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राजीव ध्यानि: निर्भीक लेखनी के प्रखर हस्ताक्षर

विचारों की स्वतंत्रता और सच्चाई की अभिव्यक्ति हर समाज के लिए अनिवार्य तत्व हैं, लेकिन इन तत्वों की रक्षा करना हर लेखक के लिए आसान नहीं होता। सत्य को निर्भीकता से लिखना और बिना किसी भय या पूर्वग्रह के समाज को आईना दिखाना केवल वही कर सकते हैं, जिनमें निडरता, तर्कशीलता और निष्पक्ष दृष्टिकोण हो। ऐसे ही एक सशक्त विचारक और निर्भीक लेखक हैं राजीव ध्यानि, जिनकी कलम सिर्फ स्याही नहीं, बल्कि समाज के अंधकार को चीरने वाला प्रकाश है। उनकी लेखनी में एक स्पष्ट संदेश होता है—सत्य का पक्ष लो, भले ही वह अप्रिय लगे।


राजीव ध्यानि की लेखनी: सच्चाई का निर्भीक दस्तावेज़

समाज में व्याप्त अंधभक्ति, कट्टरता, मूर्खतापूर्ण रूढ़िवादिता और विवेकहीनता पर प्रहार करना आसान नहीं होता। अक्सर लेखक या तो लोकप्रियता की चाह में सच बोलने से बचते हैं, या फिर सत्ता और जनभावनाओं के दबाव में अपनी कलम को सीमित कर लेते हैं। लेकिन राजीव ध्यानि जी का लेखन इस प्रवृत्ति का अपवाद है। वे बिना किसी दबाव या पूर्वाग्रह के, पूरी बेबाकी और तार्किकता के साथ, अपने विचार रखते हैं।

उनका हालिया लेख "अंधभक्त की पहचान" इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस लेख में उन्होंने अंधभक्ति के मानसिक, सामाजिक और नैतिक प्रभावों पर गहरी चर्चा की है। वे बताते हैं कि अंधभक्त केवल अपनी ही दुनिया में सीमित रहते हैं, तर्क और सच्चाई से दूर रहते हैं और उनकी मानसिकता इतनी संकीर्ण होती है कि वे अपनी मूर्खता को ही अपना सबसे बड़ा गुण मानने लगते हैं।

वे लिखते हैं—
"अंधभक्त अतृप्त, असीम-अपर फुस्सम वाले निठल्ले, नकारा और नालायक लोग होते हैं। ये ऐसे प्राणी हैं, जिन्हें जिल्लत में ही  लज़्ज़त , यानी अपमान में ही आनंद की अनुभूति होती है।"

यह कथन केवल आलोचना नहीं, बल्कि समाज में व्याप्त एक खतरनाक मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति की सटीक पहचान है।

अंधभक्ति बनाम तार्किकता: ध्यानि जी की सटीक व्याख्या

ध्यानि जी का मानना है कि अंधभक्ति केवल धर्म या राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक मानसिकता है, जो हर क्षेत्र में हावी हो सकती है। चाहे वह किसी धार्मिक ग्रंथ की गलत व्याख्या हो, किसी राजनीतिक नेता की बिना सवाल उठाए गई भक्ति हो, या फिर किसी विचारधारा की अंधस्वीकृति—हर जगह अंधभक्ति अपने विकृत रूप में समाज को नुकसान पहुंचा रही है।

वे अपने लेख में विस्तार से समझाते हैं कि कैसे—

  1. धार्मिक अंधभक्ति – जब लोग किसी धर्म, ग्रंथ, संत या धार्मिक विचार को बिना तर्क-वितर्क के मानते हैं और उसे सत्य की अंतिम कसौटी मान लेते हैं।
  2. राजनीतिक अंधभक्ति – जब लोग किसी नेता या पार्टी की हर बात को सही मानते हैं, बिना यह देखे कि वह सही भी है या नहीं।
  3. सामाजिक अंधभक्ति – जब लोग बिना सोचे-समझे किसी भी प्रथा, परंपरा या विचार को मान लेते हैं और उस पर सवाल उठाने वालों को दुश्मन मानने लगते हैं।

अंधभक्ति के सामाजिक और राजनीतिक दुष्प्रभाव

राजीव ध्यानि जी यह स्पष्ट करते हैं कि अंधभक्ति केवल व्यक्तिगत मूर्खता तक सीमित नहीं रहती, बल्कि यह पूरे समाज को पतन की ओर ले जाती है। उनके अनुसार, अंधभक्तों की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि वे अपनी असफलताओं को कभी स्वीकार नहीं करते, बल्कि हर विफलता के लिए दूसरों को दोषी ठहराते हैं।

वे लिखते हैं—
"अंधभक्त अपनी मूर्खता को अपनी ताकत समझता है और जब कोई उसे आईना दिखाता है, तो वह उस आईने को ही तोड़ने पर उतारू हो जाता है।"

वे इस मानसिकता के कुछ प्रमुख लक्षणों का उल्लेख करते हैं—

  • सोशल मीडिया पर झूठ फैलाना – अंधभक्त बिना जांच-पड़ताल के किसी भी फेक न्यूज या अफवाह को सच मानकर प्रचारित करते हैं।
  • तर्क का विरोध करना – ये लोग किसी भी तार्किक बहस को पसंद नहीं करते और हर असहमति को ‘देशद्रोह’ या ‘धर्मद्रोह’ का नाम देते हैं।
  • आत्ममुग्धता – इन्हें लगता है कि केवल वे ही सही हैं और बाकी सब मूर्ख या शत्रु हैं।

ध्यानि जी के अनुसार, ऐसी मानसिकता लोकतंत्र और समाज दोनों के लिए खतरनाक है।

राजीव ध्यानि का लेखन: सत्य के प्रति अडिग निष्ठा

लेखन केवल मनोरंजन या सूचनाओं का आदान-प्रदान नहीं होता, बल्कि यह समाज में चेतना और जागरूकता लाने का माध्यम भी है। राजीव ध्यानि जी की लेखनी इसी उद्देश्य से प्रेरित है। वे अपने लेखन के माध्यम से न केवल सत्य का उद्घाटन करते हैं, बल्कि पाठकों को भी आत्मविश्लेषण के लिए प्रेरित करते हैं।

उनका लेखन कुछ महत्वपूर्ण मूल्यों पर केंद्रित रहता है—

  1. निष्पक्षता – वे किसी भी विचारधारा, धर्म, राजनीति या समाज के प्रति पूर्वग्रह नहीं रखते।
  2. तार्किकता – उनकी हर बात ठोस तर्क और तथ्य पर आधारित होती है।
  3. निडरता – वे बिना किसी दबाव या भय के अपनी राय रखते हैं।

समाज में बदलाव के लिए जरूरी आवाज़

आज के दौर में जब अधिकांश लेखक या तो किसी विशेष विचारधारा के प्रवक्ता बन जाते हैं, या फिर जनभावनाओं को खुश करने के लिए लिखते हैं, राजीव ध्यानि जी की लेखनी एक सशक्त और संतुलित आवाज़ बनकर उभरती है। वे न तो किसी को खुश करने के लिए लिखते हैं और न ही किसी से डरकर अपनी कलम रोकते हैं।

वे इस बात को बखूबी समझते हैं कि—

"अगर समाज को बेहतर बनाना है, तो सबसे पहले सच का सामना करना होगा।"

उनका यह दृष्टिकोण न केवल उन्हें एक उत्कृष्ट लेखक बनाता है, बल्कि एक विचारक, मार्गदर्शक और समाज के लिए अनमोल धरोहर भी बनाता है।आप उनके ऑफिसियल पेज को फॉलो कर सकते हैं 

निष्कर्ष:

 राजीव ध्यानि जी की लेखनी की अनिवार्यता

राजीव ध्यानि जी केवल एक लेखक नहीं, बल्कि एक विचार-क्रांतिकारी हैं, जिनकी लेखनी समाज को झकझोरने की ताकत रखती है। उनका लेखन केवल आलोचना नहीं करता, बल्कि पाठकों को सोचने और जागरूक होने के लिए प्रेरित करता है।

उनका लेखन हमें यह सिखाता है कि—

सत्य को स्वीकार करने की हिम्मत रखो।
हर विचार पर सवाल उठाओ, भले ही वह लोकप्रिय क्यों न हो।
अंधभक्ति से बचो और तार्किक सोच विकसित करो।

जब समाज में तर्कहीनता, मूर्खता और अंधभक्ति हावी हो जाती है, तब राजीव ध्यानि जैसे लेखकों की आवश्यकता और अधिक बढ़ जाती है। वे केवल अपने विचारों से नहीं, बल्कि अपने निर्भीक और सटीक लेखन से समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य कर रहे हैं।

उनकी कलम की धार आने वाली पीढ़ियों को भी प्रभावित करेगी और एक बेहतर समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।


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