सोनीपत (हरियाणा) | तारीख: 18 मई 2025
भारत में लोकतांत्रिक विमर्श और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर एक बार फिर गंभीर बहस छिड़ गई है, जब प्रतिष्ठित अशोका यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अली खान महमूदाबाद को 'ऑपरेशन सिंदूर' पर किए गए एक सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर हरियाणा पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
क्या सोच की विविधता अब अपराध है?
डॉ. महमूदाबाद एक जाने-माने शिक्षाविद्, लेखक और समाज के लिए प्रतिबद्ध स्वतंत्र विचारक हैं, जिन्होंने हमेशा भारत की लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और मानवीय परंपराओं की वकालत की है। उनकी पोस्ट को लेकर आरोप है कि उन्होंने "देश की अखंडता को खतरे में डाला" और "समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाया", परंतु उनके वकील कपिल बलियान ने इन आरोपों को “मनगढ़ंत और असंवैधानिक” बताया।
बलियान के अनुसार, “इसी तरह के विचार सोशल मीडिया पर कई रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर, राजनीतिक नेता और सामाजिक चिंतक व्यक्त कर चुके हैं। लेकिन कार्रवाई केवल एक मुस्लिम प्रोफेसर पर हुई — क्या यह संयोग है?”
महिला आयोग की आपत्ति: विचार बनाम व्याख्या
हरियाणा राज्य महिला आयोग ने 12 मई को प्रोफेसर को समन भेजा, जिसमें उन पर महिला अधिकारियों के बारे में “अपमानजनक टिप्पणी” करने का आरोप है। विशेष रूप से विंग कमांडर व्योमिका सिंह और कर्नल सोफिया कुरैशी का नाम लिया गया। परंतु प्रोफेसर का कहना है कि उनका उद्देश्य महिलाओं की भूमिका को कमतर आंकना नहीं, बल्कि सैन्य कार्रवाइयों पर मानवीय दृष्टिकोण से सवाल उठाना था।
डॉ. अली खान ने 14 मई को एक सार्वजनिक बयान में कहा:
“मैंने अपने पोस्ट में भारतीय सशस्त्र बलों की बहादुरी को नकारा नहीं, बल्कि युद्ध और सैन्य अभियानों के दौरान मानवीय मूल्यों और शांति की आवश्यकता पर बल दिया। मेरे शब्दों को संदर्भ से काटकर पेश किया गया।”
क्या यह अभिव्यक्ति की हत्या नहीं है?
प्रोफेसर अली खान की गिरफ़्तारी भारत में बढ़ती असहिष्णुता की उस चिंताजनक लहर का हिस्सा प्रतीत होती है, जिसमें आलोचनात्मक सोच, स्वतंत्र लेखन और बौद्धिक विमर्श को “राष्ट्रविरोध” का जामा पहनाकर दबाया जा रहा है।
यह पहला मामला नहीं है — पिछले कुछ महीनों में यूट्यूबर, सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी भी निशाने पर आए हैं:
● यूट्यूबर पर शिकंजा:
हरियाणा की यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा को पाकिस्तान को जानकारी देने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया। इसके बाद ओडिशा पुलिस ने यूट्यूब क्रिएटर्स पर निगरानी शुरू की, जिससे रचनात्मकता और डिजिटल अभिव्यक्ति पर खतरा मंडराने लगा।
● सोशल मीडिया की सेंसरशिप:
सरकार ने बीबीसी डॉक्यूमेंट्री 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' को यूट्यूब व ट्विटर से हटवाया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की गई थी। विपक्ष और मानवाधिकार संगठनों ने इसे 'अभिव्यक्ति की हत्या' कहा।
● यूट्यूबर्स को मानहानि के मुकदमे:
महाराष्ट्र में बॉम्बे हाईकोर्ट ने दो यूट्यूबर्स को भाजपा मंत्री गिरीश महाजन पर किए वीडियो हटाने और आगे ऐसा कंटेंट न डालने का आदेश दिया।
सेक्युलर और संवैधानिक मूल्यों की कसौटी पर यह कार्रवाई
प्रोफेसर अली खान की गिरफ़्तारी हमें संविधान की उस प्रस्तावना की याद दिलाती है, जिसमें "विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता" को मौलिक अधिकार माना गया है। क्या यह गिरफ्तारी उस भावना के विरुद्ध नहीं जाती?
यदि एक प्रोफेसर — जो युवा पीढ़ी को लोकतांत्रिक सोच सिखाता है — को अपनी राय रखने पर सलाखों के पीछे डाल दिया जाए, तो यह किस दिशा की ओर संकेत करता है? क्या हम एक ऐसी व्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं जहां असहमति ही अपराध बन जाए?
अशोका यूनिवर्सिटी की प्रतिक्रिया
यूनिवर्सिटी ने एक औपचारिक बयान में कहा:
“हमें जानकारी मिली है कि प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को पुलिस ने हिरासत में लिया है। हम मामले की पूरी जानकारी जुटा रहे हैं और संबंधित प्रशासनिक इकाइयों के साथ सहयोग कर रहे हैं।”
निष्कर्ष: एक शिक्षाविद् की गरिमा और अभिव्यक्ति की आज़ादी
डॉ. अली खान महमूदाबाद जैसे शिक्षाविदों की गिरफ़्तारी केवल एक व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं है — यह एक विचारधारा, स्वतंत्र सोच और भारत के सेक्युलर ढांचे पर प्रश्नचिह्न है। क्या अब किसी घटना पर मानवीय दृष्टिकोण से प्रश्न उठाना अपराध बन गया है?
भारत की विविधता, बहुलतावाद और लोकतांत्रिक आत्मा को बचाने के लिए यह ज़रूरी है कि हम असहमति की आवाज़ों को दबाने के बजाय उन्हें सुने, समझें और संवाद के लिए स्थान दें — वरना इतिहास हमें क्षमा नहीं करेगा।
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