✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
भूमिका:
भारत और पाकिस्तान के बीच हुए हालिया संघर्षविराम को लेकर एक बार फिर अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयान ने कूटनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर हुई 35 मिनट की बातचीत के कुछ घंटों बाद ही ट्रंप ने दावा किया कि "उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध को रोका", जबकि भारत सरकार की ओर से स्पष्ट कर दिया गया है कि यह पाकिस्तान के आग्रह पर किया गया द्विपक्षीय निर्णय था, जिसमें अमेरिका या किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं थी।
फोन कॉल: क्या हुआ बातचीत में?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच यह फोन कॉल उस समय हुआ जब ट्रंप को कनाडा में चल रहे G7 शिखर सम्मेलन को बीच में छोड़कर जाना पड़ा, जिससे उनकी नियोजित द्विपक्षीय बैठक रद्द हो गई। इस कॉल में दोनों नेताओं के बीच कश्मीर में हुई आतंकी घटना और भारत की जवाबी कार्रवाई "ऑपरेशन सिंदूर" पर विस्तार से चर्चा हुई।
भारत की ओर से विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने बताया कि प्रधानमंत्री ने ट्रंप को स्पष्ट किया कि भारत की कार्रवाई सीमित, लक्षित और आत्म-रक्षा के तहत थी, जिसमें आतंकी ठिकानों और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में मौजूद छिपे हुए आतंकी शिविरों को निशाना बनाया गया।
भारत का रुख: मध्यस्थता नहीं, आत्म-निर्णय का अधिकार
विदेश सचिव ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी साफ कर दिया कि:
“भारत ने कभी किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं किया है और न ही भविष्य में करेगा।"
यह भी स्पष्ट किया गया कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम की बातचीत दोनों देशों की सैन्य इकाइयों के बीच सीधे संचार चैनलों के माध्यम से हुई थी, और यह पहल पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख की ओर से 10 मई को की गई थी, जब भारत ने पाकिस्तान के भीतर स्थित नूर खान एयरबेस (चकलाला) सहित कई ठिकानों को निशाना बनाया।
ट्रंप का दावा: "मैंने युद्ध रोका"
इसके ठीक उलट, डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए कहा:
“मैंने पाकिस्तान और भारत के बीच युद्ध को रोका। मुझे पाकिस्तान से प्रेम है। मोदी एक शानदार व्यक्ति हैं, हमने रात में बात की। हम भारत के साथ व्यापार समझौता करने जा रहे हैं... और मैंने युद्ध रोका।”
उन्होंने यह भी दावा किया कि पाकिस्तान की ओर से जनरल असीम मुनीर और भारत की ओर से मोदी इस प्रयास में “काफी प्रभावशाली” रहे।
ट्रंप ने प्रेस पर भी नाराज़गी जताई और कहा:
"मैंने दो परमाणु शक्तियों के बीच युद्ध रोका, लेकिन एक भी समाचार रिपोर्ट नहीं लिखी गई। लेकिन कोई बात नहीं, जनता जानती है।"
भारत की आपत्ति: 'क्रेडिट लेने की ज़रूरत नहीं'
भारत सरकार पहले भी स्पष्ट कर चुकी है कि न तो अमेरिका, न ही कोई अन्य बाहरी ताकत इस संघर्षविराम में शामिल थी। यह एक सैन्य स्तर की रणनीतिक पहल थी, जिसमें कोई कूटनीतिक मध्यस्थता नहीं हुई। ट्रंप द्वारा बार-बार इसका श्रेय लेना, भारत के संप्रभु निर्णय पर सीधा सवाल खड़ा करता है और कूटनीतिक रूप से असंगत और अनुचित माना जा रहा है।
ट्रंप की रणनीति: "व्यापार" के बहाने दबाव
ट्रंप ने यह भी कहा कि जैसे उन्होंने व्यापार के ज़रिए भारत और पाकिस्तान के बीच "विवेक और समझौते" की भावना पैदा की, उसी तरह वह ईरान और इज़राइल के बीच भी समझौता करवाने जा रहे हैं।
यह बयान दर्शाता है कि ट्रंप अपनी "करोट या छड़ी" (carrot and stick) कूटनीति को फिर से चुनावी मुद्दा बनाना चाहते हैं, जहां वह विश्व में शांति स्थापित करने का श्रेय खुद को दे सकें — भले ही वास्तविकता कुछ और हो।
विश्लेषण: क्या यह बयान राजनीतिक स्टंट है?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप का यह दावा उस समय आया है जब अमेरिका में आगामी राष्ट्रपति चुनाव की हलचल शुरू हो चुकी है। उनके लिए अंतरराष्ट्रीय शांति के मामलों में "नायक" बनकर उभरना एक रणनीतिक अभियान हो सकता है।
वहीं भारत के लिए यह स्थिति संवेदनशील है क्योंकि मध्यस्थता का कोई भी संकेत कश्मीर और राष्ट्रीय संप्रभुता जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भारत की सख्त नीति के विपरीत है।
अंतिम अपील: तथ्य बनाम बयानबाज़ी
जब दो परमाणु शक्तियाँ टकराव की ओर बढ़ रही हों, तब विश्वास और पारदर्शिता ही शांति की कुंजी होती है। राजनीतिक लाभ के लिए झूठे दावे और गलत क्रेडिट लेना, सिर्फ सच्चाई को धुंधलाने का कार्य करता है। भारत ने अपने आत्मसम्मान, नीति और दृढ़ता के साथ यह स्पष्ट कर दिया है कि वह शांति का पक्षधर अवश्य है — लेकिन किसी भी कीमत पर नहीं।
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