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सुप्रीम कोर्ट की ऑनलाइन कंटेंट निगरानी पर सख़्त टिप्पणी: क्या बदलेगा भारत का डिजिटल नियमन?

 1 दिसम्बर 2025 |✍🏻 Z S Razzaqi |वरिष्ठ पत्रकार 

भारत की डिजिटल दुनिया आज अभूतपूर्व विस्तार के दौर से गुजर रही है—हर मिनट लाखों पोस्ट, वीडियो और विचार ऑनलाइन अपलोड हो रहे हैं। लेकिन इसी विशाल डिजिटल स्पेस में जवाबदेही, पारदर्शिता और उपयुक्त नियंत्रण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा संकेत दिया है।

गुरुवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यूज़र-जनरेटेड कंटेंट की निगरानी और नियंत्रण में मौजूदा व्यवस्था अपर्याप्त है, और देश को एक स्वतंत्र, ऑटोनॉमस रेगुलेटरी बॉडी की आवश्यकता है जो सरकारी या कॉर्पोरेट दबाव से मुक्त होकर काम करे।


पृष्ठभूमि: एक विवादित पॉडकास्ट से शुरू होकर डिजिटल रेगुलेशन तक मामला कैसे पहुंचा?

यह सुनवाई एक ऐसी याचिका पर हो रही थी जिसमें पॉडकास्टर रणवीर अलाहाबादिया सहित कई लोगों पर यूट्यूब शो "इंडियाज़ गॉट लेटेंट" में दिए गए कथित आपत्तिजनक बयान के कारण दर्ज हुई FIR को चुनौती दी गई थी।

मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2025 में सरकार से पूछा था कि क्या ऑनलाइन कंटेंट में बढ़ती अश्लीलता और हानिकारक सामग्री को रोकने के लिए नए नियम बनाए जा सकते हैं

इसी सिलसिले में कोर्ट ने गुरुवार को कहा:

“सेल्फ-रेगुलेशन वाले तंत्र नाकाम रहे हैं। ग़ैर-क़ानूनी कंटेंट हटाने में इतना समय लग जाता है कि उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।” — सीजेआई सूर्यकांत


मौजूदा नियमों में क्या कमी है?

ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म फिलहाल आईटी रूल्स 2021 के तहत रेगुलेट होते हैं।

इन नियमों के अनुसार—

  • सरकार के नोटिस पर प्लेटफ़ॉर्म को 36 घंटे में कंटेंट हटाना होता है

  • यूज़र शिकायत पर 24 घंटे में acknowledgment और 15 दिनों में कार्रवाई करनी होती है

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डिजिटल वाइरलिटी के दौर में यह व्यवस्था “बिल्कुल अप्रभावी” हो चुकी है।

जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने पूछा:

 

“जब तक अधिकारी कार्रवाई करते हैं, तब तक कंटेंट लाखों लोगों तक पहुँच चुका होता है, तो इसे कैसे नियंत्रित किया जाएगा?”

यही कारण है कि अदालत ने एक ऐसे निकाय का विचार आगे बढ़ाया जो—

  • स्वतंत्र हो

  • पारदर्शी हो

  • जनता, सरकार, और उद्योग—सभी से समान दूरी रखकर काम करे


क्या होगा नया ऑटोनॉमस डिजिटल रेगुलेटर?

अदालत ने यह स्पष्ट नहीं किया कि इस निकाय का स्वरूप कैसा होगा, लेकिन संकेत मिले हैं कि:

  • यह सेल्फ-रेगुलेशन और सरकारी नियंत्रण के बीच एक नई मध्यवर्ती संरचना हो सकता है

  • यह कंटेंट को प्री-सर्टिफ़ाई करेगा या पोस्ट-मॉडरेशन करेगा—यह अभी स्पष्ट नहीं

  • यह यूज़र-जनरेटेड कंटेंट को लेकर नई ज़िम्मेदारियाँ तय करेगा

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से 4 हफ़्ते में सुझाव लेकर एक प्रारंभिक ड्राफ़्ट तैयार करने को कहा है


सरकार क्या कर रही है? नया डिजिटल एथिक्स कोड

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय डिजिटल मीडिया कोड ऑफ़ एथिक्स, 2021 में बड़े बदलाव की तैयारी में है। प्रस्तावित ड्राफ़्ट (जो सार्वजनिक नहीं है) के प्रमुख बिंदु—

  1. कंटेंट रेटिंग सिस्टम (U, UA, A)

  2. अश्लीलता और निषिद्ध कंटेंट की सटीक परिभाषा

  3. AI-generated content के लिए विशेष दिशा-निर्देश

  4. सभी प्रकार के प्लेटफ़ॉर्म—

    • सोशल मीडिया

    • OTT

    • डिजिटल न्यूज़
      पर एकसमान नियम लागू करने की तैयारी

कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह सिस्टम केबल टीवी नेटवर्क एक्ट 1995 जैसा हो सकता है, जिसे इंटरनेट पर लागू करना “ख़तरनाक मिसमैच” होगा।


कंटेंट क्रिएटर्स और डिजिटल पॉलिसी विशेषज्ञों की प्रतिक्रियाएँ

1. चिंताएँ: सेंसरशिप का खतरा?

डिजिटल राइट्स विशेषज्ञों और कंटेंट क्रिएटर्स ने इसे लेकर कई सवाल उठाए हैं।

प्रतीक वाघरे (टेक ग्लोबल इंस्टिट्यूट) ने कहा:

  • “यूज़र-जनरेटेड कंटेंट” शब्द बहुत बड़ा है—
    यह एक इंस्टाग्राम स्टोरी से लेकर यूट्यूब वीडियो तक सब पर लागू हो सकता है

  • यह स्पष्ट नहीं है कि रेगुलेटर प्री-मॉडरेशन करेगा या पोस्ट-मॉडरेशन

इंस्टाग्राम की लोकप्रिय क्रिएटर डॉ. मेडुसा (माद्री काकोटी) ने कहा:

  • इस तरह का निकाय पूरी तरह “दबाव से मुक्त” हो ही नहीं सकता

  • अस्पष्ट शब्द जैसे ‘एंटी-नेशनल’, ‘अश्लील’ का गलत उपयोग कर विरोधी आवाज़ों को चुप कराया जा सकता है


2. समर्थन: पीड़ितों की सुरक्षा के लिए सख़्त नियम ज़रूरी

साइबर लॉ विशेषज्ञ पवन दुग्गल के अनुसार—

  • सुप्रीम कोर्ट का प्रस्ताव “समय की ज़रूरत” है

  • चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी, सेक्सुअल कंटेंट और चरम अश्लीलता जैसे मामलों में
    प्लेटफ़ॉर्म की धीमी कार्रवाई पीड़ितों को भारी नुकसान पहुँचाती है

  • लेकिन चेतावनी भी दी:
    “इंटरनेट को 1990 के दशक के टीवी नियमों से नियंत्रित नहीं किया जा सकता।”


क्या यह डिजिटल सेंसरशिप की राह है? या जवाबदेही का नया अध्याय?

भारत दुनिया के सबसे अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ताओं का देश है।
ऐसे में ऑनलाइन कंटेंट की निगरानी का सवाल—

अभिव्यक्ति की आज़ादी

सुरक्षा
गोपनीयता
डिजिटल अधिकार
इन चारों के बीच संतुलन की बेहद कठिन चुनौती है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रस्तावित स्वतंत्र निकाय—

यदि संतुलित, पारदर्शी और स्वतंत्र हो—
तो यह डिजिटल स्पेस को सुरक्षित बनाने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।
लेकिन अगर इसका इस्तेमाल गलत हुआ—
तो यह सेंसरशिप और सत्ता-केंद्रित नियंत्रण का नया रूप भी बन सकता है।

अब निगाहें केंद्र सरकार के उस ड्राफ़्ट पर टिकी हैं
जो आने वाले हफ्तों में डिजिटल कंटेंट रेगुलेशन की दिशा तय करेगा।

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