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अमेरिका में शशि थरूर से बेटे ने किया सीधा सवाल, पाकिस्तान की भूमिका पर उठे गंभीर प्रश्न

वॉशिंगटन डीसी / नई दिल्ली

अमेरिका दौरे पर गए वरिष्ठ कांग्रेस नेता और सांसद डॉ. शशि थरूर अचानक एक असामान्य स्थिति में आ गए जब उनके बेटे और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जाने-माने पत्रकार ईशान थरूर ने सार्वजनिक रूप से उनसे यह सवाल पूछ लिया कि क्या भारत के पास 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले में पाकिस्तान की संलिप्तता के ठोस प्रमाण हैं।

यह सवाल उस समय आया जब शशि थरूर एक ऑल पार्टी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे थे और वैश्विक मंचों पर भारत की आतंकवाद विरोधी नीति को मजबूती से प्रस्तुत कर रहे थे।


ईशान थरूर ने पूछा कि क्या अमेरिका या किसी अन्य देश ने इस प्रतिनिधिमंडल से पाकिस्तान की भूमिका पर कोई प्रमाण मांगा है, विशेषकर तब जब पाकिस्तान बार-बार हमले में शामिल होने से इनकार कर रहा है।

डॉ. शशि थरूर ने इस पर कहा कि भारत ने जवाबी कार्रवाई केवल पुख़्ता सबूतों के आधार पर की है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि विश्व समुदाय में इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं था, इसलिए किसी देश ने उनसे किसी तरह के प्रमाण की मांग नहीं की।


शशि थरूर ने प्रस्तुत किए पाकिस्तान की संलिप्तता के तीन ठोस आधार

अपने जवाब में थरूर ने पाकिस्तान की भूमिका को स्पष्ट करते हुए तीन मजबूत तर्क दिए, जो इस बात को स्थापित करते हैं कि पहलगाम आतंकी हमला सिर्फ एक पृथक घटना नहीं थी, बल्कि एक योजनाबद्ध और संरक्षित नेटवर्क का हिस्सा था, जिसकी जड़ें पाकिस्तान में मौजूद हैं।

पहला आधार: आतंकवाद का 37 वर्षों का निरंतर पैटर्न और पाकिस्तान की इनकार की नीति

शशि थरूर ने कहा कि पाकिस्तान का आतंकवाद से जुड़ा इतिहास चार दशकों से अधिक पुराना है, और उसकी रणनीति हमेशा यही रही है – पहले हमले कराना और फिर जिम्मेदारी से इनकार कर देना।

उन्होंने 2008 के मुंबई हमलों का उदाहरण दिया, जहां पकड़े गए आतंकी अजमल कसाब ने स्पष्ट रूप से पाकिस्तान में प्रशिक्षण पाने और पाकिस्तान से ही निर्देश मिलने की बात स्वीकारी थी।

थरूर ने यह भी याद दिलाया कि अमेरिका खुद इस बात से अचंभित था कि ओसामा बिन लादेन जैसे वैश्विक आतंकी को पाकिस्तान की सैन्य छावनी के पास वर्षों तक छुपा कर रखा गया और जब वह पकड़ा गया, तब तक पाकिस्तान बार-बार उसकी मौजूदगी से इनकार करता रहा।

दूसरा आधार: आतंकी संगठन TRF की त्वरित जिम्मेदारी

शशि थरूर ने बताया कि पहलगाम हमले की जिम्मेदारी द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने महज 45 मिनट के भीतर ले ली थी। यह संगठन लश्कर-ए-तैयबा का एक छद्म चेहरा माना जाता है और यह पाकिस्तान के मुरिदके शहर में खुलेआम काम करता है।

भारत ने TRF को प्रतिबंधित कराने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 प्रतिबंध समिति के समक्ष 2023 और 2024 में प्रमाण प्रस्तुत किए। हालांकि पाकिस्तान स्वयं उस समिति का सदस्य है, इसलिए TRF को सूचीबद्ध नहीं किया जा सका, परंतु उसकी पहचान वैश्विक मंच पर अब स्पष्ट हो चुकी है।

थरूर ने कहा कि जब TRF ने दावा किया, तब तक दुनिया को हमले की पूरी जानकारी तक नहीं थी। 24 घंटे बाद उन्होंने फिर से दावा दोहराया, लेकिन बाद में उसे वेबसाइट से हटा दिया गया। यह व्यवहार खुद में एक महत्वपूर्ण प्रमाण है।

तीसरा आधार: पाकिस्तान में आतंकियों के जनाज़े और अधिकारियों की उपस्थिति

थरूर ने तीसरे आधार में उस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया कि भारत की जवाबी कार्रवाई – ऑपरेशन सिंदूर – के बाद जिन आतंकियों के शिविर तबाह किए गए, उनके जनाज़े पाकिस्तान में आयोजित किए गए। इन जनाज़ों में न केवल परिजन बल्कि पाकिस्तानी सेना और पुलिस के अधिकारी भी उपस्थित थे। सोशल मीडिया पर इन जनाज़ों की तस्वीरें और वीडियो सामने आए, जिसमें वर्दीधारी अधिकारी शामिल दिखाई दिए।

यह दर्शाता है कि पाकिस्तान की राज्य मशीनरी न केवल आतंकवाद को शरण देती है, बल्कि उसके साथ खड़ी भी दिखाई देती है। यह स्थिति केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि वैश्विक सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती है।


भारत की निर्णायक प्रतिक्रिया: ऑपरेशन सिंदूर

22 अप्रैल के हमले के बाद भारत ने 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर के तहत आतंकियों के नौ ठिकानों को निशाना बनाते हुए पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और पाकिस्तान की सीमा के भीतर गहन और सटीक हवाई हमले किए। यह कार्रवाई न केवल हमले का प्रतिशोध थी, बल्कि भारत की नई आतंकवाद विरोधी नीति का भी स्पष्ट संकेत थी – अब भारत केवल सहन नहीं करेगा, बल्कि निर्णायक कार्रवाई करेगा।


राजनीतिक विमर्श से परे उठते प्रश्न

शशि थरूर और उनके बेटे के बीच हुआ यह संवाद सिर्फ एक पारिवारिक चर्चा नहीं था। यह उस राजनीतिक पारदर्शिता और कूटनीतिक जवाबदेही का प्रतीक बन गया है, जिसकी अपेक्षा अब जनता और नई पीढ़ी भारत के नेताओं से करती है।

यह घटना यह भी दर्शाती है कि भारत की आतंकवाद विरोधी नीति केवल भाषणों तक सीमित नहीं है, बल्कि अब वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ठोस प्रमाणों और निर्णायक कार्यवाहियों के आधार पर आकार ले रही है।


निष्कर्ष

पहलगाम आतंकी हमला एक और त्रासदी से कहीं अधिक था। यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर सीधी चुनौती थी। शशि थरूर के वक्तव्य न केवल पाकिस्तान की भूमिका को बेनकाब करते हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि भारत अब अपने विरोधियों के प्रति स्पष्ट नीति और मजबूत कूटनीति के साथ आगे बढ़ रहा है।

वर्तमान संदर्भ में, यह सवाल अब और ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया है – क्या वैश्विक समुदाय अब भी पाकिस्तान के आतंकवाद से संबंधों को नज़रअंदाज़ कर सकता है? या फिर वह समय आ चुका है जब सख़्त कदम उठाए जाएँ?

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