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वक़्फ़ संशोधन विधेयक: क्या मोदी सरकार मुसलमानों की संपत्तियाँ हड़पने की साज़िश रच रही है?

नई दिल्ली, 29 जनवरी 2025भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित वक़्फ़ संशोधन विधेयक मुसलमानों की धार्मिक, शैक्षिक और सामाजिक संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण स्थापित करने का एक गंभीर प्रयास माना जा रहा है। यह विधेयक न केवल वक़्फ़ बोर्ड की स्वायत्तता समाप्त करता है, बल्कि प्रशासनिक अधिकारियों को मस्जिदों, कब्रिस्तानों, मदरसों, ख़ानकाहों और दरगाहों की संपत्तियाँ जब्त करने का कानूनी अधिकार भी प्रदान करता है।

इस विधेयक के विरोध में संविधान क्लब, नई दिल्ली में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई, जिसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री के. रहमान ख़ान सहित कई प्रतिष्ठित मुस्लिम बुद्धिजीवी, क़ानूनी विशेषज्ञ और समाजसेवी शामिल हुए। इनमें प्रो. अख़्तरुल वासे, डॉ. ज़फ़र महमूद, एडवोकेट यूसुफ़ हातिम मुचाला, प्रो. ज़ेड.एम. ख़ान, प्रो. अफ़ज़ल वानी, मोहम्मद आलम, शेख निज़ामुद्दीन, प्रो. हसीना हाशिया और शम्स तबरेज़ क़ासमी प्रमुख थे।

बैठक में सर्वसम्मति से इस विधेयक को मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों और संविधान की धर्मनिरपेक्षता पर सीधा हमला करार दिया गया और इसे पूरी तरह से खारिज करने की मांग उठाई गई।

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कैसे मुसलमानों की संपत्तियाँ सरकार के कब्ज़े में जा सकती हैं?

1. वक़्फ़ संपत्तियों पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण

नए विधेयक के तहत, वक़्फ़ बोर्ड को सरकार के अधीन कर दिया जाएगा, जिससे उसकी स्वायत्तता समाप्त हो जाएगी। यह बदलाव सरकार को मस्जिदों, मदरसों, कब्रिस्तानों और दरगाहों जैसी संपत्तियों को अधिग्रहित करने का कानूनी अधिकार प्रदान करेगा।

2. ज़िला कलेक्टरों को मिले असीमित अधिकार

इस विधेयक के बाद, ज़िला कलेक्टर बिना किसी बाधा के वक़्फ़ संपत्तियों पर नियंत्रण कर सकते हैं। इससे सरकारी अधिकारियों को मनमाने ढंग से मुस्लिम धार्मिक संपत्तियों को अधिग्रहित करने का अवसर मिलेगा।

3. हिंदू, सिख, ईसाई संपत्तियों को छूट, केवल मुसलमानों पर शिकंजा

सरकार ने केवल मुस्लिम धार्मिक संपत्तियों को निशाना बनाया है, जबकि हिंदू मंदिर ट्रस्ट, सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और ईसाई मिशनरी बोर्ड को कोई सरकारी हस्तक्षेप नहीं झेलना पड़ता। यह सीधा-सीधा धार्मिक भेदभाव और संविधान के अनुच्छेद 14 व 25 का उल्लंघन है।

4. वक़्फ़ बोर्ड का अध्यक्ष अब सरकार नियुक्त करेगी

पहले वक़्फ़ बोर्ड का अध्यक्ष चुनाव के ज़रिए चुना जाता था, लेकिन अब इसे सरकारी नियुक्ति में बदलने की योजना है। इससे भाजपा सरकार अपने पसंदीदा लोगों को नियुक्त कर मुस्लिम संपत्तियों का दोहन करने का रास्ता खोल सकती है।

5. वक़्फ़ बोर्ड में गैर-मुसलमानों की अनिवार्य नियुक्ति

नए विधेयक के तहत गैर-मुसलमानों को वक़्फ़ बोर्ड का सदस्य बनाया जाएगा, जिससे मुस्लिम धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन में बाहरी हस्तक्षेप बढ़ जाएगा। क्या किसी मंदिर या चर्च के प्रबंधन में मुसलमानों को नियुक्त किया जा सकता है? यदि नहीं, तो वक़्फ़ बोर्ड में गैर-मुसलमानों की नियुक्ति का औचित्य क्या है?


विधेयक के खिलाफ मुस्लिम बुद्धिजीवियों की कड़ी आपत्ति

संविधान क्लब में हुई बैठक में मुस्लिम बुद्धिजीवियों और क़ानूनी विशेषज्ञों ने विधेयक की कड़ी आलोचना की। उनका कहना था कि यदि यह विधेयक लागू हुआ तो लाखों मस्जिदें, मदरसे, कब्रिस्तान और अन्य धार्मिक संपत्तियाँ सरकारी नियंत्रण में चली जाएंगी।

बैठक में यह निर्णय लिया गया कि मुस्लिम संगठनों को एकजुट होकर इस विधेयक के खिलाफ विरोध दर्ज कराना होगा। इस उद्देश्य के लिए इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जेक्टिव स्टडीज़ (IOS) ने एक पाँच सदस्यीय समिति का गठन किया, जिसका नेतृत्व मोहम्मद आलम करेंगे। यह समिति विधेयक के आपत्तिजनक प्रावधानों की समीक्षा कर संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।


क्या भाजपा सरकार मुसलमानों की धार्मिक संपत्तियों पर कब्ज़े की योजना बना रही है?

1. 2014 के बाद से वक़्फ़ संपत्तियों पर बढ़ते सरकारी दावे

2014 में सत्ता में आने के बाद से भाजपा सरकार ने कई राज्यों में वक़्फ़ संपत्तियों को हड़पने की कार्रवाई शुरू कर दी। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में कब्रिस्तानों को जब्त कर वहाँ सरकारी इमारतें बनाई गईं।

2. भाजपा नेताओं की बयानबाज़ी: क्या यह एक सुनियोजित साज़िश है?

2019 में भाजपा के कई नेताओं ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि वक़्फ़ बोर्ड को समाप्त कर देना चाहिए। यह विधेयक उसी एजेंडे को कानूनी जामा पहनाने की साज़िश लगती है।

3. ‘सबका साथ, सबका विकास’ का खोखलापन उजागर

भाजपा सरकार का दावा था कि वह सभी धर्मों को समान अधिकार देगी, लेकिन यह विधेयक मुसलमानों को उनके धार्मिक अधिकारों से वंचित करने की खुली कोशिश है।


अब क्या करना चाहिए?

1. मुस्लिम संगठनों को एकजुट होकर इस विधेयक के खिलाफ आवाज़ उठानी होगी।
2. संसदीय समिति के समक्ष विरोध दर्ज कराना होगा ताकि यह विधेयक पास न हो।
3. मुसलमानों को अपनी संपत्तियों को कानूनी रूप से सुरक्षित करने के उपाय अपनाने चाहिए।
4. अगर सरकार ज़बरदस्ती यह विधेयक लागू करती है, तो सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जानी चाहिए।


निष्कर्ष: क्या मुसलमान अपनी संपत्तियाँ बचा पाएंगे?

यह विधेयक केवल वक़्फ़ संपत्तियों को सरकार के अधीन लाने का प्रयास नहीं, बल्कि मुसलमानों को सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर करने की सुनियोजित साज़िश है। अगर इसे नहीं रोका गया, तो मुसलमानों की धार्मिक और शैक्षिक संपत्तियाँ धीरे-धीरे सरकारी कब्ज़े में चली जाएंगी।

अब सवाल यह है: क्या भाजपा सरकार इस विधेयक को लागू करने में सफल होगी, या मुसलमान अपने धार्मिक अधिकारों और संपत्तियों की रक्षा के लिए एकजुट होंगे? यह समय ही बताएगा!

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