Type Here to Get Search Results !

ADS5

ADS2

वक्फ एक्ट 1995 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का केंद्र और राज्यों को नोटिस: मुस्लिम पक्ष के अधिकारों और धार्मिक आज़ादी की रक्षा का संवैधानिक सवाल

नई दिल्ली, 27 मई 2025

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर वक्फ अधिनियम 1995 (Waqf Act, 1995) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जवाब तलब किया है। यह मामला न केवल एक कानून की संवैधानिकता से जुड़ा है, बल्कि भारत में मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और संपत्ति संबंधी स्वतंत्रता से भी गहरे तौर पर जुड़ा हुआ है।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ए. जी. मसीह की पीठ ने यह नोटिस दिल्ली निवासी निखिल उपाध्याय की याचिका पर जारी किया, जिसे पहले से लंबित वकील हरी शंकर जैन और एक अन्य याचिकाकर्ता की याचिका के साथ जोड़ा गया है। इन याचिकाओं में वक्फ अधिनियम की वैधता को ही चुनौती दी गई है, जिसे मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों और धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन का एक ऐतिहासिक और कानूनी आधार माना जाता है।



🔎 वक्फ एक्ट क्या है और मुस्लिम पक्ष क्यों कर रहा है इसका समर्थन?

वक्फ अधिनियम, 1995 भारत में मुस्लिम धार्मिक संपत्तियों की सुरक्षा और प्रबंधन के लिए एक व्यापक कानूनी ढांचा प्रदान करता है। यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि मस्जिदों, कब्रिस्तानों, दरगाहों, मदरसों और अन्य धार्मिक-धार्मिक उद्देश्य से समर्पित संपत्तियाँ सुरक्षित, पारदर्शी और सामुदायिक हित में उपयोग में लाई जाएँ।

वक्फ संपत्ति को न तो बेचा जा सकता है, न गिरवी रखा जा सकता है और न ही उस पर निजी स्वामित्व का दावा किया जा सकता है — यह उस पवित्र उद्देश्य का प्रतिबिंब है, जिसके लिए उसे 'वक्फ' किया गया होता है। इस कानून ने मुस्लिम समाज को न केवल अपने धार्मिक अस्तित्व को संरक्षित रखने में मदद की, बल्कि उसे सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से भी सशक्त किया है।


⚖️ क्यों उठी अब इसकी संवैधानिकता पर आपत्ति?

सुनवाई के दौरान जब याचिकाकर्ताओं की ओर से 1995 के वक्फ अधिनियम को चुनौती दी गई, तो कोर्ट ने सवाल उठाया कि अब इतने वर्षों बाद इसकी वैधता पर सवाल क्यों उठाया जा रहा है? वकील विष्णु शंकर जैन ने दलील दी कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें हाईकोर्ट जाने को कहा था, परंतु बेंच इस तर्क से संतुष्ट नहीं हुई।

हालांकि, वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने दलील दी कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ पहले ही यह स्पष्ट कर चुकी है कि 1995 अधिनियम को 2025 संशोधन से अलग करके सुना जाएगा, और याचिकाकर्ताओं को इस पर प्रतिक्रिया देने की अनुमति दी गई है।


📜 मुस्लिम पक्ष की संवैधानिक दलीलें:

मुस्लिम पक्ष का मानना है कि:

  1. वक्फ अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 — धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक संस्थाओं को संचालित करने के अधिकार — के अंतर्गत संरक्षित है।

  2. यह अधिनियम किसी विशेष वर्ग को विशेषाधिकार नहीं देता, बल्कि केवल उसकी धार्मिक संपत्तियों को सुरक्षित रखने की गारंटी देता है — जैसे हिंदू धार्मिक न्यास अधिनियम या जैन मंदिर प्रबंधन अधिनियम अन्य समुदायों को देते हैं।

  3. यह अधिनियम भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे का ही हिस्सा है, जो सभी धर्मों के पवित्र स्थलों और धार्मिक गतिविधियों को संवैधानिक संरक्षण देता है।


⚠️ विवाद और याचिकाकर्ताओं के तर्क:

याचिकाकर्ता 1995 के वक्फ अधिनियम को 'संवैधानिक असमानता' का प्रतीक बताते हुए कह रहे हैं कि यह अन्य धर्मों के अनुयायियों को समान अधिकार नहीं देता, और मुस्लिम समुदाय को 'विशेष' लाभ देता है। वे इसे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के विरुद्ध मानते हैं।

हालांकि यह तर्क उस वास्तविकता को नज़रअंदाज़ करता है कि भारत में अन्य धार्मिक समुदायों के लिए भी विशेष प्रावधान मौजूद हैं — जैसे श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर ट्रस्ट, श्री जगन्नाथ मंदिर एक्ट, सिख गुरुद्वारा अधिनियम आदि।


🏛️ केंद्र सरकार की स्थिति और अदालती रुख:

केंद्र सरकार की ओर से पेश हुईं एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट ने 1995 अधिनियम पर सुनवाई की अनुमति नहीं दी है, लेकिन अगर उपाध्याय की याचिका को हरीशंकर जैन की याचिका से जोड़ा जाता है, तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि वे मामले की संवेदनशीलता और कानूनी जटिलता को देखते हुए सभी पक्षों को उचित रूप से सुना जाएगा, और कोई भी त्वरित निर्णय नहीं लिया जाएगा।



📚 निष्कर्ष: मुस्लिम समाज की ऐतिहासिक संपत्ति की रक्षा बनाम विधायी पुनरावलोकन

वक्फ अधिनियम केवल एक कानून नहीं, बल्कि भारत के विविधतापूर्ण सामाजिक-धार्मिक ताने-बाने की अभिव्यक्ति है। यदि किसी सुधार या पुनरावलोकन की आवश्यकता हो, तो वह समावेशी संवाद और परामर्श के ज़रिए होना चाहिए — न कि एकतरफा न्यायिक हमलों के माध्यम से।

आज जब देश धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों को लेकर अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है, ऐसे में वक्फ अधिनियम जैसे कानूनों की समीक्षा किसी धार्मिक दुर्भावना के बजाय संवैधानिक विमर्श के स्तर पर होनी चाहिए।



लेखक का दृष्टिकोण:
मुस्लिम समुदाय के पास जो भी वक्फ संपत्तियाँ हैं, वे न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं बल्कि वे इतिहास, विरासत और पहचान से भी जुड़ी हुई हैं। इन्हें कानूनी और संस्थागत रूप से सुरक्षित करना भारतीय लोकतंत्र का नैतिक और संवैधानिक दायित्व है।

ये भी पढ़े 

2 -प्रीमियम डोमेन सेल -लिस्टिंग



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

ADS3

ADS4