उत्तर प्रदेश के चीफ फायर अफसर प्रमोद शर्मा ने हाल ही में एक विवादास्पद बयान देकर सुर्खियां बटोरी हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भगवान श्रीराम की संज्ञा दे दी, जिससे राज्य में चाटुकारिता की एक नई परिभाषा गढ़ी जा रही है। यह बयान न केवल विवाद का कारण बना है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करता है कि क्या उत्तर प्रदेश पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी अपनी सीमाओं को भूलकर चाटुकारिता की हदें पार कर रहे हैं?
चाटुकारिता की नई मिसाल
प्रमोद शर्मा ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तुलना भगवान श्रीराम से करते हुए कहा कि उनके नेतृत्व में उत्तर प्रदेश रामराज्य की ओर बढ़ रहा है। यह बयान न केवल अतिशयोक्तिपूर्ण है, बल्कि इसे धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ भी माना जा रहा है। शर्मा जी ने अपने इस बयान से यह साबित कर दिया कि वे मुख्यमंत्री की प्रशंसा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
विवाद क्यों?
यह बयान विवादास्पद इसलिए है क्योंकि इसमें एक धार्मिक प्रतीक को राजनीतिक प्रशंसा के लिए इस्तेमाल किया गया है। भगवान श्रीराम हिंदू धर्म में एक पूजनीय देवता हैं, और उनकी तुलना किसी राजनीतिक नेता से करना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने जैसा है। इसके अलावा, यह बयान उत्तर प्रदेश पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की चाटुकारिता की एक नई मिसाल पेश करता है।
चाटुकारिता की संस्कृति
उत्तर प्रदेश पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों में चाटुकारिता की संस्कृति नया नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में कई अधिकारियों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रशंसा में अतिशयोक्तिपूर्ण बयान दिए हैं। हालांकि, प्रमोद शर्मा का यह बयान चाटुकारिता की सारी हदें पार कर गया है। यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या यह चाटुकारिता मुख्यमंत्री को पसंद आ रही है? अगर ऐसा है, तो यह राज्य के प्रशासनिक तंत्र के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है।
क्या होनी चाहिए कार्रवाई?
प्रमोद शर्मा के इस बयान पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। अगर उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, तो यह संदेश जाएगा कि उत्तर प्रदेश सरकार चाटुकारिता को प्रोत्साहित कर रही है। यह न केवल प्रशासनिक अधिकारियों की विश्वसनीयता को कमजोर करेगा, बल्कि यह राज्य के नागरिकों के बीच भी सरकार की छवि को धूमिल करेगा।
निष्कर्ष :-
उत्तर प्रदेश पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को यह समझना चाहिए कि चाटुकारिता की कोई सीमा होती है। प्रमोद शर्मा का बयान न केवल अतिशयोक्तिपूर्ण है, बल्कि यह धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ भी है। अगर इस पर कड़ी कार्रवाई नहीं की गई, तो यह माना जाएगा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यह चाटुकारिता पसंद आई है। उत्तर प्रदेश सरकार को इस मामले में तुरंत कदम उठाना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रशासनिक अधिकारी अपनी सीमाओं को पार न करें।
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