रिपोर्ट:✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
नई दिल्ली, [तारीख] — भारत की राजनीति में एक बार फिर चुनावी धांधली के आरोपों की गूंज तेज़ हो गई है। सोमवार को राजधानी नई दिल्ली में विपक्षी सांसदों और नेताओं का विशाल जमावड़ा भाजपा और चुनाव आयोग के खिलाफ उग्र प्रदर्शन में बदल गया।
विपक्षी दलों का कहना है कि पिछले कई चुनावों से लगातार धांधली के ठोस सबूत चुनाव आयोग को दिए जाते रहे हैं, लेकिन आयोग ने हर बार “बड़ी ही ढिठाई” और “असामान्य उदासीनता” के साथ इन दावों को खारिज कर दिया। विपक्ष का आरोप है कि यह रवैया लोकतांत्रिक संस्थाओं की निष्पक्षता पर गहरा सवाल खड़ा करता है।
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युवाओं का उबलता गुस्सा
इस बार स्थिति और भी विस्फोटक है, क्योंकि आरोप सिर्फ विपक्षी नेताओं तक सीमित नहीं रहे — देश का युवा वर्ग खुलकर विरोध में उतर आया है। सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक, “वोट चोरी” और “चुनाव आयोग की मिलीभगत” जैसे नारों ने माहौल को राजनीतिक टकराव की आग में झोंक दिया है। कई युवा संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर इन आरोपों पर स्वतंत्र और पारदर्शी जांच नहीं हुई, तो यह गुस्सा धीरे-धीरे एक बड़े जनआंदोलन में बदल सकता है।
संसद से सड़क तक टकराव
संसद सत्र के दौरान शुरू हुआ यह विरोध प्रदर्शन, देखते ही देखते विजय चौक और संसद भवन परिसर के बाहर भी फैल गया। पुलिस ने भारी बल के साथ प्रदर्शनकारियों को रोका और सैकड़ों सांसदों व नेताओं को हिरासत में लिया, हालांकि कुछ घंटों बाद उन्हें रिहा कर दिया गया।
राहुल गांधी, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं ने आरोप लगाया कि भाजपा सत्ता में बने रहने के लिए “जनादेश की चोरी” कर रही है, और चुनाव आयोग उसकी “ढाल” बन गया है।
भाजपा का पलटवार और विपक्ष का संकल्प
भाजपा ने इन सभी आरोपों को खारिज करते हुए विपक्ष पर “झूठ फैलाने” का आरोप लगाया। पार्टी नेताओं ने कहा कि चुनाव आयोग स्वतंत्र संस्था है और भारत की चुनावी प्रक्रिया पारदर्शी है।
लेकिन विपक्ष का कहना है कि अब मामला सिर्फ एक चुनाव का नहीं, बल्कि देश के लोकतांत्रिक भविष्य का है।
राजनीतिक विश्लेषण
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह माहौल सामान्य विरोध से कहीं अधिक गंभीर है। जिस तरह युवा वर्ग और आम नागरिकों का गुस्सा एकजुट होकर उभर रहा है, वह सरकार और चुनाव आयोग दोनों के लिए चुनौती बन सकता है। अगर यह असंतोष जारी रहा, तो भारत जल्द ही एक व्यापक और ऐतिहासिक जनआंदोलन का गवाह बन सकता है — जिसकी चिंगारी संसद के बाहर भले ही सुलगी हो, लेकिन जिसकी लपटें पूरे देश में फैल सकती हैं।
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