रिपोर्ट: Z.S.RAZZAQI 28 मई 2025
"जांच की सीमा लांघने की कोशिश न करें": सुप्रीम कोर्ट की दो टूक चेतावनी
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, जो महमूदाबाद की ओर से पेश हुए, ने आशंका जताई कि हरियाणा सरकार द्वारा गठित SIT अपने अधिकार-क्षेत्र से बाहर जाकर जांच कर सकती है, जैसे कि उनके डिजिटल उपकरणों की जब्ती या अन्य मामलों में तफ्तीश। इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने सख्त लहजे में कहा:
"FIRs पहले से रिकॉर्ड में हैं। फिर डिवाइसेज़ की जरूरत कहाँ है? जांच को दिशा से भटकाने की कोशिश न करें। SIT को स्वतंत्रता है लेकिन वह मूल विषय से भटक नहीं सकती।"
कोर्ट ने हरियाणा के एडिशनल एडवोकेट जनरल को स्पष्ट कर दिया कि जांच का दायरा सिर्फ वही दो FIR हैं जिनकी न्यायिक सुनवाई चल रही है।
अंतरिम जमानत की शर्तों में ढील की मांग, कोर्ट ने दी प्रतीक्षा की सलाह
कपिल सिब्बल ने यह भी अनुरोध किया कि अंतरिम जमानत के दौरान लगाई गई शर्तों को हटाया जाए, क्योंकि महमूदाबाद एक शिक्षित और जिम्मेदार व्यक्ति हैं। उन्होंने कहा:
"मेरे मुवक्किल प्रोफेसर हैं। वे कुछ गलत नहीं करेंगे। कृपया यह बयान रिकॉर्ड में लें और शर्तों को हटा दें।"
इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने उत्तर दिया कि यह शर्तें "कूलिंग-ऑफ" अवधि के तौर पर रखी गई हैं ताकि मामले को शांतिपूर्वक हल किया जा सके। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि महमूदाबाद स्वतंत्र रूप से अन्य विषयों पर लेख लिख सकते हैं, बशर्ते वे उस मामले से संबंधित न हों।
"हम समानांतर मीडिया ट्रायल नहीं चाहते। वे किसी भी विषय पर लिख सकते हैं, लेकिन इस विवादित विषय पर नहीं। उनके अभिव्यक्ति के अधिकार में कोई बाधा नहीं है।"
मानवाधिकार आयोग की संज्ञान पर हरियाणा सरकार से जवाब तलब
कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या राज्य सरकार ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) द्वारा FIR दर्ज करने के तरीके पर संज्ञान लिए जाने का उत्तर दिया है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा:
"हमें यह भी बताइए कि आपने NHRC के नोटिस का क्या उत्तर दिया है।"
पृष्ठभूमि: क्यों बढ़ा विवाद
अली खान महमूदाबाद को हरियाणा पुलिस ने 18 मई को उनके कथित विवादास्पद सोशल मीडिया पोस्ट्स को लेकर गिरफ्तार किया था। ये पोस्ट्स 'ऑपरेशन सिंदूर' से संबंधित थे, जिसमें भारत की सैन्य प्रतिक्रिया और उससे जुड़े राजनीतिक विमर्श का ज़िक्र था। सुप्रीम कोर्ट ने 21 मई को उन्हें अंतरिम जमानत दी थी, लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच पर रोक नहीं लगाई गई।
कोर्ट ने हरियाणा पुलिस प्रमुख को निर्देश दिया कि SIT का गठन वरिष्ठ IPS अधिकारियों से किया जाए, जो हरियाणा या दिल्ली से न हों, ताकि निष्पक्ष जांच सुनिश्चित की जा सके। साथ ही महमूदाबाद को यह निर्देश दिया गया कि वे जांच में पूरा सहयोग करें और अपना पासपोर्ट जमा करें।
कोर्ट की टिप्पणी: "शब्दों की मर्यादा होनी चाहिए"
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने महमूदाबाद के पोस्ट्स में इस्तेमाल किए गए शब्दों पर भी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि ऐसे संवेदनशील विषयों पर लेखन करते समय "सभ्य, सम्मानजनक और संतुलित भाषा" का प्रयोग किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कुछ टिप्पणियाँ "डॉग व्हिस्लिंग" यानी परोक्ष रूप से उकसाने की श्रेणी में आ सकती हैं।
निष्कर्ष: न्यायिक संतुलन की मिसाल
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय दर्शाता है कि न्यायपालिका अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखने को लेकर कितनी सजग है। जांच एजेंसियों को दिशा दिखाते हुए कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया है कि किसी व्यक्ति को उसके विचारों के लिए अत्यधिक दंडित न किया जाए, जब तक वह कानून की सीमा का उल्लंघन न करे।