न्यूयॉर्क/वॉशिंगटन, 24 मई 2025 —
22 मई 2025 को ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय की F-1 और J-1 वीज़ा कार्यक्रमों के तहत अंतरराष्ट्रीय छात्रों को दाखिला देने की अनुमति अचानक रद्द कर दी थी। इस कदम ने विश्वविद्यालय प्रशासन, छात्रों और शैक्षणिक समुदाय में हलचल मचा दी। इसे लेकर हार्वर्ड ने 23 मई को एक तीखा और लंबा (72-पृष्ठीय) मुकदमा दायर किया, जिसमें इसे "बदले की भावना से की गई कार्रवाई" और "शैक्षणिक स्वतंत्रता पर हमला" करार दिया गया। 24 घंटे के भीतर, एक अमेरिकी संघीय न्यायालय ने हार्वर्ड को अस्थायी राहत प्रदान करते हुए ट्रंप प्रशासन के इस फैसले पर रोक लगा दी।
क्या है पूरा मामला?
ट्रंप प्रशासन द्वारा SEVP (Student and Exchange Visitor Program) प्रमाणन रद्द किए जाने के बाद हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने अदालत में यह कहते हुए चुनौती दी कि यह निर्णय न केवल प्रक्रियागत रूप से अवैध है, बल्कि यह विश्वविद्यालय को एक खास राजनीतिक विचारधारा को अपनाने के लिए मजबूर करने की साजिश है।
हार्वर्ड का दावा है कि प्रशासन द्वारा विदेशी छात्रों से जुड़ी जो जानकारी मांगी गई थी — जैसे छात्रों की अनुशासनिक रिपोर्ट, विरोध प्रदर्शन में भागीदारी और "शैक्षिक माहौल में बाधा" जैसी अस्पष्ट परिभाषाएं — वे किसी भी वैध प्रशासनिक प्रक्रिया के दायरे से बाहर थीं। जब विश्वविद्यालय ने वैधानिक रूप से उपलब्ध डेटा उपलब्ध कराया, तब भी DHS (Department of Homeland Security) ने जवाब को "अपर्याप्त" बताते हुए प्रमाणन तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया।
न्यायालय की तीव्र प्रतिक्रिया
अमेरिकी जिला न्यायाधीश एलिसन डी. बरो ने हार्वर्ड की आपातकालीन याचिका पर सुनवाई करते हुए यह कहा:
“यदि अदालत हस्तक्षेप नहीं करती, तो विश्वविद्यालय और उसके हज़ारों अंतरराष्ट्रीय छात्रों को तुरंत और अपूरणीय क्षति हो सकती है।”
उन्होंने साफ़ तौर पर उल्लेख किया कि हार्वर्ड द्वारा पेश किए गए प्रमाण इस बात की पुष्टि करते हैं कि प्रशासन की कार्रवाई राजनीति से प्रेरित और असंवैधानिक प्रतीत होती है।
आरोप: शैक्षणिक संस्थानों पर वैचारिक हमला
हार्वर्ड ने अपने मुकदमे में विस्तार से बताया है कि यह सिर्फ वीज़ा कार्यक्रम की कार्रवाई नहीं थी, बल्कि फरवरी 2025 से ही ट्रंप प्रशासन की ओर से “वैचारिक नियंत्रण” की एक संगठित मुहिम चलाई जा रही थी।
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अप्रैल 11: एक “डिमांड लेटर” के माध्यम से हार्वर्ड को धमकी दी गई कि अगर उसने अपनी एडमिशन नीति, फैकल्टी हायरिंग, और छात्र अनुशासन प्रणाली में प्रशासन की विचारधारा के अनुसार बदलाव नहीं किए, तो उसे अरबों डॉलर की फंडिंग से वंचित कर दिया जाएगा।
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अप्रैल 16: DHS ने विश्वविद्यालय को 10 कार्यदिवस में 13 स्कूलों के सभी अंतरराष्ट्रीय छात्रों से जुड़ी विस्तृत जानकारी देने का आदेश दिया।
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अप्रैल 25: जब हार्वर्ड ने केवल वैधानिक रूप से उपलब्ध जानकारी सौंपी, तो DHS ने बिना उचित कारण बताए जवाब को अस्वीकार कर दिया।
ट्रंप की व्यक्तिगत आलोचना
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने Truth Social पर बयान देते हुए कहा:
“हार्वर्ड अमेरिका के लिए शर्म की बात है... इसकी कर-मुक्त (nonprofit) स्थिति खत्म कर देनी चाहिए।”
इस बयान के अगले ही दिन प्रशासन ने वीज़ा प्रमाणन रद्द कर दिया।
कानूनी आधार: तीन प्रमुख स्तंभ
हार्वर्ड ने अपनी याचिका में तीन मुख्य संवैधानिक और कानूनी आधारों पर प्रशासन की कार्रवाई को चुनौती दी है:
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प्रथम संशोधन (First Amendment):
विश्वविद्यालय ने तर्क दिया कि यह कार्रवाई "विचार अभिव्यक्ति के अधिकारों पर सीधा हमला" है। NRA बनाम वुलो (NRA v. Vullo) जैसे मामलों के हवाले से कहा गया कि कोई भी सरकार असहमति की आवाज को दबाने के लिए अपनी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं कर सकती। -
प्रशासनिक प्रक्रिया अधिनियम (Administrative Procedure Act):
हार्वर्ड ने आरोप लगाया कि DHS ने बिना किसी पूर्व सूचना के SEVP प्रमाणन रद्द कर दिया, जबकि नियमानुसार इसे "Notice of Intent to Withdraw" जारी कर 30 दिन की प्रतिक्रिया अवधि देनी चाहिए थी। -
प्रक्रियात्मक न्याय (Procedural Due Process):
विश्वविद्यालय को न तो उचित सूचना दी गई, न ही कोई जवाब देने का अवसर। 70 वर्षों से SEVP प्रमाणन प्राप्त होने के बावजूद इस बार बिना किसी पूर्व चेतावनी के यह कदम उठाया गया।
विदेशी छात्रों पर संकट और व्यापक असर
हार्वर्ड ने स्पष्ट किया कि उसके कुल छात्रों का लगभग 25% हिस्सा अंतरराष्ट्रीय छात्रों का है। यह निर्णय न केवल उन्हें अकादमिक तौर पर संकट में डालता, बल्कि:
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सीधी डिपोर्टेशन की आशंका
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डिग्री अधूरी रह जाने का खतरा
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वैश्विक प्रतिष्ठा को नुकसान
जैसे गंभीर नतीजे ला सकता था।
कौन लड़ रहे हैं हार्वर्ड की कानूनी लड़ाई?
इस महत्वपूर्ण मुकदमे में हार्वर्ड की तरफ़ से चार प्रमुख लॉ फर्मों की एक विशेषज्ञ टीम ने मोर्चा संभाला है:
Jenner & Block LLP
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ईशान भाभा, इयान हيث गेर्शेंगॉर्न, लॉरेन जे. हार्ट्ज (वॉशिंगटन डीसी)
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एंड्रियाना कास्टानेक (शिकागो)
Quinn Emanuel Urquhart & Sullivan LLP
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विलियम ए. बर्क
King & Spalding LLP
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रॉबर्ट के. हूर
Lehotsky Keller Cohn LLP
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स्टीवन पी. लेहोटस्की, स्कॉट ए. केलर, सेरेना एम. ऑर्लॉफ
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कैथरीन सी. यार्जर (डेनवर), जोशुआ पी. मोरो (ऑस्टिन), डेनिएल के. गोल्डस्टीन (अटलांटा)
निष्कर्ष: केवल एक विश्वविद्यालय की लड़ाई नहीं
यह मामला केवल हार्वर्ड बनाम ट्रंप प्रशासन नहीं है, बल्कि यह अमेरिका की उच्च शिक्षा प्रणाली, वैचारिक स्वतंत्रता, और अंतरराष्ट्रीय अकादमिक समुदाय की पहचान के लिए एक निर्णायक लड़ाई बन चुका है।
संघीय न्यायालय द्वारा दी गई यह अस्थायी राहत विश्वविद्यालय के लिए एक बड़ी जीत है, लेकिन युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ। आने वाले दिनों में यह मामला अमेरिकी संविधान के मूलभूत अधिकारों और ट्रंप प्रशासन की नीतियों की संवैधानिकता की परीक्षा बनकर उभरेगा।