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पीएम मोदी की डिग्री विवाद: पुराने इंटरव्यू और नए दावों के बीच उलझा सवाल

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक योग्यता को लेकर देश में एक बार फिर चर्चा तेज हो गई है। हाल ही में गुजरात विश्वविद्यालय ने पीएम मोदी की डिग्री से संबंधित दस्तावेज़ों को सार्वजनिक किया है, जिसके बाद से राजनीतिक गलियारों से लेकर सोशल मीडिया तक इस मुद्दे पर बहस छिड़ गई है। यह मामला न केवल पीएम मोदी की शैक्षणिक पृष्ठभूमि को लेकर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह भारतीय राजनीति में पारदर्शिता और जवाबदेही के मुद्दे को भी उजागर करता है।


पृष्ठभूमि और विवाद की जड़ें

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री को लेकर पहली बार विवाद 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान उठा था, जब उन्होंने अपने नामांकन पत्र में अपनी शैक्षणिक योग्यता का उल्लेख किया था। उस समय मोदी ने दावा किया था कि उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक और गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर (एमए) की डिग्री प्राप्त की है। हालांकि, इस दावे पर विपक्षी दलों और कई मीडिया हाउसों ने सवाल उठाए।

2016 में, आम आदमी पार्टी (AAP) के प्रमुख और दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठाते हुए उनकी डिग्री के प्रमाण सार्वजनिक करने की मांग की थी। इसके जवाब में, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पीएम मोदी की डिग्री से संबंधित दस्तावेज़ सार्वजनिक किए, लेकिन विपक्ष ने इनकी सत्यता पर संदेह जताया।

गुजरात विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय का बयान

हाल ही में गुजरात विश्वविद्यालय ने पीएम मोदी की डिग्री से संबंधित कुछ दस्तावेज़ों को सार्वजनिक किया। विश्वविद्यालय का कहना है कि नरेंद्र मोदी ने 1983 में राजनीति विज्ञान में एमए की डिग्री प्राप्त की थी। गुजरात विश्वविद्यालय के कुलपति ने यह भी कहा कि पीएम मोदी की डिग्री पूरी तरह से वैध है और उन्होंने नियमित छात्र के रूप में अपनी पढ़ाई पूरी की थी।

दिल्ली विश्वविद्यालय ने भी 2016 में पीएम मोदी की स्नातक डिग्री की पुष्टि की थी, जिसमें उन्होंने 1978 में बैचलर ऑफ आर्ट्स (बीए) की डिग्री हासिल की थी। हालांकि, विपक्षी दलों ने यह कहते हुए सवाल उठाए कि सार्वजनिक किए गए प्रमाणपत्रों में कई विसंगतियां पाई गई हैं।

पुराने इंटरव्यू और विरोधाभास

पीएम मोदी के कुछ पुराने इंटरव्यू सामने आए हैं, जिनमें वह कहते हैं कि वे केवल हाई स्कूल तक ही पढ़े हैं। 1990 के दशक में दिए गए कुछ साक्षात्कारों में उन्होंने कहा था कि उनकी औपचारिक शिक्षा सीमित थी और उन्होंने स्वाध्याय के माध्यम से अपने ज्ञान का विस्तार किया।

इन बयानों के सामने आने के बाद सवाल उठने लगे कि यदि पीएम मोदी ने खुद को उच्च शिक्षा प्राप्त न करने वाला बताया था, तो बाद में एमए की डिग्री का दावा क्यों किया गया? यह विरोधाभास इस विवाद को और गहराता है।

विपक्ष की प्रतिक्रिया और कानूनी मोर्चा

कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अन्य विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को लेकर लगातार सवाल उठाए हैं।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि पीएम मोदी की डिग्री को लेकर अभी भी कई सवाल अनुत्तरित हैं। उन्होंने कहा कि यदि पीएम मोदी की डिग्री वैध है, तो उन्हें खुद इस मामले में सामने आकर स्पष्टीकरण देना चाहिए।

आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने इस मामले को अदालत तक ले जाने की बात कही थी, जिसके बाद गुजरात उच्च न्यायालय में इस मुद्दे पर सुनवाई भी हुई। हालांकि, अदालत ने विश्वविद्यालय को यह जानकारी साझा करने के लिए मजबूर करने से इनकार कर दिया था।

सोशल मीडिया पर चर्चा और पब्लिक ओपिनियन

सोशल मीडिया पर यह मुद्दा व्यापक रूप से चर्चा में रहा है। कुछ लोग विश्वविद्यालयों के बयान को सही मानकर विपक्ष के आरोपों को बेबुनियाद बताते हैं, जबकि कुछ का मानना है कि पीएम मोदी को खुद इस विषय पर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।

ट्विटर, फेसबुक और अन्य प्लेटफार्मों पर इस मुद्दे को लेकर मीम्स, तर्क-वितर्क और राजनीतिक बयानबाजी लगातार हो रही है। कुछ लोगों ने सवाल उठाए कि यदि प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवारों से न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता की कोई बाध्यता नहीं है, तो फिर इस मुद्दे को इतना तूल क्यों दिया जा रहा है?

पीएम मोदी और भाजपा की प्रतिक्रिया

अब तक पीएम मोदी ने इस मामले में कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। हालांकि, भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने इसे विपक्ष की साजिश बताया है।

केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि यह मुद्दा केवल राजनीतिक बदले की भावना से उठाया जा रहा है। भाजपा नेताओं का कहना है कि पीएम मोदी ने अपने कार्यों से अपनी क्षमता साबित कर दी है, और उनकी डिग्री पर संदेह करना केवल उनकी छवि धूमिल करने का प्रयास है।

भारतीय राजनीति में पारदर्शिता और जवाबदेही का मुद्दा

इस पूरे विवाद ने भारत की राजनीतिक पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर भी बहस छेड़ दी है। सवाल यह है कि क्या सार्वजनिक पदों पर बैठे नेताओं को अपनी शैक्षणिक योग्यता के बारे में पूरी पारदर्शिता रखनी चाहिए?

दुनिया के कई देशों में सरकारी पदों के लिए उम्मीदवारों की शैक्षणिक योग्यता को सत्यापित करने के लिए कठोर नियम हैं। अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों में नेताओं की डिग्री सार्वजनिक रिकॉर्ड का हिस्सा होती है। भारत में भी पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए ऐसे नियमों की आवश्यकता हो सकती है।

निष्कर्ष:-

पीएम मोदी की डिग्री को लेकर चल रही चर्चा केवल उनकी शैक्षणिक योग्यता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय राजनीति में पारदर्शिता और जवाबदेही के व्यापक सवाल भी खड़े करती है।

जब तक पीएम मोदी खुद इस मामले में स्पष्टीकरण नहीं देते, तब तक इस विवाद के बने रहने की संभावना है। इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट है कि भारत में राजनेताओं की शैक्षणिक योग्यता को लेकर बहस केवल कानूनी मुद्दा नहीं, बल्कि नैतिक और राजनीतिक मुद्दा भी बन चुकी है।

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