25 सितम्बर 2025:कविता शर्मा | पत्रकार
1. शुरुआत की चिंगारी – भूख हड़ताल और स्वास्थ्य संकट
लद्दाख में आंदोलन की शुरुआत शांतिपूर्ण भूख हड़ताल से हुई थी। इस दौरान वरिष्ठ कार्यकर्ता त्सेरिंग आंगचुक (72 वर्ष) और ताशी डोल्मा (60 वर्ष) अचानक बेहोश होकर अस्पताल पहुँचाए गए। उनकी बिगड़ती हालत ने युवाओं में गहरा आक्रोश पैदा किया और आन्दोलन अचानक तेज हो गया।
2. भीड़ और विरोध का स्वरूप
अगली सुबह लेह के शहीद मैदान में हजारों लोग जुटे। जो विरोध महज़ प्रतीकात्मक प्रदर्शन था, वह धीरे-धीरे हिंसक आंदोलन में बदल गया। पूरे क्षेत्र में बंद (शटडाउन) का आह्वान किया गया।
3. हिंसा, आगज़नी और संपत्ति को नुकसान
प्रदर्शनकारियों ने कई सरकारी दफ्तरों को आग के हवाले कर दिया, जिनमें भाजपा कार्यालय और हिल काउंसिल कार्यालय शामिल थे। सार्वजनिक संपत्ति और पुलिस वाहनों को भी नुकसान पहुँचाया गया।
4. पुलिस कार्रवाई – लाठीचार्ज, आंसू गैस और गोलीबारी
पुलिस ने पहले लाठीचार्ज और आंसू गैस से भीड़ को तितर-बितर करने की कोशिश की। लेकिन हालात बिगड़ने पर पुलिस को गोली चलानी पड़ी। इसमें चार प्रदर्शनकारियों की मौत हुई और 80 से अधिक लोग घायल हो गए, जिनमें पुलिसकर्मी भी शामिल हैं।
5. लद्दाख आंदोलन की मुख्य माँगें
प्रदर्शनकारियों की माँगें बिल्कुल साफ हैं:
लद्दाख को राज्य का दर्जा (Statehood) दिया जाए
छठी अनुसूची (Sixth Schedule) के तहत संवैधानिक सुरक्षा मिले
लेह और कारगिल के लिए अलग लोकसभा सीटें
युवाओं को नौकरी में आरक्षण
ये माँगें जमीन के अधिकार, सांस्कृतिक संरक्षण और राजनीतिक प्रतिनिधित्व से जुड़ी गहरी चिंताओं को दिखाती हैं।
6. राजनीतिक वादे और भरोसे का संकट
साल 2020 में भाजपा सरकार ने लद्दाख को संवैधानिक सुरक्षा देने का वादा किया था। लेकिन पाँच साल बाद भी इसे लागू नहीं किया गया। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सरकार के आश्वासन महज़ राजनीतिक बयान साबित हुए।
7. सोनम वांगचुक की भूमिका और शांति की अपील
प्रसिद्ध जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने 10 सितंबर से भूख हड़ताल शुरू की थी। मगर हिंसा भड़कने के बाद उन्होंने अपनी भूख हड़ताल रोक दी और युवाओं से शांति बनाए रखने की अपील की।
8. सरकार का रुख – सोशल मीडिया और राजनीति पर आरोप
केंद्र सरकार ने आंदोलन भड़कने की वजह “राजनीतिक ताकतों” और “सोशल मीडिया पर फर्जी वीडियो” को बताया। साथ ही, लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस जैसे संगठनों से वार्ता का आश्वासन दिया।
9. प्रशासनिक सख्ती और कर्फ्यू
लद्दाख के उपराज्यपाल ने हिंसा को “योजना बद्ध साजिश” बताया। इलाके में कर्फ्यू लगाया गया है, अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किए गए हैं और रैलियों पर प्रतिबंध लगाया गया है।
10. बड़ा परिप्रेक्ष्य – भारत में जेन-ज़ी का आंदोलनकारी रूप
लद्दाख का आंदोलन अकेला नहीं है। पूरे भारत में जेन-ज़ी नई आंदोलनकारी पीढ़ी बनकर उभरी है।
बिहार में बड़े स्तर पर छात्रों ने पेपर लीक और परीक्षा घोटालों के खिलाफ विरोध किया।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी बेरोजगारी और भर्ती घोटालों के खिलाफ जेन-ज़ी बार-बार सड़कों पर उतरी और कई बार आक्रामक भी हुई।
यह दिखाता है कि भारत का डिजिटल-नेटिव युवा अब त्वरित तरीके से संगठित होकर सरकार से जवाब मांग रहा है।
11. जेन-ज़ी का गुस्सा और भारत का भविष्य
विशेषज्ञों का मानना है कि जेन-ज़ी की नाराज़गी आर्थिक असुरक्षा, रोजगार की कमी और संस्थाओं पर घटते भरोसे से उपजी है। लद्दाख में राज्य के दर्जे की माँग से लेकर बिहार के शिक्षा संकट तक, भारत का युवा अब मूक दर्शक नहीं है। वह विरोध की राजनीति को नया आकार दे रहा है और सरकारों को या तो सुनने और संवाद करने के लिए मजबूर कर रहा है, या फिर जनाक्रोश झेलने के लिए।
