तमिलनाडु में शैक्षिक संस्थानों की स्वायत्तता और संघीय ढांचे की गरिमा को लेकर एक बार फिर राजनीति गरमा गई है। ऊटी में आयोजित राज्यपाल आर. एन. रवि के वार्षिक कुलपतियों सम्मेलन (Vice Chancellors’ Conference) में इस वर्ष राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने अभूतपूर्व बहिष्कार कर दिया। इस बहिष्कार के बीच राज्यपाल ने गंभीर आरोप लगाते हुए दावा किया कि कुछ कुलपतियों को राज्य सरकार की ओर से धमकियाँ दी गईं और कुछ को तो गुप्त पुलिस (स्पेशल ब्रांच) द्वारा आधी रात को उनके दरवाज़े खटखटाकर डराया गया।
राज्यपाल रवि के इस बयान ने पूरे शैक्षिक और राजनीतिक वातावरण में हलचल मचा दी है, विशेषकर इसलिए क्योंकि यह बयान उन्होंने भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की उपस्थिति में दिया, जिन्होंने इस सम्मेलन का उद्घाटन किया।
राज्यपाल का सनसनीखेज आरोप: "कुछ कुलपति पुलिस थाने में हैं"
अपने संबोधन में राज्यपाल ने स्पष्ट रूप से कहा:
“दुर्भाग्यवश, राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपति इस बार सम्मेलन में शामिल नहीं हो रहे हैं। उन्होंने मुझे लिखित रूप से सूचित किया है कि राज्य सरकार ने उन्हें इसमें भाग लेने से मना किया है। एक कुलपति तो इस समय पुलिस स्टेशन में हैं। एक अन्य कुलपति ऊटी तक पहुंच चुके थे, लेकिन उनके दरवाज़े पर आधी रात को राज्य की स्पेशल ब्रांच ने दस्तक दी और चेतावनी दी कि अगर वे सम्मेलन में भाग लेंगे तो शायद वे अपने घर वापस न जा सकें।”
राज्यपाल ने कहा कि उन्होंने उन कुलपतियों को सलाह दी कि वे अपने परिवार का ख्याल रखें और किसी तरह का खतरा मोल न लें।
राज्य बनाम राज्यपाल: शिक्षा की लड़ाई या राजनीतिक संघर्ष?
यह सम्मेलन पहले एक शुद्ध शैक्षिक गतिविधि मानी जाती थी, लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद जिसमें राज्यपाल की विश्वविद्यालयों पर भूमिका को सीमित किया गया, यह आयोजन अब संघीय व्यवस्था और राज्य की शैक्षणिक स्वायत्तता को लेकर चल रहे संघर्ष का केंद्र बन चुका है। इस वर्ष राज्य के केवल दो विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधि पहुंचे, वह भी कुलपति नहीं बल्कि अन्य अधिकारी। कुल 56 आमंत्रणों में से मात्र 18 ने ही भाग लिया, जिनमें ज़्यादातर निजी और केंद्रीय विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधि थे।
शिक्षा की दुर्दशा पर चिंता, राज्यपाल की आलोचना भी
राज्यपाल रवि ने अपने भाषण में राज्य की उच्च शिक्षा की स्थिति को "गंभीर और चिंताजनक" बताया। उन्होंने कहा:
“2021 में जब मैंने छात्रों से मुलाकात की, जिनमें स्वर्ण पदक विजेता भी थे, तो पाया कि उनकी आकांक्षाएं बेहद सीमित हैं — अधिकतम सरकारी नौकरी तक। सरकारी स्कूलों की स्थिति गिरती जा रही है, जबकि निजी स्कूलों में शिक्षा उत्कृष्ट है। आधे से अधिक छात्र कक्षा 2 की किताब तक नहीं पढ़ सकते। यही गिरावट राज्य के विश्वविद्यालयों में भी देखने को मिलती है।”
उन्होंने बताया कि राज्य के विश्वविद्यालयों से हर वर्ष लगभग 6,500 पीएचडी धारक निकलते हैं, लेकिन उनमें से एक भी UGC की NET-JRF परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो सका। रवि ने कहा:
“इन डिग्रियों का क्या अर्थ जब छात्र केवल 14-15 हजार रुपये की नौकरियों तक सीमित रह जाएं?”
हालांकि, उन्होंने यह भी बताया कि 2022 के बाद से विशेष रूप से डीम्ड विश्वविद्यालयों में सुधार दिखाई देने लगे हैं और अब अनुसंधान, बौद्धिक संपदा और छात्रवृत्ति में वृद्धि हो रही है।
उपराष्ट्रपति धनखड़ का संदेश: "राष्ट्र नीति है नई शिक्षा नीति"
सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही के कश्मीर आतंकवादी हमले के पीड़ितों के लिए मौन श्रद्धांजलि दी और कहा:
“आतंकवाद वैश्विक खतरा है। भारत विश्व का सबसे शांतिप्रिय राष्ट्र है, और हमारी सभ्यता ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठित कर रही है।”
धनखड़ ने शिक्षाविदों से आग्रह किया कि वे राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) को गंभीरता से अपनाएं। उन्होंने कहा कि यह "राष्ट्र की नीति" है, जिसे सभी को लागू करना चाहिए। उन्होंने तमिल, संस्कृत और हिंदी जैसी भाषाओं को "साहित्य का खजाना" बताया।
राजनीतिक प्रतिक्रिया: डीएमके सांसद ने राज्यपाल पर लगाया ‘गंभीर आरोप’
राज्यपाल के बयानों पर डीएमके के राज्यसभा सांसद पी. विल्सन ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा:
“मैं राज्यपाल आर. एन. रवि द्वारा दिए गए इन झूठे और गैर-जिम्मेदाराना बयानों की कड़ी निंदा करता हूँ। राज्य के राज्यपाल अपने ही राज्य की सरकार पर इस प्रकार के निराधार आरोप कैसे लगा सकते हैं?”
उन्होंने इसे संविधान के अनुच्छेद 361(2) के तहत राज्यपाल को प्राप्त प्रतिरक्षा का दुरुपयोग बताते हुए कहा कि इस तरह के बयान राज्य सरकार के खिलाफ असंतोष भड़काने वाले हैं और गंभीर अपराध की श्रेणी में आते हैं।
निष्कर्ष:
क्या यह शिक्षा की चिंता है या संविधान की नई जंग?
तमिलनाडु में यह टकराव अब केवल शिक्षा के प्रशासन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह संघीय ढांचे, संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता और शासन प्रणाली की मूल आत्मा को लेकर एक बड़ी बहस में बदल चुका है। वर्तमान परिदृश्य में यह स्पष्ट होता जा रहा है कि सत्ता में बैठे कुछ तत्व संविधान की मर्यादाओं के भीतर कार्य करने के बजाय समस्त संस्थाओं को अपने अधीन कर, मनचाहे निर्णय थोपने की प्रवृत्ति अपना रहे हैं। संवैधानिक संस्थाओं पर नियंत्रण स्थापित करने की यह कोशिश इतनी गहरी हो चुकी है कि अब सर्वोच्च न्यायपालिका जैसी स्वतंत्र संस्थाओं को भी अप्रत्यक्ष दबावों और सार्वजनिक आलोचनाओं के ज़रिए प्रभावित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
तमिलनाडु में राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच यह टकराव उसी व्यापक प्रवृत्ति का एक प्रत्यक्ष उदाहरण बन गया है, जहाँ शासन का उद्देश्य न केवल संस्थागत स्वायत्तता को सीमित करना है, बल्कि समग्र संवैधानिक ढांचे को भी अपने राजनीतिक हितों के अनुरूप ढालने की कोशिश करना प्रतीत होता है। इसका सीधा प्रभाव देश के संघीय ढाँचे, शैक्षणिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक संस्थानों की विश्वसनीयता पर पड़ रहा है।
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