नई दिल्ली | 2 अप्रैल 2025 – संसद के बजट सत्र के दौरान केंद्र सरकार द्वारा वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 को दोबारा पेश करने के साथ ही देशभर में इस पर तीखी बहस छिड़ गई है। लोकसभा में इस विधेयक को अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने प्रस्तुत किया, जिसके बाद विपक्षी दलों और अल्पसंख्यक समुदायों ने इस पर कड़ा विरोध जताया।
सरकार का कहना है कि यह विधेयक "वक्फ संपत्तियों के प्रशासन और प्रबंधन को पारदर्शी एवं प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक है।" हालांकि, विपक्ष का आरोप है कि यह कानून "सरकारी नियंत्रण स्थापित करने और मुस्लिम समुदाय के धार्मिक एवं आर्थिक अधिकारों को कमजोर करने की एक सोची-समझी साजिश" है।
विधेयक पर आपत्ति: मुस्लिम समुदाय और विपक्ष की चिंताएँ
इस विधेयक के कुछ प्रावधानों ने विशेष रूप से अल्पसंख्यक समुदायों की चिंता बढ़ा दी है। आलोचकों का कहना है कि सरकार इस विधेयक के माध्यम से वक्फ संपत्तियों पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है।
मुख्य विवादित प्रावधान:
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गैर-मुसलमानों की नियुक्ति – इस विधेयक के तहत गैर-मुसलमानों को राज्य वक्फ बोर्ड के प्रमुख पदों पर नियुक्त करने की अनुमति दी गई है। मुस्लिम संगठनों का कहना है कि जब "हिंदू मंदिरों, मठों या धार्मिक संस्थानों में गैर-हिंदुओं को नियुक्त नहीं किया जाता, तो वक्फ संपत्तियों पर गैर-मुसलमानों की नियुक्ति क्यों?"
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वक्फ संपत्तियों का सरकारी नियंत्रण – नए प्रावधानों के अनुसार, ज़िला कलेक्टर को यह अधिकार दिया गया है कि वह यह निर्धारित कर सके कि कोई संपत्ति वक्फ की है या सरकारी।
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"वक्फ बाय यूजर" की समाप्ति – अब तक, किसी भी संपत्ति को वक्फ माने जाने के लिए "वक्फ बाय यूजर" का सिद्धांत लागू होता था, लेकिन इस विधेयक में इसे हटा दिया गया है।
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केंद्रीय डेटाबेस में संपत्तियों का अनिवार्य पंजीकरण – विधेयक के अनुसार, हर वक्फ संपत्ति को छह महीने के भीतर केंद्र सरकार के डेटाबेस में पंजीकृत करना अनिवार्य होगा।
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वक्फ ट्रिब्यूनल के अधिकार सीमित – मौजूदा कानून में, वक्फ ट्रिब्यूनल का फैसला अंतिम माना जाता था, लेकिन नए संशोधन के तहत अब इसके फैसलों को उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकेगी।
मुस्लिम समुदाय का विरोध:
मुस्लिम संगठनों और धार्मिक नेताओं का कहना है कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों को धीरे-धीरे सरकारी नियंत्रण में लेने का प्रयास है। "सरकार पहले से ही बौद्ध विहारों को बौद्धों को वापस नहीं दे रही है, और अब वह वक्फ संपत्तियों को भी हड़पने की कोशिश कर रही है।"
संसद के भीतर और बाहर बढ़ता विरोध, बड़े आंदोलन की चेतावनी
संसद में विरोध:
लोकसभा में विधेयक पर चर्चा के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने कहा,
"हमारी समितियाँ मस्तिष्क का उपयोग करती हैं, कांग्रेस के समय की तरह सिर्फ अनुमोदन की मुहर नहीं लगातीं।"
इस पर आरएसपी के सांसद एन. के. प्रेमचंद्रन ने जवाब दिया कि "संयुक्त संसदीय समिति को विधेयक में बदलाव करने का अधिकार नहीं है, लेकिन इस मामले में ऐसा किया गया है।" लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने स्पष्ट किया कि संसद की संयुक्त समितियाँ अतीत में भी विधेयकों में संशोधन कर चुकी हैं।
संसद के बाहर व्यापक असंतोष:
संसद के बाहर विरोध और भी तेज़ होता जा रहा है। मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ मूलनिवासी, अम्बेडकरवादी, दलित, सिख, ईसाई और बौद्ध समुदाय भी इस विरोध में शामिल हो गए हैं। उनका कहना है कि "आज यह विधेयक मुस्लिमों के खिलाफ है, कल इसी तरह के कानून अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ लाए जा सकते हैं।"
संभावित देशव्यापी आंदोलन:
विपक्षी दलों और कई अल्पसंख्यक संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार इस विधेयक को वापस नहीं लेती तो देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन किया जाएगा।
क्या कहती है संख्याएँ?
लोकसभा में विधेयक पारित कराने के लिए 272 मतों की आवश्यकता होती है, जबकि भाजपा के पास 240 सांसदों का समर्थन है। इसके अतिरिक्त,
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टीडीपी (16 सांसद) और जद(यू) (12 सांसद) ने विधेयक को लेकर चिंता जताई है लेकिन समर्थन करने की संभावना है।
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एनडीए के पास कुल 293 सांसदों का समर्थन है, जबकि विपक्ष के पास 241 सांसद हैं, जिनमें कांग्रेस (99), समाजवादी पार्टी (37), तृणमूल कांग्रेस (28), डीएमके (22), शिवसेना (यूबीटी) (9), एनसीपी-एसपी (8), वामदल (4), आरजेडी (4), आम आदमी पार्टी (3), झामुमो (3) और अन्य दल शामिल हैं।
राज्यसभा में विधेयक के लिए कठिनाइयाँ?
भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि "यह विधेयक राज्यसभा में पेश होने पर इसका पुरजोर विरोध किया जाएगा।" पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के टी रामा राव ने कहा कि उनके दल को लोकसभा में प्रतिनिधित्व नहीं मिला, लेकिन "राज्यसभा में हम अपनी आपत्तियाँ मजबूती से उठाएँगे।"
निष्कर्ष:-
वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 को लेकर देशभर में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। संसद में इसके विरोध के बाद अब सड़कों पर भी इसका असर दिखने लगा है। मुस्लिम समुदाय इसे वक्फ संपत्तियों पर सरकार का नियंत्रण स्थापित करने की साजिश बता रहा है, जबकि अन्य अल्पसंख्यक समूह इसे एक "चेतावनी संकेत" के रूप में देख रहे हैं।
आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर देशव्यापी आंदोलन और बड़े विरोध-प्रदर्शन होने की संभावना है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस विधेयक पर आगे क्या रुख अपनाती है और क्या विपक्ष और अल्पसंख्यक समुदायों की माँगों को सुनने के लिए तैयार होती है या नहीं।
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