
पृष्ठभूमि: लद्दाख को UT का दर्जा मिलने से स्थानीय लोगों में एक उम्मीद जगी थी, लेकिन जल्द ही यह चिंता भी उभरने लगी कि क्षेत्र की अनूठी संस्कृति, भूमि और पर्यावरण को बाहरी लोगों के व्यावसायिक हितों से खतरा हो सकता है।
मुख्य मांगें: वांगचुक ने लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची (Sixth Schedule) में शामिल करने की मांग उठाई। यह अनुसूची पूर्वोत्तर राज्यों के आदिवासी क्षेत्रों को विशेष अधिकार और स्वायत्तता प्रदान करती है, जिससे वे अपनी भूमि, संस्कृति और पारंपरिक कानूनों की रक्षा कर सकें। इसके अतिरिक्त, लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की भी मांग की गई।
पर्यावरण संरक्षण: वांगचुक ने तर्क दिया कि लद्दाख एक संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र है और इसे बाहरी निवेशकों और अत्यधिक पर्यटन से बचाने के लिए स्थानीय लोगों को निर्णय लेने की शक्ति देना आवश्यक है। उन्होंने चेतावनी दी कि बिना सुरक्षा के लद्दाख के ग्लेशियर, नदियाँ और अद्वितीय जैव विविधता गंभीर खतरे में पड़ जाएगी।
2.2 शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों का दौर
गांधीवादी तरीके: वांगचुक ने अपनी मांगों को मनवाने के लिए शांतिपूर्ण और गांधीवादी विरोध प्रदर्शनों का सहारा लिया। उन्होंने कई बार भूख हड़तालें कीं, पैदल मार्च निकाले, और सोशल मीडिया के माध्यम से जनता और सरकार तक अपनी बात पहुंचाने का प्रयास किया।
सार्वजनिक समर्थन: उनके विरोध प्रदर्शनों को लद्दाख और देश भर से भारी जनसमर्थन मिला। उनके स्पष्ट और तर्कसंगत तर्कों ने कई लोगों को प्रभावित किया।
सरकारी उदासीनता: हालांकि, केंद्र सरकार और स्थानीय प्रशासन ने उनकी मांगों पर कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं दी, जिससे उनके और स्थानीय लोगों के बीच निराशा बढ़ती गई।
3. गिरफ्तारी और NSA का साया: सरकारी निष्क्रियता और साजिशों के आरोप
24 सितंबर 2025 को लेह में विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा के बाद सोनम वांगचुक को गिरफ्तार कर लिया गया, जिसने इस मामले को एक नया और गंभीर आयाम दे दिया।
3.1 गिरफ्तारी और NSA लागू करना
हिंसक झड़प: प्रशासन के अनुसार, 24 सितंबर को लेह में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसक झड़पें हुईं, जिसमें चार नागरिकों की मौत हो गई। इन घटनाओं के बाद क्षेत्र में धारा 163 (BNSS) के तहत प्रतिबंध लगा दिए गए।
गिरफ्तारी: इस हिंसा के बाद, सोनम वांगचुक को 26 सितंबर 2025 को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) लगा दिया गया। उन्हें जोधपुर जेल भेज दिया गया, जिसका अर्थ था कि उन्हें बिना किसी आरोप के 12 महीने तक हिरासत में रखा जा सकता था।
सरकारी तर्क: लद्दाख के डीजीपी और अन्य अधिकारियों ने वांगचुक पर हिंसा भड़काने, युवाओं को उकसाने और अराजकता फैलाने का आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया कि वांगचुक अपने भाषणों में नेपाल और अरब स्प्रिंग जैसे हिंसक आंदोलनों का जिक्र कर रहे थे, और उन्हें लेह में रखना "व्यापक जनहित में" उचित नहीं था।
FCRA लाइसेंस रद्द: इसके अलावा, यह खबर भी सामने आई कि वांगचुक के संस्थान HIAL (Himalayan Institute of Alternatives Ladakh) का FCRA (Foreign Contribution Regulation Act) लाइसेंस रद्द कर दिया गया था। आरोप लगे कि उन्होंने विदेशी फंडिंग कानूनों का उल्लंघन किया और ट्रस्ट के धन को अपनी निजी कंपनी शेसियन इनोवेशन प्राइवेट लिमिटेड में स्थानांतरित किया।
3.2 सरकारी निष्क्रियता और साजिशों के गंभीर आरोप
वांगचुक के परिवार और समर्थकों ने सरकार के इन दावों को सिरे से खारिज कर दिया और इसे सरकार की दमनकारी नीति का हिस्सा बताया:
"विच हंट" और एजेंडा: वांगचुक की पत्नी गीतांजलि जे. अंगमो ने आरोप लगाया कि पिछले चार सालों से, जब से उन्होंने छठी अनुसूची की मांग उठाई है, उनके खिलाफ "पूरे पैमाने पर विच हंट" (Full-Scale Witch Hunt) चलाया जा रहा है। उन्होंने लद्दाख पुलिस और डीजीपी पर एक "एजेंडा" के तहत काम करने का आरोप लगाया, जिसका मुख्य उद्देश्य छठी अनुसूची को लागू न करना और वांगचुक को "बलि का बकरा" (Scapegoat) बनाना था।
राष्ट्र-विरोधी आरोपों का खंडन: गीतांजलि ने पाकिस्तान खुफिया ऑपरेटिव के संपर्क में होने के आरोप को "निराधार, मनगढ़ंत और झूठ" बताया। उन्होंने जोर देकर कहा कि सोनम वांगचुक एक देशभक्त नागरिक हैं, जिन्होंने पाकिस्तान जाकर भी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पर्यावरण प्रयासों की सराहना की थी।
NSA का दुरुपयोग: सबसे बड़ा सवाल NSA जैसे कठोर कानून के इस्तेमाल पर उठा। वांगचुक एक शांतिपूर्ण कार्यकर्ता और शिक्षाविद् थे, जिनके खिलाफ हिंसा का कोई इतिहास नहीं था। आलोचकों ने तर्क दिया कि एक जलवायु कार्यकर्ता के खिलाफ NSA का उपयोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विरोध करने के मौलिक अधिकार पर सीधा हमला है। यह दर्शाता है कि सरकार उन आवाजों को दबाने की कोशिश कर रही है जो उसकी नीतियों पर सवाल उठाती हैं।
FCRA का हथियार के रूप में उपयोग: FCRA लाइसेंस रद्द करने को भी एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा बताया गया, जिसका उद्देश्य वांगचुक को आर्थिक रूप से कमजोर करना और उनके सार्वजनिक कार्यों को रोकना था।
4. गोदी मीडिया: छवि बिगाड़ने का खेल और नैरेटिव कंट्रोल
इस पूरे प्रकरण में मीडिया के एक वर्ग की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठाए गए हैं, जिसे अक्सर "गोदी मीडिया" के रूप में संदर्भित किया जाता है।
एकतरफा कवरेज: आरोप है कि कुछ मीडिया आउटलेट्स ने सरकारी एजेंसियों द्वारा लगाए गए आरोपों को बिना किसी गहन पड़ताल या दूसरे पक्ष की बात सुने प्रमुखता दी। सोनम वांगचुक की उपलब्धियों, उनके नवाचारों और लद्दाख के लिए उनके संघर्ष को दरकिनार कर, उन्हें केवल "राष्ट्र-विरोधी" या "हिंसा भड़काने वाले" के रूप में पेश करने की कोशिश की गई।
चरित्र हनन: पाकिस्तान में उनके एक क्लाइमेट इवेंट में शामिल होने या उनके एनजीओ की कथित वित्तीय अनियमितताओं को इस तरह से प्रस्तुत किया गया, जिससे उनकी छवि धूमिल हो और आम जनता में उनके खिलाफ एक नकारात्मक धारणा बने।
जवाबदेही की कमी: गंभीर आरोपों के बावजूद, कई प्रमुख मीडिया संस्थानों ने सरकार से कड़े सवाल नहीं पूछे कि एक शिक्षाविद् और सम्मानित व्यक्ति पर NSA क्यों लगाया गया, या FCRA लाइसेंस रद्द करने के पीछे वास्तविक कारण क्या थे।
सरकारी नैरेटिव को बढ़ावा: यह आरोप लगाया गया कि कुछ मीडिया हाउस ने सरकारी तंत्र द्वारा गढ़े गए नैरेटिव को ही आगे बढ़ाया, जिससे नागरिक समाज में वांगचुक के प्रति सहानुभूति कम हो।
5. ताज़ा अपडेट: सोनम वांगचुक की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया
आपकी प्रदान की गई रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला अब एक महत्वपूर्ण न्यायिक चरण में प्रवेश कर गया है।
ताज़ा रिपोर्ट (अक्टूबर 03, 2025):
सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि जे. अंगमो ने अपने पति को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत गिरफ्तार किए जाने को चुनौती देते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) का दरवाजा खटखटाया है।
याचिका का उद्देश्य: अंगमो ने अपनी याचिका में जलवायु कार्यकर्ता की तत्काल रिहाई की मांग की है, जिन्हें 26 सितंबर 2025 को गिरफ्तार किया गया था।
NSA पर सवाल: याचिका में वांगचुक के खिलाफ NSA लागू करने के सरकारी फैसले पर भी सीधे सवाल उठाए गए हैं, इसे मनमाना और गैर-कानूनी बताया गया है।
स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं: गीतांजलि ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर अपनी याचिका का एक स्क्रीनशॉट साझा करते हुए गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने उल्लेख किया है कि उन्हें अभी भी अपने पति के स्वास्थ्य और वर्तमान स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं है, जो हिरासत में लिए गए व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन है।
आरोपों का खंडन और एजेंडा: अंगमो ने लद्दाख पुलिस द्वारा वांगचुक पर लगाए गए पाकिस्तान खुफिया ऑपरेटिव के संपर्क में होने के आरोपों को "झूठा" और "निराधार" बताया है। उन्होंने लद्दाख के डीजीपी पर "एजेंडा" के तहत काम करने का आरोप दोहराया, जिसका उद्देश्य छठी अनुसूची को लागू करने से रोकना और वांगचुक को बलि का बकरा बनाना है।
मौलिक अधिकारों पर प्रश्न: उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, गृह मंत्री अमित शाह और अन्य अधिकारियों को पत्र लिखकर सवाल किया है कि क्या उन्हें अपने पति से मिलने और बात करने का अधिकार नहीं है, और क्या भारत के एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अब सुरक्षित नहीं है।
जोधपुर जेल में स्थानांतरण: गिरफ्तारी के बाद वांगचुक को तुरंत जोधपुर जेल स्थानांतरित कर दिया गया था, जिससे उनके परिवार और समर्थकों के लिए उनसे संपर्क करना और कानूनी सहायता प्रदान करना और भी मुश्किल हो गया।
निष्कर्ष:-
सोनम वांगचुक का मामला केवल एक व्यक्ति की गिरफ्तारी का नहीं है, बल्कि यह भारत में नागरिक स्वतंत्रता, मौलिक अधिकारों, सरकारी जवाबदेही और मीडिया की भूमिका पर गहरे सवाल खड़े करता है। एक ऐसे व्यक्ति को, जिसने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा नवाचार और शिक्षा के माध्यम से समाज की सेवा में समर्पित किया है, उसे NSA जैसे कठोर कानून के तहत हिरासत में लेना—विशेषकर जब उसकी पत्नी इस पर सुप्रीम कोर्ट का रुख कर रही है—यह दर्शाता है कि लोकतंत्र में असहमतियों को कैसे संभाला जा रहा है।
यह देखना होगा कि न्यायपालिका इस जटिल गाथा में नागरिक स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच कैसे संतुलन स्थापित करती है। यह घटना भविष्य में भारत में विरोध के अधिकार और सरकारी आलोचना के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम करेगी। क्या भारत सरकार एक ऐसे नागरिक की आवाज़ को सुन पाएगी, जिसने अपने पूरे जीवन में केवल बेहतर भविष्य का सपना देखा है, या यह मामला एक और कहानी बन जाएगा जहाँ राज्य ने असंतोष को दबाने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग किया? समय ही बताएगा।
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