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Eid-ul -Adha-2025: त्याग, आस्था और क़ुर्बानी का इस्लामी त्योहार — एक विस्तृत और पेशेवर विवरण


✍️ Z.S.RAZZAQI | दिनांक: जून 2025


🌙 प्रस्तावना: ईद-उल-अजहा का सार

ईद-उल-अजहा, जिसे "क़ुर्बानी की ईद" भी कहा जाता है, इस्लाम धर्म के दो प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पैग़म्बर इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की अल्लाह के प्रति अटूट आस्था और उनकी आज्ञा के समर्पण की स्मृति में मनाया जाता है। साथ ही यह त्योहार हज की समाप्ति का भी प्रतीक है — जो इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक है।



📅 ईद-उल-अजहा 2025 की तारीखें

2025 में सऊदी अरब में ज़ुल-हिज्जा का चाँद 27 मई को देखा गया था, जिसके अनुसार वहाँ 6 जून को ईद-उल-अजहा मनाई जाएगी।
भारत में यह पर्व 7 या 8 जून को मनाए जाने की संभावना है, जो स्थानीय चाँद दिखने पर निर्भर करेगा।


🕋 पैग़म्बर इब्राहीम (अ.स.) की क़ुर्बानी की कहानी

इस्लामी मान्यता के अनुसार, पैग़म्बर इब्राहीम (अ.स.) को एक रात सपना आया कि उन्हें अपने प्यारे बेटे इस्माईल (अ.स.) को अल्लाह की राह में क़ुर्बान करना है। पहले उन्होंने इसे शैतान का धोखा समझा, लेकिन सपना दोहराया गया और तब उन्हें यकीन हुआ कि यह अल्लाह का आदेश है।

पैग़म्बर इब्राहीम (अ.स.) ने बेटे को बताया और इस्माईल (अ.स.) ने बिना हिचक आज्ञा का पालन स्वीकार किया। जब इब्राहीम (अ.स.) ने बेटे की आंखें ढंककर क़ुर्बानी देनी चाही, तो अल्लाह ने उनकी नीयत को कबूल किया और एक मेढ़ा भेजा जिसे क़ुर्बान किया गया। इस तरह इस्माईल (अ.स.) सुरक्षित रहे।

"ला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह" — “अल्लाह के सिवा कोई ताक़त और शक्ति नहीं।”


🕌 अराफा का दिन: ईद से पहले की रूहानी रात

अराफा का दिन, जो कि ज़ुल-हिज्जा की 9वीं तारीख को होता है, इस्लामी कैलेंडर का सबसे पवित्र दिन माना जाता है। हज करने वाले मुसलमान इस दिन माउंट अराफात पर इबादत और तौबा करते हैं।
ग़ैर-हाजी मुसलमान इस दिन रोज़ा रखकर साल भर के गुनाहों की माफ़ी की उम्मीद करते हैं।

क़ुरआन की सूरह अल-माइदा में अल्लाह फ़रमाते हैं:

"आज मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मुकम्मल कर दिया, और अपनी नेमत तुम पर पूरी कर दी और इस्लाम को तुम्हारे लिए धर्म के रूप में पसंद किया।"
(सूरह अल-माइदा, 5:3)


🐐 क़ुर्बानी का रिवाज और उसका महत्व

ईद-उल-अजहा पर क़ुर्बानी का कार्य पैग़म्बर इब्राहीम (अ.स.) की परंपरा का जीवंत अनुसरण है।
इस दिन, सामर्थ्य रखने वाले मुसलमान हलाल जानवर (बकरा, भैंस, ऊँट, या भेड़) की क़ुर्बानी करते हैं और उसका मांस तीन हिस्सों में बांटते हैं — एक अपने लिए, दूसरा रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए, और तीसरा ग़रीबों व ज़रूरतमंदों के लिए।

यह परंपरा न केवल समर्पण की भावना का प्रतीक है बल्कि सामाजिक समानता और भाईचारे को भी मज़बूत करती है।


🤲 रूहानी अभ्यास और ईद की सुन्नतें

  • अराफा का रोज़ा: हाजी को छोड़कर बाक़ी सब के लिए मुस्तहब है।

  • ईद की नमाज़: विशेष जमाअत की नमाज़ सुबह अदा की जाती है।

  • तक़बीर: ईद से पहले और बाद में "अल्लाहु अकबर" की तक़बीरें पढ़ी जाती हैं।

  • सदक़ा: क़ुर्बानी के साथ साथ ज़कात और सदक़ा की भावना भी प्रबल होती है।

  • सज्ज धज्ज और मेल मिलाप: नए कपड़े, मिठाइयाँ, और रिश्तेदारों व पड़ोसियों से मिलना एक आम परंपरा है।


🌍 विश्व भर में विविधता के साथ एकता

ईद-उल-अजहा विश्वभर में विभिन्न सांस्कृतिक रूपों में मनाया जाता है, लेकिन उसकी मूल आत्मा — आस्था, समर्पण और मानवता — सभी में एक जैसी होती है।
चाहे वह इंडोनेशिया हो या भारत, मिस्र हो या नाइजीरिया — मुसलमान इस दिन को उल्लास, क़ुर्बानी और इंसानियत के साथ मनाते हैं।


📖 निष्कर्ष: ईद-उल-अजहा का वास्तविक सन्देश

ईद-उल-अजहा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह त्याग, भरोसे और इंसानियत का पैग़ाम है।
यह हमें सिखाता है कि जब अल्लाह के हुक्म पर अमल किया जाता है, तो रास्ते कठिन होने पर भी अंततः रहमत मिलती है।

👉 इस पर्व पर, आइए हम अपनी आत्मा को ताज़ा करें, ग़रीबों की मदद करें और अपने रिश्तों में मोहब्बत और हमदर्दी को मज़बूत करें।

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