बिहार की राजनीति एक बार फिर तेज़ी से करवट ले रही है। महागठबंधन की नई रणनीति, सीट शेयरिंग फॉर्मूला, और मुख्यमंत्री चेहरे की घोषणा को लेकर हाल के घटनाक्रमों ने सियासी पारे को चढ़ा दिया है। लालू यादव से जदयू नेता रणविजय सिंह की मुलाकात, वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी की 60 सीटों की माँग और भाजपा की ओर से 'घमंडिया गठबंधन' करार—इन सभी पहलुओं ने आगामी बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक हलचल को और भी ज़्यादा बढ़ा दिया है।
महागठबंधन में एकजुटता, तेजस्वी के नाम पर सहमति
पटना में महागठबंधन की बैठक के बाद विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी ने स्पष्ट कर दिया कि गठबंधन के भीतर मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई भ्रम या विवाद नहीं है। उन्होंने कहा, “बिहार चुनाव 2025 हम सभी एकजुट होकर तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ेंगे। उनके नाम पर कोई मतभेद नहीं है। उन्हें गठबंधन का सर्वमान्य चेहरा स्वीकार किया गया है।”
सहनी ने यह भी जोड़ा कि गठबंधन में डिप्टी सीएम के नाम पर भी सहमति बन चुकी है, लेकिन इन दोनों घोषणाओं को लेकर मीडिया को औपचारिक जानकारी उचित समय पर दी जाएगी। एक सह-समिति इस विषय में रिपोर्ट तैयार कर रही है, जिसकी अनुशंसा के अनुसार आगे की रणनीति बनाई जाएगी।
'60 सीटों' का फॉर्मूला: वीआईपी की मांग और सीट बंटवारे की तैयारी
मुकेश सहनी ने अपनी पार्टी के लिए 60 विधानसभा सीटों की माँग रखी है। उन्होंने कहा, “यह हमारी पार्टी की आंतरिक रणनीति है। 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में महागठबंधन की सभी घटक पार्टियाँ मिलकर साझा संघर्ष करेंगी और हर सीट को जीतने का प्रयास होगा।” उन्होंने भरोसा दिलाया कि बहुत जल्द सीटों के बंटवारे पर विस्तृत जानकारी सार्वजनिक की जाएगी।
इस बयान से यह स्पष्ट हो रहा है कि महागठबंधन अब चुनावी मोड में सक्रिय हो चुका है और सभी घटक दल अपनी-अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने की दिशा में रणनीतिक बातचीत में जुटे हैं।
जदयू नेता रणविजय सिंह की राबड़ी आवास पर मौजूदगी से गर्माई राजनीति
महागठबंधन की बैठक के बीच एक दिलचस्प और सियासी दृष्टिकोण से अहम मुलाकात हुई। जदयू के पूर्व विधान परिषद सदस्य रणविजय सिंह, जो नीतीश कुमार के करीबी माने जाते हैं, अचानक राबड़ी देवी के सरकारी आवास पहुँच गए और लालू प्रसाद यादव से मुलाकात की। इस मुलाकात ने राजनीतिक गलियारों में अफवाहों को हवा दे दी है।
कई सियासी विश्लेषकों का मानना है कि रणविजय सिंह जल्द ही राजद में शामिल हो सकते हैं, और यह मुलाकात उसी दिशा में एक बड़ा संकेत है। हालाँकि इसे औपचारिक तौर पर 'शिष्टाचार भेंट' कहकर शांत करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन राजनीति के जानकार इसे साधारण नहीं मान रहे।
भाजपा का तीखा हमला: 'घमंडिया गठबंधन' की संज्ञा
महागठबंधन की सक्रियता को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। भाजपा के प्रवक्ता अजय आलोक ने इस पूरे घटनाक्रम को महज 'सरकार बचाने की कवायद' करार दिया और कहा, “बिहार की जनता ने इन लोगों को पहले ही नकार दिया है। यह कोई INDIA गठबंधन नहीं, बल्कि घमंडिया गठबंधन है, जिसका बिहार की राजनीति में अब कोई भविष्य नहीं है।”
उन्होंने आगे कहा कि भाजपा और एनडीए आगामी चुनाव में अपने विकास कार्यों के दम पर जनता के बीच जाएगी और एक बार फिर जनसमर्थन प्राप्त करेगी।
निष्कर्ष: एक ही दिन में बदलते समीकरण
13 जून 2025 को बिहार की राजनीति में एक ही दिन में कई बड़े घटनाक्रम सामने आए—महागठबंधन की बैठक, तेजस्वी यादव के नाम पर सहमति, सीटों के बँटवारे की प्रक्रिया की शुरुआत और जदयू नेता की राजद सुप्रीमो से मुलाकात। इन सभी घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बिहार का आगामी विधानसभा चुनाव अब निर्णायक मोड़ पर पहुँच चुका है।
भले ही एनडीए और भाजपा इसे 'घमंडिया गठबंधन' बताकर खारिज करने की कोशिश कर रही हो, लेकिन महागठबंधन तेजस्वी यादव के चेहरे पर दांव खेलने को तैयार है। अब देखना यह है कि क्या यह एकता और रणनीति 2025 के चुनावी रण में वोटों में तब्दील हो पाती है या नहीं।
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