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चाबहार पर संकट की आहट: 4770 करोड़ रुपये का भारतीय निवेश खतरे में, ईरान-इजरायल युद्ध बना बड़ी चुनौती

 ✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार  

भूमिका: व्यापारिक महत्वाकांक्षा बनाम भूराजनीतिक अस्थिरता

भारत और ईरान के बीच चाबहार पोर्ट को लेकर बना सहयोग एक नई अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक दिशा को स्थापित करने का प्रयास है। लेकिन पश्चिम एशिया में बढ़ते ईरान-इजरायल तनाव और अमेरिकी रणनीतिक हस्तक्षेप ने इस योजना को एक बड़े संकट के मुहाने पर ला खड़ा किया है। करीब 4770 करोड़ रुपये (550 मिलियन डॉलर) का भारतीय निवेश इस भूराजनीतिक उथल-पुथल से प्रभावित हो सकता है।



चाबहार पोर्ट: भारत की 'स्ट्रैटेजिक गेटवे' योजना का स्तंभ

मई 2024 में भारत ने ईरान के शाहिद बेहेश्ती टर्मिनल को दस वर्षों तक संचालित करने का ऐतिहासिक समझौता किया था। यह टर्मिनल भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंचने का वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है, जो पाकिस्तान के कराची बंदरगाह और चीन के ग्वादर पोर्ट के प्रभाव को चुनौती देता है।

इस सहयोग का संचालन इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) कर रही है, जो जवाहरलाल नेहरू पोर्ट और कांडला पोर्ट का संयुक्त उपक्रम है।


वित्तीय प्रतिबद्धता: 4770 करोड़ रुपये की भारी पूंजी

भारत ने चाबहार परियोजना में तीन प्रमुख माध्यमों से पूंजी निवेश किया है:

  • $85 मिलियन (करीब 710 करोड़ रुपये) से पोर्ट बर्थ और ढांचागत सुविधाओं को उन्नत किया जा रहा है।

  • $150 मिलियन की EXIM बैंक लाइन ऑफ क्रेडिट, जो पोर्ट संचालन से संबंधित बुनियादी कार्यों के लिए है।

  • $400 मिलियन की अतिरिक्त क्रेडिट लाइन, जो विशेष रूप से चाबहार-जाहेदान रेलवे के लिए इस्पात और उपकरणों की आपूर्ति हेतु दी गई है।

कुल मिलाकर यह निवेश करीब $550 मिलियन यानी ₹4770 करोड़ से अधिक बैठता है।


INSTC कॉरिडोर: भारत की मध्य एशिया तक सीधी राह

चाबहार पोर्ट का महत्व केवल व्यापारिक नहीं, बल्कि रणनीतिक भी है। यह बंदरगाह इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो ईरान, अफगानिस्तान, अजरबैजान, रूस और मध्य एशिया तक भारत की सीधी सड़क और रेल पहुंच सुनिश्चित करता है।


ईरान-इजरायल युद्ध और अमेरिकी भूमिका: सबसे बड़ा खतरा

हालिया ईरान-इजरायल युद्ध और इसमें अमेरिका की अप्रत्यक्ष भागीदारी ने इस पूरे कॉरिडोर की स्थिरता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। संभावित खतरों में शामिल हैं:

  • बीमा लागत में भारी वृद्धि: युद्ध की आशंका से पोर्ट संचालन के बीमा खर्च में उछाल आया है।

  • लॉजिस्टिक्स पर प्रभाव: जहाजरानी कंपनियों और ट्रांसपोर्ट नेटवर्क युद्ध क्षेत्र से गुजरने में असहज हैं।

  • प्रतिबंधों का असर: पश्चिमी प्रतिबंधों से ईरान में आवश्यक उपकरणों, तकनीकी सहयोग और बैंकिंग सुविधाओं पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।

यह स्थिति INSTC की व्यावहारिकता को भी प्रभावित कर सकती है।


राजनयिक सक्रियता: भारत-ईरान समन्वय की कोशिशें

भारत और ईरान के अधिकारी इस स्थिति से निपटने के लिए लगातार कूटनीतिक स्तर पर सक्रिय हैं। जनवरी 2025 में हुई राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक में चाबहार पोर्ट और INSTC पर सहयोग को और मजबूत करने का संकल्प लिया गया।

भारत, यह सुनिश्चित कर रहा है कि किसी भी युद्ध की स्थिति में उसकी परियोजना प्रभावित न हो। इसी प्रयास के तहत बीमा, निवेश संरचना और संचालन अधिकारों को लेकर सुरक्षा उपायों पर चर्चा हो रही है।


अफगानिस्तान के लिए जीवनरेखा

चाबहार पोर्ट भारत के लिए केवल एक व्यापारिक गलियारा नहीं है, यह अफगानिस्तान के लिए एकमात्र मानवीय समुद्री रास्ता भी है। भारत ने चाबहार के माध्यम से गेहूं, दालें और दवाइयां अफगानिस्तान भेजी हैं, जिससे तालिबान युग में भी वहां मानवीय सहायता जारी रह सकी।


निजी क्षेत्र की दिलचस्पी और सरकार की अपील

2017 में अडानी ग्रुप और एस्सार जैसी कंपनियों ने चाबहार पोर्ट में निवेश में रुचि दिखाई थी, लेकिन युद्ध और प्रतिबंधों के कारण अब तक निजी निवेश सुस्त है। भारत सरकार अब भी कंपनियों को इस परियोजना में भाग लेने के लिए प्रेरित कर रही है।


भविष्य की चुनौतियाँ और संभावनाएं

  • अगर ईरान-इजरायल युद्ध व्यापक रूप लेता है, तो चाबहार पोर्ट संचालन ठप पड़ सकता है।

  • भारत की पूरी रणनीति INSTC और अफगान व्यापार पर केंद्रित है – यह योजना युद्ध या प्रतिबंधों से डगमगा सकती है।

  • ऐसे में भारत को रणनीतिक वैकल्पिक योजना B पर विचार करना पड़ सकता है, जिसमें ओमान के दुबारा पोर्ट या रूस-ईरान-भारत समुद्री रूट जैसे विकल्प शामिल हो सकते हैं।


निष्कर्ष:-

 चाबहार भारत की उम्मीद है, लेकिन जोखिम भी अपार हैं

भारत ने चाबहार पोर्ट में न केवल निवेश किया है, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से इसे एक "जियो-इकोनॉमिक एंकर" के रूप में देखा है। हालांकि वर्तमान में युद्ध और भू-राजनीतिक तनाव ने इस योजना को खतरे में डाल दिया है। आगे की स्थिति इस बात पर निर्भर करेगी कि भारत अपनी कूटनीतिक कुशलता, सामरिक दृष्टिकोण और वैकल्पिक रणनीतियों को किस तरह लागू करता है।

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