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वक़्फ़ संशोधन क़ानून के विरोध में काली पट्टी बांधने पर कार्रवाई: मुज़फ़्फ़रनगर व लखनऊ में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को प्रशासनिक नोटिस

उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर और लखनऊ में वक़्फ़ संशोधन क़ानून के विरोध में शांतिपूर्ण तरीक़े से काली पट्टी बांधने वाले लोगों को जिला प्रशासन की ओर से कड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ रहा है। प्रशासन ने ऐसे प्रदर्शनकारियों को नोटिस भेजकर 16 अप्रैल 2025 को सिटी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश होने का आदेश दिया है और दो-दो लाख रुपये के व्यक्तिगत मुचलके तथा समान राशि के दो ज़मानती प्रस्तुत करने की शर्त भी रखी गई है।


विरोध की पृष्ठभूमि और रूप

वक़्फ़ संशोधन विधेयक के विरोध में बीते सप्ताह से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की अपील पर देश के कई हिस्सों में मुस्लिम समुदाय द्वारा शांतिपूर्ण तरीके से विरोध जताया गया। इसके अंतर्गत लोगों ने मस्जिदों और मदरसों में जुमे और ईद की नमाज़ के दौरान काली पट्टी बांधकर इस क़ानून के प्रति असहमति व्यक्त की।

मुज़फ़्फ़रनगर में रमज़ान के अंतिम जुमे और ईद की नमाज़ के दौरान सैकड़ों नमाज़ियों ने काली पट्टियाँ बांधकर विरोध किया। इसी को लेकर अब स्थानीय प्रशासन ने इसे सार्वजनिक शांति भंग करने की आशंका बताते हुए कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है।

प्रशासनिक नोटिस और प्रतिक्रिया

सिटी मजिस्ट्रेट विकास कश्यप द्वारा जारी नोटिस में कहा गया है कि यह विरोध प्रदर्शन कानून व्यवस्था के लिए खतरा बन सकता था। इसी आधार पर संबंधित व्यक्तियों को आगामी 16 अप्रैल को उपस्थित होकर मुचलका भरने का निर्देश दिया गया है।

शहर के निवासी फ़ख़रुद्दीन ने बीबीसी से कहा,

"हमने कोई नारा नहीं लगाया, कोई बैनर नहीं उठाया। सिर्फ मस्जिद के भीतर काली पट्टी बांधकर शांतिपूर्ण विरोध किया। यह हमारे लोकतांत्रिक अधिकार का हिस्सा है। लेकिन प्रशासन इसे अपराध की तरह देख रहा है।"

इसी प्रकार मदरसा महमूदिया के प्रधानाचार्य नईम त्यागी ने बताया कि उन्हें पुलिस ने नोटिस सौंपा जबकि उन्होंने न तो पट्टी बांधी थी और न ही ऐसा किसी को करते देखा था। उनका कहना है कि मस्जिद में हजारों लोग नमाज़ पढ़ते हैं, हर व्यक्ति पर निगरानी रख पाना संभव नहीं।

लखनऊ में समाजवादी पार्टी की नेता पर कार्रवाई

इस बीच, लखनऊ में समाजवादी पार्टी की नेत्री सुमैया राना को 10 लाख रुपये का बॉन्ड भरने का नोटिस भेजा गया है। उन्होंने दावा किया कि उन्हें उनके घर में नजरबंद भी किया गया। सुमैया राना पूर्व में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध में भी सक्रिय रही हैं और मशहूर शायर मुनव्वर राना की बेटी हैं।

उनका कहना है,

"मुझे सिर्फ मुनव्वर राना की बेटी होने की सज़ा दी जा रही है। यह जनतंत्र नहीं, बादशाही रवैया है। मैं इस नोटिस को अदालत में चुनौती दूंगी।"

पुलिस की स्थिति और तर्क

सहारनपुर मंडल के डीआईजी अजय साहनी ने मीडिया को बताया कि सोशल मीडिया पर क़ानून के ख़िलाफ़ कथित तौर पर भड़काऊ बातें फैलाने और धार्मिक स्थलों पर विरोध प्रदर्शनों के चलते ये नोटिस जारी किए गए हैं। वहीं, मुज़फ़्फ़रनगर के एसपी सिटी सत्यनारायण प्रजापति के अनुसार सीसीटीवी फुटेज और अन्य डिजिटल साक्ष्यों के आधार पर करीब 300 लोगों की पहचान कर नोटिस भेजे गए हैं।

प्रशासन का कहना है कि प्रदर्शनकारियों की गतिविधियाँ कानून व्यवस्था के लिए खतरा उत्पन्न कर सकती थीं, और इसी आशंका के तहत यह क़दम उठाया गया।


वक़्फ़ संशोधन क़ानून: विवाद और संवैधानिक प्रश्न

2025 में पारित वक़्फ़ संशोधन क़ानून ने व्यापक विवाद को जन्म दिया है। इस क़ानून में वक़्फ़ बोर्ड और सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल की संरचना में बदलाव करते हुए ग़ैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने, वक़्फ़ संपत्तियों के सर्वेक्षण का अधिकार कलेक्टर को सौंपने और धार्मिक उपयोग में रही संपत्तियों को वक़्फ़ की मान्यता से बाहर करने जैसे महत्वपूर्ण परिवर्तन शामिल हैं।

सरकार का तर्क है कि यह बदलाव पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु किए गए हैं, जबकि विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों का कहना है कि यह क़ानून संविधान के अनुच्छेद 14, 25(डी), 26 और 300 (ए) का उल्लंघन करता है और अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार है।

एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने इस क़ानून के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाख़िल की है। वकील अनस तनवीर के मुताबिक़,

"सरकार को वक़्फ़ संपत्तियों में हस्तक्षेप का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं होना चाहिए। यह समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा विषय है।"


निष्कर्ष: लोकतंत्र बनाम प्रशासनिक कठोरता

वर्तमान घटनाक्रम यह सवाल उठाता है कि क्या शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन भी अब प्रशासनिक दंड का कारण बन रहा है? क्या लोकतांत्रिक अधिकारों की अभिव्यक्ति को ‘शांति भंग’ की आशंका बताकर दबाया जा सकता है?

एक ओर सरकार पारदर्शिता और सुधार की बात कर रही है, दूसरी ओर धार्मिक अल्पसंख्यकों में भय और असुरक्षा की भावना गहराती जा रही है। न्यायपालिका से अब यह उम्मीद की जा रही है कि वह इस टकराव में संवैधानिक संतुलन बनाए और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करे।


यह रिपोर्ट संवेदनशील सामाजिक-राजनीतिक घटनाक्रमों पर आधारित है और इसका उद्देश्य तथ्यात्मक जानकारी प्रस्तुत करना है। सभी पक्षों की बातों को शामिल करने का प्रयास किया गया है।

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