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दो साल बाद गाज़ा युद्ध में बिखरा और अलग-थलग पड़ चुका है इज़राइल: एक वैश्विक विश्लेषण

  08 अक्टूबर 2025:✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार   

विश्व मंच पर इज़राइल की बढ़ती अलगाव की कहानी

गाज़ा पर युद्ध शुरू हुए दो वर्ष पूरे हो चुके हैं। इन दो वर्षों में इज़राइल ने 67,000 से अधिक लोगों की जान ली, लाखों को भुखमरी की कगार पर पहुंचा दिया और बार-बार अपने पड़ोसी देशों पर हमले किए। अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इज़राइल पहले से कहीं अधिक अलग-थलग और आलोचना के घेरे में है।

सितंबर 2025 के अंत में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में जब प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भाषण दिया, तो अनेक देशों के प्रतिनिधि विरोधस्वरूप अपनी सीटें छोड़कर बाहर चले गए। यह दृश्य उस वैश्विक नैतिक असहमति का प्रतीक था जो इज़राइल के ‘जनसंहारक’ युद्ध के खिलाफ दुनिया भर में उभर चुकी है।

कभी ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों के दृढ़ सहयोग से चलने वाला इज़राइल आज लगभग अकेला रह गया है। सिर्फ संयुक्त राज्य अमेरिका अब भी उसका पूर्ण समर्थन कर रहा है — लेकिन यह समर्थन भी धीरे-धीरे राजनीतिक कीमतों में बदल रहा है।


आंतरिक संकट: लोकतंत्र से अतिवाद की ओर झुका इज़राइल

दो वर्षों से लगातार युद्ध झेल रहा इज़राइल भीतर से टूट चुका है। वह देश, जिसे कभी एक “उदार लोकतंत्र” के रूप में देखा जाता था, अब अंदर ही अंदर थकान, हिंसा और कट्टरता का प्रतीक बन चुका है।

पूर्व राजनयिक अलोन पिंकस के अनुसार, “कभी ब्रिटिश संसद, एफिल टॉवर और एम्पायर स्टेट बिल्डिंग इज़राइल के समर्थन में नीली-सफेद रोशनी से जगमगा उठते थे। आज वही देश इज़राइल से दूरी बना रहे हैं।”

राजनीतिक विश्लेषक योसी मेकेलबर्ग कहते हैं, “इज़राइल आज भी 7 अक्टूबर 2023 में अटका हुआ है। जबकि दुनिया आगे बढ़ चुकी है, इज़राइल उस हमले को आज भी हर कदम का औचित्य बना रहा है।”


गाज़ा की तबाही और इज़राइल का आत्ममुग्ध युद्ध

7 अक्टूबर 2023 को हमास के नेतृत्व में हुए हमले में 1,139 लोग मारे गए और लगभग 200 को बंधक बना लिया गया था। इन दो वर्षों में इज़राइली मीडिया ने इसी घटना को लगातार दोहराकर जनता के भीतर एक स्थायी भय और बदले की भावना को पोषित किया है।

लेकिन इसके परिणाम भयावह हैं — गाज़ा के नागरिकों पर अंधाधुंध हमले, लगातार विस्थापन, और अब भुखमरी जैसी स्थिति। विश्लेषकों के अनुसार, इज़राइल की राजनीतिक व्यवस्था इस हमले को अपनी हर हिंसा का औचित्य बना चुकी है।

राजनीतिक वैज्ञानिक ओरी गोल्डबर्ग कहते हैं, “इज़राइल आज थका हुआ भी है और अधिक हिंसक भी। समाज अब कई खेमों में बंट चुका है — कुछ युद्ध का समर्थन करते हैं, कुछ विरोध में हैं, और कुछ ने चुप्पी साध ली है।”


मानसिक थकान और समाज का पतन

इज़राइल के भीतर लौटे हज़ारों सैनिकों में पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD), आत्महत्याओं और घरेलू हिंसा के मामले तेजी से बढ़े हैं। डॉक्टर इसे “सामूहिक मानसिक आपदा” कह रहे हैं।

तेल अवीव में बने पुराने गॉर्डन स्विमिंग पूल क्लब तक को अपने सदस्यों को पत्र भेजना पड़ा कि वे “किसी भी प्रकार की आक्रामकता से बचें।” सड़क पर ट्रैफिक के नियमों की अनदेखी और सामान्य सामाजिक व्यवहारों में गिरावट अब सामान्य हो चुकी है।


राजनीति में उग्र दक्षिणपंथ की पकड़

इज़राइली संसद (Knesset) में अब नेशनल सिक्योरिटी मिनिस्टर इतामार बेन-गवीर और वित्त मंत्री बेज़लेल स्मोट्रिच जैसे अतिदक्षिणपंथी चेहरे निर्णायक भूमिका में हैं। प्रधानमंत्री नेतन्याहू का पूरा शासन उन्हीं पर टिका है।

इस गठबंधन ने इज़राइल को धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र से एक उग्र यहूदी राज्य की दिशा में धकेल दिया है। मेकेलबर्ग कहते हैं — “यह सिर्फ युद्ध का परिणाम नहीं, बल्कि पिछले चुनावों से शुरू हुई प्रक्रिया है, जिसमें नेतन्याहू ने सत्ता बचाने के लिए धार्मिक चरमपंथ को वैधता दी।”

नेतन्याहू स्वयं 2019 से चल रहे भ्रष्टाचार मामलों से जूझ रहे हैं, और विश्लेषकों का मानना है कि यह युद्ध उन्हें सत्ता में बने रहने का एक “राजनीतिक सहारा” देता रहा है।


अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इज़राइल का बहिष्कार

बीते महीनों में ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे परंपरागत समर्थकों ने भी गाज़ा में बढ़ती मौतों और पश्चिमी तट पर हिंसक छापों की निंदा की है।

यूरोपीय संघ अब इज़राइल के साथ अपने व्यापार समझौते को निलंबित करने और अतिदक्षिणपंथी मंत्रियों पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहा है।

संयुक्त राष्ट्र में 192 में से 159 देशों — और सुरक्षा परिषद के पाँच में से चार स्थायी सदस्यों — ने अब तक फिलिस्तीन को मान्यता दे दी है। केवल अमेरिका ही अब इज़राइल के साथ खड़ा है।


‘अलग लीग’ से ‘अंतरराष्ट्रीय बहिष्कृत’ तक

पूर्व राजनयिक पिंकस याद दिलाते हैं कि 2019 में नेतन्याहू ने अपना चुनाव अभियान व्लादिमीर पुतिन और नरेंद्र मोदी के साथ तस्वीरों के सहारे चलाया था — टैगलाइन थी “A Different League”
लेकिन 2025 में वही इज़राइल अब एक अलग लीग में है — “एक ऐसी लीग जिसमें उसका नाम उत्तर कोरिया जैसे देशों के साथ लिया जा रहा है।”


निष्कर्ष:-

दो वर्षों का यह युद्ध न सिर्फ गाज़ा को तबाह कर गया है, बल्कि इज़राइल के लोकतांत्रिक ढांचे, नैतिक मूल्यों और वैश्विक छवि को भी गहराई से हिला गया है।
अब सवाल यह है कि क्या इज़राइल अपनी आत्मा और अंतरराष्ट्रीय सम्मान को पुनः पा सकेगा — या यह युद्ध उसकी पहचान को हमेशा के लिए बदल देगा।
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