✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
लॉस एंजेलिस में ट्रंप प्रशासन के खिलाफ गुस्से की आग
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को एक तीखा और भड़काऊ बयान जारी करते हुए कहा कि यदि उन्होंने लॉस एंजेलिस में सैन्य बलों की तैनाती नहीं की होती, तो यह शहर अब तक पूरी तरह जल चुका होता। यह बयान आव्रजन नीति के खिलाफ हो रहे तीव्र विरोध प्रदर्शनों के बीच सामने आया है, जिसने अमेरिका की राजनीति में हलचल मचा दी है।
अपने आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ट्रंप ने लिखा कि पिछले तीन रातों से लॉस एंजेलिस में उनकी ओर से भेजे गए मरीन और सैनिकों ने शहर को पूरी तरह तबाह होने से रोका है। उन्होंने शहर की मौजूदा स्थिति की तुलना हाल में लगी जंगल की आग से की, जिसने कई रिहायशी इलाकों को खाक कर दिया था।
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आव्रजन छापेमारी के विरोध में सड़कों पर उतरे लोग
राष्ट्रपति ट्रंप के नेतृत्व में की गई आक्रामक आव्रजन छापेमारी ने देशभर में जनाक्रोश भड़का दिया है। लॉस एंजेलिस जैसे विविधता से भरे शहर में इन छापों के खिलाफ लोगों का गुस्सा सड़कों पर फूट पड़ा। हजारों की संख्या में लोग प्रदर्शन के लिए निकले, कई स्थानों पर आगजनी, तोड़फोड़ और पुलिस से टकराव की घटनाएं सामने आईं।
प्रदर्शनकारियों की ओर से प्रवासियों के अधिकारों की बहाली और ट्रंप प्रशासन की नीतियों को वापस लेने की मांग की जा रही है। विरोध प्रदर्शन में एक शख्स को जलती कारों के पास कई झंडों के साथ चलते हुए देखा गया, जो अब इस आंदोलन की象ात्मक तस्वीर बन चुकी है।
डेमोक्रेट नेताओं की तीखी प्रतिक्रिया, सैन्य तैनाती को बताया असंवैधानिक
डोनाल्ड ट्रंप द्वारा शहर में सेना की तैनाती को लेकर डेमोक्रेटिक नेताओं और नागरिक संगठनों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। कैलिफोर्निया के गवर्नर गेविन न्यूज़ॉम ने ट्रंप को तानाशाही प्रवृत्ति वाला राष्ट्रपति बताते हुए उनके फैसले को लोकतंत्र के खिलाफ बताया।
न्यूज़ॉम ने कहा कि ट्रंप की कार्रवाई न केवल असंवैधानिक है, बल्कि अमेरिका के लोकतांत्रिक मूल्यों पर सीधा हमला है। उन्होंने चेताया कि शांतिपूर्ण विरोध को सेना के दम पर कुचलने का प्रयास एक खतरनाक परंपरा की शुरुआत हो सकता है।
संविधान विशेषज्ञों ने भी इस कदम को Posse Comitatus Act का उल्लंघन करार दिया है, जो अमेरिकी सेना को घरेलू मामलों में हस्तक्षेप करने से रोकता है।
चुनावी रणनीति या लोकतंत्र पर प्रहार?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राष्ट्रपति ट्रंप के ऐसे बयान और कठोर कदम उनके राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा हैं। माना जा रहा है कि वे अपने कट्टर समर्थकों को मजबूत संदेश देना चाहते हैं कि वह कानून और व्यवस्था को प्राथमिकता देते हैं, भले ही इसके लिए नागरिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगाना पड़े।
उनकी भाषा में भय और विभाजन की राजनीति स्पष्ट झलकती है, जो आने वाले चुनावों में उन्हें लाभ दिलाने की रणनीति हो सकती है। लेकिन इसका दायरा केवल राजनीति तक सीमित नहीं है, यह अमेरिकी समाज की संरचना और उसकी लोकतांत्रिक आत्मा को भी गहराई से प्रभावित कर रहा है।
अमेरिकी लोकतंत्र के सामने खड़ा हुआ नया सवाल
इस पूरे घटनाक्रम ने अमेरिका को एक निर्णायक मोड़ पर ला खड़ा किया है, जहां यह तय होगा कि क्या देश अब भी असहमति, विरोध और नागरिक अधिकारों को सम्मान देगा या फिर सत्ता की भाषा ही सर्वोपरि होगी।
नागरिक अधिकार संगठनों ने सैन्य तैनाती के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाने की तैयारी शुरू कर दी है। सोशल मीडिया पर लाखों लोग इस फैसले के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। हैशटैग ट्रेंड्स और प्रदर्शन अब अमेरिका की सड़क से लेकर उसकी न्यायपालिका तक पहुंच चुके हैं।
निष्कर्ष:-
डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दिया गया यह बयान केवल एक चेतावनी नहीं, बल्कि लोकतंत्र के भविष्य के लिए गंभीर संकेत है। लॉस एंजेलिस की सड़कों पर फैली आग अब केवल गाड़ियों या इमारतों को नहीं जला रही, वह उस विचार को भी चुनौती दे रही है जिस पर अमेरिका की नींव रखी गई थी — आज़ादी, समानता और नागरिक स्वतंत्रता।
अब देखना यह है कि अमेरिका अपने संवैधानिक आदर्शों की रक्षा करता है या सत्ता के नए और कठोर मानकों को सामान्य बना देता है।
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