दिल्ली की सत्ता में आने के बाद भाजपा सरकार ने अपने पहले 100 दिनों को ‘प्रशासनिक समन्वय और विकास की नई दिशा’ के रूप में प्रस्तुत किया है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की अगुवाई में केंद्र, राज्य और नगर निगमों के ‘चार-इंजन मॉडल’ को दिल्ली की समस्याओं के स्थायी समाधान के रूप में दर्शाया जा रहा है। लेकिन जहां सरकार अपने रिपोर्ट कार्ड में इन 100 दिनों को ‘विकास और पारदर्शिता का दौर’ बता रही है, वहीं विपक्ष और कुछ सामाजिक वर्ग इसे "पुराने वादों की नई पैकिंग" करार दे रहे हैं।
📊 सरकार की प्रमुख उपलब्धियाँ: एक नजर
सरकार के अनुसार, इन 100 दिनों में कई महत्वपूर्ण पहलें की गई हैं:
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महिला समृद्धि योजना के ज़रिए आर्थिक रूप से पिछड़ी महिलाओं को सशक्त बनाने की शुरुआत हुई है।
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निजी स्कूलों की फीस नियंत्रण के लिए एक विधेयक लाया गया है, जिससे शिक्षा को किफायती बनाने की बात कही गई है।
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'आयुष्मान भारत' का विस्तार कर बुज़ुर्गों को ₹10 लाख तक का स्वास्थ्य बीमा देने का ऐलान किया गया है।
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यमुना सफाई और पर्यावरण संरक्षण के लिए विशेष अभियानों की शुरुआत की गई है।
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देवी योजना के अंतर्गत 400 नई बसें महिलाओं की सुरक्षा और यातायात सुविधा हेतु चलाई गई हैं।
सरकार का दावा है कि इन योजनाओं में पारदर्शिता और प्रशासनिक कुशलता का समावेश है, और यह दिल्ली को 'विकसित भारत' का मॉडल शहर बनाने की दिशा में प्रयासरत है।
🧾 वादों की पड़ताल: आलोचना और ज़मीनी सच्चाई
विकास के इन दावों के समानांतर, आलोचकों का कहना है कि सरकार की कई घोषणाएँ महज़ घोषणा बनकर रह गई हैं और ज़मीनी स्थिति जस की तस बनी हुई है।
🔹 यमुना की सफाई
सरकार ने यमुना को साफ़ करने के लिए विशेष अभियान की बात की थी, लेकिन अब तक इसका कोई ठोस परिणाम दिखाई नहीं देता। यमुना का पानी अब भी ज़हरीला बना हुआ है और झुग्गी क्षेत्रों में गंदगी और गंदा पानी आम समस्या है।
🔹 महिलाओं से जुड़ा वादा
चुनाव से पहले महिलाओं को ₹2500 प्रति माह देने का वादा किया गया था, जिसे लेकर सरकार ने अब तक कोई स्पष्ट नीति नहीं दी। उल्टा, दिल्ली में महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा सुविधा जो पहले से जारी थी, उसे बंद कर दिया गया है। यह निर्णय कई वर्गों में असंतोष का कारण बना है।
🔹 शिक्षा व्यवस्था और स्कूल फीस
भले ही सरकार ने फीस नियंत्रण कानून लाने की बात की हो, लेकिन निजी स्कूलों ने पिछले तीन महीनों में भारी फीस बढ़ा दी है। इसके पीछे नियामक ढांचे की सुस्ती और कार्यान्वयन की कमी मानी जा रही है।
🔹 बिजली संकट
दिल्ली में बिजली आपूर्ति की हालत और भी बदतर हो गई है, विशेषकर गर्मियों में लगातार हो रही कटौती ने लोगों की परेशानी बढ़ा दी है।
🔹 गरीबों की झुग्गियाँ और विस्थापन
विकास कार्यों की आड़ में झुग्गी बस्तियों और गरीब वर्ग के घरों को हटाने पर सरकार का प्राथमिक फोकस नज़र आ रहा है। पुनर्वास की नीति अस्पष्ट है और इस कारण सैकड़ों परिवारों का जीवन अस्थिर हुआ है।
🤝 समन्वय बनाम स्वायत्तता
केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच सहयोगात्मक पहलें — जैसे सड़क विकास, जल प्रबंधन और शहरी ढांचे के निर्माण — विकास की दृष्टि से सकारात्मक अवश्य कही जा सकती हैं, लेकिन आलोचक इसे ‘संविधानिक स्वायत्तता’ के साथ समझौता मानते हैं। दिल्ली की शासन व्यवस्था, जहाँ निर्वाचित सरकार की सीमित शक्तियाँ होती हैं, वहाँ ‘चार-इंजन मॉडल’ लोकतांत्रिक जवाबदेही की भी नई बहस छेड़ता है।
🗣️ ईमानदारी बनाम जुमलेबाज़ी?
मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा कि “हम झूठे वादों की नहीं, ईमानदार शासन की सरकार हैं।” लेकिन विरोधियों का तर्क है कि जिन मुद्दों पर भाजपा पहले की केजरीवाल सरकार को कठघरे में खड़ा करती थी — जैसे प्रदूषण, यमुना सफाई, बिजली संकट, और शिक्षा माफ़िया — उन्हीं मोर्चों पर भाजपा सरकार अब ज़्यादा कमज़ोर नज़र आ रही है।
🔮 भविष्य की चुनौतियाँ और दिशा
सरकार ने अगले चरणों में यमुना पुनर्जीवन, कचरा प्रबंधन, और शहरी परिवहन सुधार पर ध्यान केंद्रित करने की बात कही है। लेकिन इन नीतियों की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि क्या वे सिर्फ़ विज्ञापन या घोषणाओं तक सीमित रहती हैं या फिर ज़मीन पर बदलाव लाने में सक्षम होती हैं।
🔍 निष्कर्ष: पहली झलक में चमक, मगर सवाल अब भी कायम
दिल्ली में भाजपा सरकार के पहले 100 दिन प्रशासनिक जोश, घोषणाओं और मीडिया प्रबंधन में सफल ज़रूर रहे हैं, मगर ज़मीनी स्तर पर जिन समस्याओं का हल जनता को चाहिए — शिक्षा, स्वच्छता, महिला सुरक्षा और रोजगार — उन पर अब तक ठोस प्रगति दिखाई नहीं देती। जनता की आशाएँ अब भी पूरी तरह पूरी नहीं हुई हैं, और यदि आने वाले समय में यही रुख रहा, तो ‘विश्वस्तरीय दिल्ली’ का सपना फिर एक राजनीतिक नारा भर बनकर रह जाएगा।
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