लेखक:Z SRAZZAQI
महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर भूचाल की स्थिति में है। जिस महायुति (Mahayuti) गठबंधन ने विपक्ष को पटखनी देने के लिए एकजुटता दिखाई थी, अब उसी महागठबंधन की दीवारों में दरारें स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगी हैं। बीजेपी और अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के बीच रिश्ते खटासभरे होते जा रहे हैं, और इसकी परिणति आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में अलग-अलग रास्तों पर चलने की संभावना के रूप में सामने आ रही है।
महायुति गठबंधन: क्या वाकई ‘एकजुट’ है?
महायुति, महाराष्ट्र में सत्ता की साझेदार है जिसमें तीन प्रमुख दल शामिल हैं—भारतीय जनता पार्टी (BJP), शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार गुट)।
2024 के विधानसभा चुनावों के बाद इस गठबंधन की ताकत से ही राज्य में सरकार का गठन हुआ, लेकिन अब स्थानीय निकाय चुनावों से पहले गठबंधन के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।
बीजेपी बनाम अजित पवार: मतभेद की असली वजह क्या है?
बीजेपी नेताओं ने हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की महाराष्ट्र यात्रा के दौरान अपनी खुली नाराज़गी जताई।
उनका आरोप है कि अजित पवार ने उन उम्मीदवारों का समर्थन किया जो विधानसभा चुनावों में बीजेपी के खिलाफ खड़े थे। इससे न केवल पार्टी की साख को झटका लगा, बल्कि अब आगामी निकाय चुनावों में उसकी स्थिति भी कमजोर हो गई है।
बीजेपी को आशंका है कि एनसीपी रणनीतिक रूप से उन क्षेत्रों में घुसपैठ की कोशिश कर रही है जहां अभी तक बीजेपी का दबदबा रहा है।
पश्चिम महाराष्ट्र और मराठवाड़ा: महायुति की सबसे कमजोर कड़ी
पश्चिम महाराष्ट्र और मराठवाड़ा क्षेत्र महायुति के भीतर सबसे ज्यादा संघर्ष के केंद्र में हैं।
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पश्चिम महाराष्ट्र की 70 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने 28, और एनसीपी ने 15 सीटें जीती थीं।
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मराठवाड़ा की 52 सीटों में बीजेपी को 19 और एनसीपी को 8 सीटें मिली थीं।
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि दोनों दलों के हित टकरा रहे हैं।
इन क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन संस्थाएं जैसे पुणे, सांगली, पिंपरी-चिंचवड़, परभणी, जालना और बीड की नगरपालिकाएं और महानगर पालिकाएं भी इसी शक्ति-संघर्ष का हिस्सा बन चुकी हैं।
स्थानीय निकाय चुनाव: क्या बीजेपी अकेले लड़ेगी?
सूत्रों की मानें तो बीजेपी अब स्थानीय निकाय चुनावों में अकेले उतरने की रणनीति पर काम कर रही है। इसका मुख्य कारण है -
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पार्टी के मतदाताओं का भरोसा फिर से मजबूत करना,
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अपने परंपरागत गढ़ों पर दोबारा पकड़ बनाना,
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और गठबंधन सहयोगियों द्वारा फैलाए जा रहे भ्रम को समाप्त करना।
बीजेपी के कई वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि अगर यह “अविश्वास की स्थिति” खुलकर सामने नहीं लाई गई, तो एनसीपी धीरे-धीरे स्थानीय सत्ता ढांचे में बीजेपी को विस्थापित कर सकती है।
विपक्ष ने भी ली चुटकी: क्या महायुति 'अंदर से खोखली' हो गई है?
बीजेपी-एनसीपी के बीच पैदा हुए इस तनाव को विपक्षी दलों ने तुरंत भांप लिया है।
शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के विधायक सचिन अहीर ने बयान दिया:
“यह सिर्फ बीजेपी विधायक ही नहीं, पूरी कैबिनेट अजित पवार से नाराज़ है। सभी को फंड की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। उनकी विकास परियोजनाएं अधर में लटकी हुई हैं। वर्षों तक जो दल एक-दूसरे के खिलाफ लड़े, वे अब मजबूरी में साथ काम कर रहे हैं।”
एनसीपी (शरद पवार गुट) के विधायक रोहित पवार ने तो एक कदम और आगे बढ़कर कहा:
“बीजेपी शायद जानबूझकर अपनी नाराज़गी को जनता के सामने ला रही है ताकि माहौल बनाया जा सके और चुनावों से पहले गठबंधन तोड़ने का रास्ता तैयार किया जा सके।”
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जहां एक ओर नाराज़गी और राजनीतिक तनाव दिख रहा है, वहीं बीजेपी मुंबई अध्यक्ष आशीष शेलार ने सभी खबरों को खारिज करते हुए कहा:
“मुझे अजित पवार से किसी तरह के मतभेद की जानकारी नहीं है। गठबंधन में सब कुछ सुचारू रूप से चल रहा है।”
एनसीपी सांसद सुनील तटकरे ने भी यही दावा किया कि:
“राज्य के तीनों प्रमुख नेता—देवेंद्र फडणवीस, अजित पवार और एकनाथ शिंदे—पूरी तरह समन्वय में हैं। गठबंधन पूरी मजबूती से खड़ा है।”
निष्कर्ष: क्या महायुति अपने ही वज़न से बिखर जाएगी?
आगामी महीनों में जब पुणे, बीड, सांगली, और अन्य नगरपालिकाओं में चुनाव होंगे, तब इस सवाल का उत्तर जनता खुद अपने वोटों से देगी।
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