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ईद मिलाद-उन्नबी के जुलूस में डीजे शामिल करने की घटना पर गहरा अफ़सोस – पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) की तालीमात का अपमान, समाज के इत्तेहाद पर चोट

 रिपोर्ट: सरफ़राज़ ज़हूरी 

नई दिल्ली, [तारीख] – ईद मिलाद-उन्नबी, जिसे हम यौम-ए-मुबारक (पवित्र दिन) और शफ़क़-ए-इमानियत (श्रद्धा की रौशनी) का प्रतीक मानते हैं, हर वर्ष पूरे मुसलमान समाज द्वारा बड़े इख़लास (निष्ठा) और अक़ीदत (भक्ति) के साथ मनाया जाता है। यह पर्व पैगंबर हजरत मुहम्मद (ﷺ) की ज़िन्दगी, उनके नेक चरित्र, समाज सुधारक कदम और इंसानियत के लिए उनके अमूल्य योगदान को याद करने का पाक अवसर है।

लेकिन इस वर्ष जो घटनाएँ ईद मिलाद-उन्नबी के जुलूस में घटित हुईं, वे पूरे मुसलमान समाज के लिए बेहद मायूस‌कुन  (विषादपूर्ण) और चिंता जनक साबित हुईं।

उलेमा की रहनुमाई और नौजवानों की नादानी

मस्लक ए आला हजरत के उलेमा ने बार-बार हिदायत-ए-तहरीर (आध्यात्मिक निर्देश) के तहत स्पष्ट इशारा किया कि जुलूस-ए-मुहम्मदी में तेज आवाज वाले लाउडस्पीकर, डिस्क जॉकी (डीजे) का सम्मिलन और नातख्वानी के दौरान संगीत के साथ पढ़ना शरीअत की नज़र में पूरी तरह हराम है। हजरत आला हजरत ने अपनी कई तालीफात (किताबें) में इस बात को बेहद स्पष्ट लिखा है कि पैगंबर (ﷺ) की शान में जुलूस को सादगी, शांति और इमानदारी के साथ निकाला जाना चाहिए।

मगर इस बार कुछ ग़लतफ़हम, नादान और बेपरवाह नौजवानों ने उलेमा की सलाहों को दरकिनार किया। उन्होंने DJ को तेज आवाज के साथ जुलूस में शामिल कर दिया। उलेमा ने शफ़क़-ओ-इत्तेहाद से समझाने की तमाम कोशिशें कीं, बार-बार सज्जनता और सही मार्ग पर चलने की अपील की। इसके बावजूद भी, अफ़सोस, इस शरीअत-विरोधी क़दम को रोका नहीं जा सका।

इस बाबत कई बार पुलिस में शिकायत (तहरीर) दर्ज करवाई गई, DJ को जब्त भी कराया गया। लेकिन इनके बावजूद भी नासमझी और बेवजह की इस हरकत को जारी रखा गया।

पैगंबर (ﷺ) की तालीमात की असली हैसियत

ईद मिलाद-उन्नबी का असली मकसद केवल पैगंबर हजरत मुहम्मद (ﷺ) की जयंती मनाना नहीं है, बल्कि उनके पवित्र चरित्र (शरीफ़ शख्सियत), उनके सुलह-ओ-अहद (मेल-मिलाप का पैगाम), और उनके इंसानियत के लिए किए गए अमूल्य योगदान को जन-जन तक पहुँचाना है।

पैगंबर (ﷺ) की शिक्षाओं में किसी भी तरह की शोर-शराबा, बेहूदगी, या ध्वनि प्रदूषण की कोई जगह नहीं। खास तौर पर नातख्वानी जैसी रस्म में, जो खुदा की महफ़ूज़ता (सुरक्षा) और पैगंबर (ﷺ) की पाकीज़गी का जश्न है, वहाँ ऐसी हरकतें शरीअत के खिलाफ हैं और समाज की सद्भावना को भी नुकसान पहुंचाती हैं।

समाज में व्याप्त गलतफहमियाँ और उनके परिणाम

यह घटना न केवल स्थानीय स्तर पर शर्मनाक है, बल्कि पूरे मुसलमान समाज की सूरत-ओ-हाल (स्थिति) को भी बिगाड़ती है। कुछ असमझ नौजवान यह समझते हैं कि आधुनिकता और आध्यात्मिकता एक साथ चल सकती हैं, जबकि हकीकत यह है कि पैगंबर (ﷺ) की राह पर चलना एक इबादती (पूज्यनीय) काम है, न कि शोभायात्रा या जमावड़ा।

इस तरह के कार्यों से इमानियत (आस्था) और अक़ीदत (भक्ति) पर सवाल उठने लगते हैं। साथ ही समाज की इज्ज़त-ओ-आबरू (सम्मान और गरिमा) पर भी गहरा आघात पड़ता है। ऐसे गैर-जरूरी कदम न केवल पैगंबर (ﷺ) के नाम को बदनाम करते हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मुसलमानों की सलीकेदार और पाक छवि को क्षति पहुंचाते हैं।

सज्जन मुसलमानों से निहायत विनम्र अपील

हम सम्पूर्ण मुसलमान समाज, विशेषकर खाकर मस्लक ए आला हजरत के अनुयायी सज्जनों से अत्यंत विनम्रता और एहतराम के साथ अपील करते हैं कि वे इस तरह की नासमझ हरकतों से पूरी तरह बचें।

हमें चाहिए कि हम अपने मुकद्दस तालीमात (पवित्र शिक्षाओं) को समझें और उस पर चलें। जुलूस-ए-मुहम्मदी का मकसद सिर्फ दिखावा नहीं, बल्कि पैगंबर (ﷺ) की रूहानीयत  (आध्यात्मिकता), इंसानियत (मानवता) और आहंग-ए-ख़ल्क (संपूर्ण सृष्टि में सामंजस्य) का संदेश जन-जन तक पहुँचाना है।

अपने नवजात पीढ़ी को भी यह सिखाना हमारा फ़र्ज़ है कि इख़लास (निष्ठा), सादगी (सरलता) और इहतराम (सम्मान) से ही सच्चा ईमान कायम रहता है।

निष्कर्ष – पाकीज़ा तहरीर का पैगाम

ईद मिलाद-उन्नबी का असली मकसद है राह-ए-इंसानियत, सुलह-ओ-अहद, और इमानीयत की तहरीक (आस्था की प्रेरणा)। यदि हम अपने मुकद्दस तालीमात को भूलकर इस तरह की ग़लतियां करते रहेंगे, तो इसका असर न केवल हमारे धर्म पर पड़ेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के दिलों में भी ज़हर भर जाएगा।

आइए हम सब मिलकर एक ऐसा माहौल बनाएँ जहाँ पैगंबर हजरत मुहम्मद (ﷺ) की जयंती सिर्फ़ इबादत का एक माध्यम बने, न कि आधुनिकता और बेवजह के शोर-शराबे का तमाशा। यह वक्त है अपने ईमान, अक़ीदत, और तहरीर-ए-इंसानियत (मानवता का मार्गदर्शन) को जगाने का, ताकि पूरे विश्व में मुसलमानों की सलीकेदार, पाक और नेक छवि कायम रहे।

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