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कैसे अमेरिका दुनियाभर में युद्ध करवा कर अपनी ताकत, व्यापार और प्रभुत्व बनाए रखता है? एक विश्लेषणात्मक लेख

✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार 

भूमिका

20वीं सदी के उत्तरार्ध से लेकर आज तक, अमेरिका न केवल एक महाशक्ति बना रहा है, बल्कि उसने दुनिया के अधिकांश हिस्सों पर अपने राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य प्रभाव को मजबूती से स्थापित किया है। यह प्रभाव किसी एक नीति या घटना का परिणाम नहीं, बल्कि दशकों से चले आ रहे सुव्यवस्थित और रणनीतिक ‘एक तीर से अनेक शिकार’ जैसी वैश्विक नीति का हिस्सा है।

यह लेख उसी अमेरिकी नीति की गहराई में जाकर विश्लेषण करता है—कैसे अमेरिका युद्ध, गठबंधन और संकटों का उपयोग करके व्यापार, हथियार आपूर्ति और भूराजनीतिक नियंत्रण स्थापित करता है।



1. युद्ध एक औजार: लेकिन सिर्फ हथियारों के लिए नहीं

अमेरिका और "अनंत युद्ध" की रणनीति

अमेरिका ने कभी भी युद्ध को केवल ‘दुश्मन को हराने’ का माध्यम नहीं माना, बल्कि उसे एक बहुआयामी नीति के रूप में इस्तेमाल किया है। उदाहरण स्वरूप:

  • अफगानिस्तान (2001–2021): 20 वर्षों तक चले इस युद्ध में अमेरिका ने एक अस्थिर देश को हथियारों का बाज़ार बना दिया। इसके ज़रिए न केवल अमेरिकी हथियार कंपनियों को अरबों डॉलर का लाभ हुआ, बल्कि निजी सुरक्षा एजेंसियों और पुनर्निर्माण कंपनियों ने भी धन कमाया।

  • इराक (2003): 'Weapons of Mass Destruction' के नाम पर किया गया हमला वास्तव में मध्य पूर्व में तेल के संसाधनों और रणनीतिक स्थिति पर कब्ज़े का प्रयास था। यहाँ भी हथियार कंपनियाँ, तेल निगम और निर्माण उद्योगों ने भारी मुनाफा कमाया।

सीरिया और लीबिया: "Regime Change" के नाम पर खेल

सीरिया और लीबिया में अमेरिका ने लोकतंत्र और मानवाधिकार के नाम पर हस्तक्षेप किया, लेकिन सच्चाई यह है कि यह हस्तक्षेप अमेरिकी हितों की रक्षा और रूस व ईरान जैसे प्रतिद्वंद्वियों को कमजोर करने की रणनीति का हिस्सा था।


2. NATO: अमेरिका की छाया में संचालित वैश्विक सैन्य गठबंधन

नाटो का असली उद्देश्य

शीत युद्ध के बाद भी NATO को जीवित रखना अमेरिका की रणनीति का हिस्सा था, जिससे वह:

  • यूरोप पर सैन्य नियंत्रण बनाए रख सके।

  • अपने सैन्य बजट को “साझा रक्षा” के नाम पर औचित्य दे सके।

  • NATO देशों को अमेरिकी हथियारों का सबसे बड़ा ग्राहक बना सके।

यूक्रेन युद्ध में NATO की भूमिका

यूक्रेन और रूस के बीच तनाव बढ़ाने में अमेरिका समर्थित NATO की भूमिका पर आज वैश्विक विश्लेषकों में व्यापक सहमति है। यूक्रेन को लगातार NATO में शामिल करने की कोशिश रूस के खिलाफ अमेरिका की रणनीति का हिस्सा थी, जिसके परिणामस्वरूप रूस ने सैन्य कार्रवाई की, और अमेरिका को एक बार फिर हथियारों की बिक्री व यूरोप में अपनी सैन्य मौजूदगी मजबूत करने का अवसर मिला।


3. एशिया में अमेरिकी नीति: चीन का घेराव और भारत से समीकरण

दक्षिण चीन सागर और इंडो-पैसिफिक रणनीति

अमेरिका दक्षिण चीन सागर में "नौवहन की स्वतंत्रता" के नाम पर युद्धपोत भेजता है। यह रणनीति वास्तव में चीन की समुद्री सीमाओं को चुनौती देने और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को अमेरिकी पक्ष में करने का प्रयास है।

भारत: अमेरिका के लिए एक रणनीतिक साझेदार

भारत को अमेरिका ने दो बड़े उद्देश्यों के लिए चुना है:

  1. चीन का संतुलन: अमेरिका, भारत को ‘कंटेन चाइना’ नीति में एक प्रभावशाली शक्ति के रूप में देखता है।

  2. हथियार बाज़ार: अमेरिका भारत को सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता बनाना चाहता है। 2008 के बाद से भारत ने अमेरिका से अरबों डॉलर के हथियार खरीदे हैं।


4. हथियारों का साम्राज्य: युद्ध = मुनाफा

दुनिया का सबसे बड़ा हथियार व्यापारी

अमेरिका आज भी विश्व का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक है। SIPRI के अनुसार, 2018–2022 के बीच अमेरिका का वैश्विक हथियार निर्यात हिस्सा 40% से अधिक था।

अस्थिरता = व्यापार का विस्तार

अमेरिका का सिद्धांत है — जहां संकट है, वहां मुनाफा है। अमेरिका ने अफ्रीका, मध्य एशिया, मध्य पूर्व और अब यूरोप तक में अस्थिरता के जरिए हथियारों की मांग को बनाए रखा है।


5. सॉफ्ट पावर और साइकोलॉजिकल वॉरफेयर

मीडिया एक हथियार

CNN, FOX, BBC, NYT जैसे मीडिया संस्थान अमेरिकी नीति के ‘नरम चेहरे’ के प्रचारक हैं। किसी देश को तानाशाह या आतंकी कह कर वहां अमेरिकी हस्तक्षेप को नैतिक ठहराया जाता है।

हॉलीवुड और संस्कृति

फिल्मों, सीरीज और डॉक्यूमेंट्रीज़ के माध्यम से अमेरिका ने अपनी छवि एक "उद्धारकर्ता शक्ति" के रूप में पेश की है। यह ‘माइंड गेम’ वैश्विक जनमत को प्रभावित करता है।


6. आर्थिक युद्ध और प्रतिबंध नीति

डॉलर आधारित वर्चस्व

अमेरिका वैश्विक व्यापार में डॉलर की प्रधानता के ज़रिए देशों को दबाव में रखता है। किसी भी देश पर प्रतिबंध लगाने से उसका वैश्विक व्यापार ठप हो सकता है—जैसे कि ईरान, वेनेजुएला या रूस।

IMF और World Bank का राजनीतिक इस्तेमाल

IMF और वर्ल्ड बैंक जैसे संस्थानों के ज़रिए अमेरिका गरीब देशों पर कर्ज़ का ऐसा जाल बिछाता है जिससे उनकी आर्थिक नीतियाँ भी अमेरिकी नियंत्रण में आ जाती हैं।

7. परदे के पीछे का सूत्रधार: अमेरिका की युद्ध-उत्तेजना और हथियार कूटनीति

अमेरिका सदियों से दुनिया के विभिन्न हिस्सों में युद्धों को हवा देकर अपने रणनीतिक और आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति करता आया है। वह प्रत्यक्ष रूप से लड़ाई में शामिल न होकर भी दो देशों या गुटों के बीच ऐसा तनाव उत्पन्न कर देता है, जो अंततः युद्ध का रूप ले लेता है। उदाहरणस्वरूप, अमेरिका ने यूक्रेन को निरंतर रूस के विरुद्ध उकसाया, NATO में शामिल करने की बात कही, और परिणामस्वरूप रूस ने आक्रमण किया। इससे अमेरिका को एक और हथियार बाज़ार मिल गया और यूरोप में अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाने का मौका भी। इसी प्रकार, अमेरिका ने इज़राइल को हमास, यमन, लेबनान और ईरान जैसे विरोधी समूहों व देशों से लड़ने के लिए प्रेरित किया। अमेरिका और पूरी दुनिया यह भलीभांति जानती है कि यदि इज़राइल को अमेरिका से सैन्य, खुफिया और आर्थिक सहायता न मिले, तो वह इतने सारे मोर्चों पर टिक नहीं सकता। परदे के पीछे अमेरिका लगातार इन संघर्षों को हवा देता है—चाहे वह मध्यस्थता का बहाना हो, सुरक्षा का वादा, या लोकतंत्र की रक्षा का दिखावा। वास्तविकता यह है कि वह चुपके से अपने हथियार बेचता है, संघर्ष से लाभ उठाता है, और खुद को ‘शांति निर्माता’ के रूप में प्रस्तुत करता है। यह दोहरी नीति उसकी सदीयों पुरानी रणनीतिक परंपरा बन चुकी है।

निष्कर्ष: एक महाशक्ति या आधुनिक साम्राज्यवाद?

अमेरिका ने आधुनिक साम्राज्यवाद की परिभाषा ही बदल दी है। अब बंदूक से नहीं, ‘संविधान’, ‘लोकतंत्र’, ‘मानवाधिकार’, ‘साझेदारी’ और ‘सुरक्षा’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर के देशों को अधीन किया जाता है।

वह न केवल युद्ध जीतता है, बल्कि युद्ध की योजना बनाता है, उसका बाज़ार बनाता है, उसका प्रचार करता है, और फिर उसका राजनीतिक लाभ भी उठाता है।


अंतिम विचार

इस लेख का उद्देश्य अमेरिका की निंदा करना नहीं, बल्कि उसकी रणनीतियों का विवेकपूर्ण विश्लेषण करना है, जिससे पाठक यह समझ सकें कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कोई भी कदम केवल मानवता या नैतिकता के नाम पर नहीं उठाया जाता। हर कदम के पीछे शक्तिशाली देशों की सोच, फायदे और दीर्घकालिक लक्ष्य छिपे होते हैं।

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